प्रदूषण

पेट्रोलियम उद्योग में काम करने वाले मजदूरों को कहीं ज्यादा है कैंसर का खतरा

शोध से पता चला है कि जो मजदूर खुले समुद्र में बने पेट्रोलियम प्लांट पर काम करते हैं उनमें फेफड़ों के कैंसर और ल्यूकेमिया का खतरा कहीं ज्यादा था

Lalit Maurya

हाल ही में छपी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि पेट्रोलियम उद्योग में काम करने वाले मजदूरों और उसके आसपास रहने वाले लोगों पर अलग-अलग तरह के कैंसर होने का खतरा कहीं ज्यादा है। शोध के अनुसार पेट्रोलियम उद्योग के संपर्क में आने से मेसोथेलियोमा, त्वचा सम्बन्धी कैंसर, मल्टीपल मायलोमा, प्रोस्टेट और ब्लैडर कैंसर होने का खतरा कहीं ज्यादा है| वहीं इसके विपरीत घेघा, पेट, मलाशय और अग्न्याशय के कैंसर का खतरा कहीं कम होता है| गौरतलब है कि मेसोथेलियोमा एक दुर्लभ प्रकार का कैंसर होता है, जो शरीर के अनेक आंतरिक अंगों को ढंककर रखनेवाली सुरक्षात्मक परत, मेसोथेलियम, से उत्पन्न होता है। सामान्यतः यह बीमारी एस्बेस्टस के संपर्क में आने से होती है। 

यह अध्ययन विश्व स्वास्थ्य संगठन की इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर द्वारा किया गया है जोकि इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च एंड पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित हुआ है| इसे समझने के लिए एजेंसी के पर्यावरण और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने 57 शोधों का विश्लेषण किया है| यह निष्कर्ष एक बार फिर यह साबित करते हैं कि पेट्रोलियम निष्कर्षण और शोधन से जो वायु प्रदूषण हो रहा है वो स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है|

प्लांट के पास रहने वाले लोगों में ज्यादा था बचपन में होने वाले ल्यूकेमिया का खतरा

शोध में सामने आया है कि समुद्रों में लगे पेट्रोलियम प्लांट में काम करने वाले मजदूरों पर फेफड़ों के कैंसर और ल्यूकेमिया का खतरा ज्यादा था| वहीं दूसरी ओर जो लोग पेट्रोलियम प्लांट के आसपास रहते हैं उनमें बचपन के दौरान ल्यूकेमिया का खतरा कहीं ज्यादा था|

शोधकर्ताओं के अनुसार पेट्रोलियम और उससे बने अन्य पदार्थो जैसे बेंजीन के संपर्क में आने से स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिम कैसे बढ़ जाता है, इसपर अभी और ज्यादा शोध करने की जरुरत है| जिससे यह पता लगाया जा सके कि यह कैंसर के खतरे को कैसे बढ़ा देते हैं|

विशेष रूप से उन स्थानों पर जहां बड़ी मात्रा में पेट्रोलियम उत्पादन को लेकर काम हो रहा है और जिनपर बहुत ही कम शोध किया गया है| उन स्थानों पर इनके संपर्क में आने का खतरा भी कहीं ज्यादा है| वैज्ञानिकों का तर्क है कि इसके लिए एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्सॉर्टियम उन अध्ययनों का मार्गदर्शन करें जिससे अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया इसके जोखिमों का मूल्यांकन किया जा सके|

इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार व्यावसायिक दुर्घटनाओं या काम से संबंधित बीमारियों के चलते हर साल 27.8 लाख लोगों की मौत हो जाती है| वहीं 37.4 करोड़ लोगों को काम के समय होने वाली दुर्घटनाओं में चोट पहुंचती है| वहीं इनके चलते हर साल दुनिया के कुल जीडीपी के करीब 3.94 फीसदी का आर्थिक नुकसान होता है| इनमें से करीब 65 फीसदी कार्य-संबंधी चोटें और मौतें अकेले एशिया में होती हैं।

आंकड़ों के अनुसार हर रोज होने वाली इन 7,500  मौतों में से 6,500 कार्यस्थल के कारण होने वाली बीमारियों और 1,000 मौतें दुर्घटना और चोटों के कारण होती हैं। इनमें से 26 फीसदी के लिए कैंसर, 17 फीसदी के लिए सांस सम्बन्धी बीमारियां और 31 फीसदी के लिए संचारी रोग जिम्मेवार हैं|