संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के अनुसार, केवल एक बार उपयोग में आने वाले यानी सिंगल-यूज प्लास्टिक का वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन में 36 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें से अनुमानित 85 प्रतिशत का प्रबंधन ठीक से नहीं हो पाता।
कई रिपोर्टों में यह स्पष्ट किया गया है कि प्लास्टिक कचरे के गलत प्रबंधन की लागत, उसके उचित प्रबंधन की तुलना में कहीं अधिक होती है। इसके जवाब में 120 से अधिक देशों ने किसी न किसी रूप में सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध या सीमाएं लगाई हैं, जो यह दर्शाता है कि प्लास्टिक प्रदूषण संधि पर वार्ता कर रहे सदस्य देशों में ऐसे उत्पादों के खिलाफ कार्रवाई करने की मजबूत इच्छाशक्ति है।
हालांकि, विभिन्न देशों और राज्यों या प्रांतों में नियमों में विसंगति के कारण इन प्रतिबंधों को लागू करना अपेक्षा से अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।
यहां अगर भारत की बात करें तो सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध का एजेंडा भारत सरकार की उच्च प्राथमिकता में शामिल है। 2019 में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को सिंगल-यूज प्लास्टिक मुक्त करने का आह्वान किया था।
एक बार फिर 2025 में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने दोहराया: “सतत विकास के लिए हम सिंगल-यूज प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के अपने प्रयासों में पूरी तरह संकल्पबद्ध हैं।”
भारत ने सिंगल-यूज प्लास्टिक के खिलाफ अपनी लड़ाई एक तय योजना के साथ शुरू की। इसमें पहले ऐसे प्लास्टिक सामानों की पहचान की गई जो नुकसानदायक थे और जिनकी ज्यादा जरूरत भी नहीं थी। इस प्रतिबंध की योजना समझदारी और वैज्ञानिक तरीके से बनाई गई थी। इसमें प्लास्टिक सामानों की उपयोगिता, उनकी कीमत और पर्यावरण पर उनके असर को ध्यान में रखकर जांच की गई। इस प्रक्रिया के तहत कुल 40 सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों, जैसे कैरी बैग, छोटी प्लास्टिक बोतलें, इंट्रावेनस (सलाईन) बोतलें और टी बैग का मूल्यांकन किया गया।
इसके आधार पर 19 सिंगल-यूज प्लास्टिक वस्तुओं की पहचान की गई, जिन्हें भारतीय बाजार में उत्पादन, भंडारण, वितरण, बिक्री या उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया गया। भारत का यह विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण किसी भी सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पाद की उपयोगिता और पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए एक अनुकरणीय मॉडल है।
भारत की यह मानदंड-आधारित रणनीति प्लास्टिक प्रदूषण संधि (प्लास्टिक पोल्यूशन ट्रीटी) की वार्ताओं में सिंगल-यूज प्लास्टिक पर वैश्विक प्रतिबंध व चरणबद्ध निष्कासन को अपनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर सकती है। भारत का यह मॉडल उन दूसरे देशों के लिए बेहतर साबित हो सकता है, जो दुनिया भर में एक जैसे नियम और मानदंडों के आधार पर सिंगल-यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने की बात कर रहे हैं।
यह ढांचा सिंगल-यूज प्लास्टिक पर एक व्यापक, तार्किक और विज्ञान-आधारित वैश्विक नीति की आधारशिला बन सकता है।
संधि वार्ताओं पर नजर रख रहे नागरिक समाज संगठनों के अनुसार 140 से अधिक सदस्य देशों ने सिंगल-यूज प्लास्टिक पर वैश्विक प्रतिबंध और चरणबद्ध निष्कासन की मांग की है।
प्लास्टिक प्रदूषण (खासकर समुद्री पर्यावरण में) को समाप्त करने के उद्देश्य से आयोजित अंतर-सरकारी वार्ता समिति (इंटर गर्वनमेंटल नेगोशिएटिंग कमेटी) की पांच बैठकों के बाद वैश्विक स्तर पर सिंगल-यूज प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। "लुईस वायस वाल्डिविएसो द्वारा पेश किए गए चेयर टेक्स्ट (मसौदे) में भारत की मजबूत योजना से कई अहम विचार और तरीके अपनाए गए हैं।
भारत द्वारा सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पर लगाए गए प्रतिबंधों के मानदंडों की तुलना जब चेयर टेक्स्ट से की जाती है, तो दोनों में काफी समानता देखने को मिलती है। प्लास्टिक उत्पादों पर अनुच्छेद 3 में ऐसे साझा मानदंड शामिल हैं जैसे कचरा बनने की संभावना, पर्यावरण पर प्रभाव, पुनर्चक्रण की क्षमता और विकल्पों की उपलब्धता। इसके अलावा भारत का यह मॉडल "रिव्यू कमेटी" को और भी जरूरी पहलुओं पर मदद दे सकता है। इनमें उत्पाद की सुरक्षा, उसकी अनिवार्यता और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव शामिल है।
विशिष्ट सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों पर वैश्विक प्रतिबंध से कचरा प्रबंधन और सफाई पर होने वाले खर्च को लेकर सरकारों पर पड़ने वाला वित्तीय बोझ काफी हद तक कम किया जा सकता है।
प्राकृतिक संरक्षण से जुड़े संगठन वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर ( डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा अर्थ एक्शन से कराए गए एक अध्ययन में चार सिंगल-यूज प्लास्टिक वस्तुओं (स्ट्रॉ, स्टिरर, ईयरबड्स और कटलरी) की जांच की गई। इस अध्ययन में यह सामने आया कि इन उत्पादों पर प्रतिबंध और चरणबद्ध निष्कासन से सामाजिक-आर्थिक लाभ उल्लेखनीय हैं।
यदि इन उत्पादों का उपयोग वर्तमान की तरह ही वैश्विक स्तर पर जारी रहता है तो 2025 से 2040 के बीच सरकारों को कचरा प्रबंधन पर लगभग 15 अरब अमेरिकी डॉलर का खर्च वहन करना पड़ सकता है। वहीं, सिंगल-यूज प्लास्टिक के गलत प्रबंधन की वैश्विक लागत 2.5 ट्रिलियन डॉलर से भी अधिक हो सकती है।
हालांकि, यदि 2028 तक इन उत्पादों पर त्वरित और ठोस प्रतिबंध लागू कर दिए जाएं तो सरकारें कचरा प्रबंधन पर होने वाले खर्च में लगभग 12 अरब अमेरिकी डॉलर की बचत कर सकती हैं, और प्लास्टिक के गलत प्रबंधन से होने वाली वैश्विक लागत में लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर तक की कमी आ सकती है। ऐसे कदम वैश्विक वैकल्पिक उत्पादों के बाजार को भी बढ़ावा देंगे, जिसकी अनुमानित आर्थिक कीमत इसी अवधि के दौरान 15 अरब डॉलर से अधिक हो सकती है।
चेयर के मसौदे के वाई परिशिष्ट में जिन प्लास्टिक उत्पादों को वैश्विक प्रतिबंध और चरणबद्ध निष्कासन के लिए विचाराधीन रखा गया है, उनकी सूची अर्थ एक्शन के अध्ययन की तुलना में कहीं अधिक व्यापक है।
भारत का राष्ट्रीय प्रतिबंध विशेष रूप से अधिक समग्र और विस्तृत है, जिसमें कुछ विशिष्ट उपयोगों के लिए पैकेजिंग फिल्मों पर प्रतिबंध और प्लास्टिक कैरी बैग्स पर चयनात्मक प्रतिबंध जैसे प्रावधान शामिल हैं।
इससे भारत एक ऐसा देश बन गया है जिसके पास सिंगल-यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने का अच्छा अनुभव और वैज्ञानिक तरीका है और भारत अब इस क्षेत्र में दुनिया का नेतृत्व करने की स्थिति में है।
सिंगल-यूज प्लास्टिक के सबसे नुकसानदायक उत्पादों को धीरे-धीरे खत्म करने के लिए भारत की योजना एक अच्छा उदाहरण बन सकती है। यह मॉडल आने वाली वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण संधि में इस्तेमाल किया जा सकता है।
देश में पहले ही बड़े और साहसिक कदम उठाए जा चुके हैं, जिससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय प्रतिनिधिमंडल अब सिंगल-यूज प्लास्टिक से मुक्त दुनिया की दिशा में नेतृत्व करने के लिए तैयार हैं। वे इस मुद्दे पर दुनिया को रास्ता दिखाने की मजबूत स्थिति में हैं।