फोटो साभार:आईस्टॉक 
प्रदूषण

प्लास्टिक प्रदूषण रैंकिंग में भारत पहले नंबर पर, सरकारी आंकड़ों पर भी उठे सवाल

Rohini Krishnamurthy

भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक बन गया है। यहां सालाना 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक निकलता है। जो वैश्विक प्लास्टिक उत्सर्जन का लगभग पांचवां हिस्सा है।

नेचर जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि भारत की आधिकारिक कचरा उत्पादन दर लगभग 0.12 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन है, लेकिन इसे संभवतः कम आंका गया है। इसकेअलावा कचरे के संग्रहण का आंकड़ा भी गलत है। 

अध्ययन के मुताबिक ऐसा इसलिए कहा गया है, क्योंकि आधिकारिक आंकड़ों में ग्रामीण क्षेत्र, बिना एकत्र किए गए कचरे को खुले में जलाना या अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा रिसाइकिल (पुनर्चक्रित) कचरा शामिल नहीं हैं। 

भारत के बाद नाइजरिया दूसरे नंबर पर है, जहां 3.5 मीट्रिक टन प्लास्टिक प्रदूषण होता है, जबकि .4 मीट्रिक टन उत्सर्जन के साथ इंडोनेशिया तीसरे स्थान पर है।

इस रिसर्च पेपर के लेखकों में से एक और लीड्स विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सिविल इंजीनियरिंग के रिसोर्स एफिशिएंसी सिस्टम्स के एकेडमिक कोस्टास वेलिस कहते हैं कि भारत अब सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है। प्लास्टिक प्रदूषण से आशय है, प्लास्टिक को खुले में अनियंत्रित तरीके से जलाना। लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया या इसे कम करके आंका गया। और यही वजह है कि भारत एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है।

अध्ययन में प्लास्टिक उत्सर्जन को ऐसी सामग्री के रूप में परिभाषित किया गया है, जो प्रबंधित या कुप्रबंधित प्रणाली (नियंत्रित या नियंत्रित अवस्था) से अप्रबंधित प्रणाली (अनियंत्रित या अनियंत्रित अवस्था - पर्यावरण) में चली गई है।

पिछले अध्ययनों में चीन को वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाला देश बताया गया था। शोधकर्ताओं ने लिखा है कि नए अध्ययन में, जिसमें हाल के डेटा का उपयोग किया गया है, चीन को चौथे स्थान पर रखा गया है, जिससे पता चलता है कि चीन में कचरे का निस्तारण व नियंत्रित लैंडफिल बढ़ा है। 

वेलिस ने कहा, "चीन, जिसकी आबादी [भारत के समान] है, ने पिछले 15 वर्षों में नगरपालिका ठोस अपशिष्ट के लिए संग्रह और प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे और सेवाओं में बड़े पैमाने पर निवेश किया है।

विशेषज्ञ ने यह भी उल्लेख किया कि पिछले अध्ययनों में चीन जैसे प्रमुख प्रदूषकों के लिए पुराने डेटा का उपयोग किया गया था, जो यह बता सकता है कि उनके उत्सर्जन को अधिक क्यों आंका गया था। उन्होंने कहा कि नया अध्ययन उत्पन्न अप्रतिबंधित कचरे के लिए सुधार एल्गोरिदम का उपयोग करता है।

अध्ययन में पांच स्रोतों से 50,702 नगर पालिका-स्तरीय प्रशासनों के लिए उत्सर्जन की मात्रा निर्धारित की। इनमें असंग्रहित कचरा, कूड़ा-कचरा, संग्रह प्रणाली, अनियंत्रित निपटान और छंटाई और पुनर्प्रसंस्करण से अस्वीकृत कचरा शामिल हैं।

उनके विश्लेषण से पता चला कि 2020 में वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन 52.1 मीट्रिक टन प्रति वर्ष था। जबकि कूड़ा-कचरा ग्लोबल नॉर्थ में सबसे बड़ा उत्सर्जन स्रोत था, असंग्रहित कचरा ग्लोबल साउथ में प्रमुख स्रोत था।

विश्व स्तर पर, दुनिया के प्लास्टिक कचरे के उत्सर्जन का लगभग 69 प्रतिशत या 35.7 मीट्रिक टन प्रति वर्ष 20 देशों से आता है, जिनमें से चार कम आय वाले देश हैं, नौ निम्न-मध्यम आय वाले देश हैं और सात उच्च-मध्यम आय वाले देश हैं।

अध्ययन में बताया गया है कि उच्च आय वाले देशों में प्लास्टिक कचरा उत्पादन दर अधिक है, लेकिन इनमें से कोई भी देश शीर्ष 90 प्रदूषकों में शामिल नहीं है, क्योंकि क्योंकि अधिकांश देशों में 100 प्रतिशत संग्रह कवरेज और नियंत्रित निपटान की व्यवस्था है।

हालांकि, शोधकर्ताओं ने स्वीकार किया कि उन्होंने कुछ उच्च आय वाले देशों से प्लास्टिक कचरे के उत्सर्जन को कम करके आंका हो सकता है, क्योंकि उन्होंने जानबूझकर प्लास्टिक कचरे के निर्यात को अपने विश्लेषण से बाहर रखा है।

इन निष्कर्ष से वैश्विक प्लास्टिक संधि के बारे में जानकारी मिलती है। साल 2022 में, 175 देशों ने प्लास्टिक उत्पादन, उपयोग और निपटान से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए 2024 तक प्लास्टिक प्रदूषण पर कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौता विकसित करने पर सहमति व्यक्त की थी।