इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईओसीएल) के द्वारा थिराना नाले में अवैध रूप से एफ्लूएंट बहाया जा रहा है, इसके कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। इस नुकसान के लिए राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने पानीपत रिफाइनरी पर रु. 92.40 करोड़ की गणना की है।
यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) और नीरी की संयुक्त समिति की अंतिम रिपोर्ट में कहा गया है।
23 अप्रैल, 2020 की रिपोर्ट को 22 जुलाई को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की वेबसाइट पर अपलोड किया गया।
रिपोर्ट के माध्यम से ट्रिब्यूनल को सूचित किया कि एचएसपीसीबी ने रिवाइज्ड कंसेंट टू ऑपरेट (सीटीओ) में कहा कि एफ्लूएंट को प्युरफाइड टिफैफिलिक एसिड (पीटीए) संयंत्र से उपचारित करके ही थिराना नाले में 255 एम3 / घंटा के अनुसार बहाया जा सकता है।
सीटीओ इस शर्त के साथ दिया गया कि उद्योग एफ्लूएंट बहाने से पहले अनुमति लेगा।
आईओसीएल ने 18 अगस्त, 2019 से थिराना नाले में एफ्लूएंट बहाना शुरू कर दिया था। जबकि रिफाइनरी ने सिंचाई विभाग से नाले में इसे बहाने के लिए अनुमति नहीं ली थी।
इसके अलावा, 14 जनवरी को थिराना नाले के निरीक्षण के दौरान, संयुक्त समिति ने देखा कि आईओसीएल पानीपत नेफ्था क्रैकर इकाई द्वारा भी एफ्लूएंट बहाया जा रहा है।
पानीपत एचएसपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी ने कहा कि सीटीओ केवल नेफ्था इकाई को दिया गया था, जो उपचारित अपशिष्ट के रीसायकल और पुन: उपयोग के लिए था। इकाई को थिराना नाले में एफ्लूएंट बहाने के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई थी।
नेफ्था इकाई के स्टॉर्म वाटर पोंड और थिराना नाले के पानी के नमूने विश्लेषण के लिए एकत्र किए गए थे। दोनों नमूनों के विश्लेषण के परिणामों में जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी), रासायनिक ऑक्सीजन मांग (सीओडी) और सोडियम अवशोषण अनुपात (एसएआर) के उच्च स्तर दिखाई दिए। इससे पता चला कि तालाब का पानी औद्योगिक एफ्लूएंट के बहने से दूषित हो रहा है।