प्रदूषण

भोपाल गैस त्रासदी: 29 नई बस्तियों तक कचरे से जहरीला रसायन पहुंचने का दावा कितना सच

अखिल भारतीय विष विज्ञान संस्थान 42 बस्तियों तक हानिकारक रसायनों के पहुंचने की पुष्टि कर चुका है।

DTE Staff

पूजा यादव

भोपाल गैस त्रासदी को करीब 38 साल बीत चुके हैं और इसके बावजूद अभी तक लोग जहरीले रासायनों की चपेट में आने की आशंका से डर रहे हैं। पुराने जेपी नगर में यूनियन कार्बाइड (अब डाउ केमिकल्स) कारखाने के आस-पास बसी 29 बस्तियों पर अब नया खतरा मंडरा रहा है। संभावना ट्रस्ट क्लीनिक ने यह दावा किया है कि कारखाने में पड़े सैकड़ों टन जहरीला कचरे का रिसाव भू-जल में हो रहा है।    


इस दावे के बाद बस्तियों के नागरिक डरे हुए हैं। संभावना ट्रस्ट ने एक प्रेस कांफ्रेंस में यह दावा किया कि उन्होंने अपने प्रयोगशाला में भू-जल नमूनों की जांच के बाद पाया है कि कारखाने के खतरनाक कचरे में पाए जाने वाले हानिकारक रसायन इन बस्तियों के भू-जल तक पहुंच गया है। इस रसायन का नाम आर्गनोक्लोरीन है।

हालांकि इस दावे से अलग मप्र का गैस राहत विभाग कुछ और कह रहा है। वह इस दावे को नहीं मान रहा है। विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि उनके पास कोई आधिकारक और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर की गई जांच रिपोर्ट नहीं है इसलिए नागरिकों को परेशान होने की जरुरत नहीं है।

दावा करने वाली ट्रस्ट की लेबोरेटरी टेक्नीशियन महेंद्र कुमारी सोनी, सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता दीपा मंडराई, सामुदायिक शोध सहायक चंद्रशेखर साहू व राधेलाल नापित बताते हैं कि ये सभी 29 बस्तियां नई है। इन्हें नई इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि पूर्व में कारखाना के आसपास बसी 42 बस्तियों के भूजल स्त्रोतों में हानिकारक रसायन मिल चुके हैं। इसकी आधिकारिक पुष्टि अखिल भारतीय विषविज्ञान संस्थान पूर्व में ही कर चुका है। ये 42 बस्तियां, इन्हीं 29 बस्तियों से लगी हुई है।

सरकार ने इन बस्तियों में खतरा को भांपते हुए, यहां के नल, जल स्त्रोतों पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया है। साथ ही इन क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक नागरिकों के पास नलजल योजना के तहत कनेक्शन दिए गए हैं। इन्हें भूजल स्त्रोतों से पानी पीने पर मनाही है।

रसायन से यह हो सकता है नुकसान
दावा किया गया है कि यह आर्गनोक्लोरीन विषाक्तता पैदा करता है। कैंसर व जन्मजात विकृति ला सकता है।  मस्तिष्क, जिगर और गुर्दे के साथ रोग प्रतिरोधक, अन्तःश्रावी प्रजनन, एवं अन्य तंत्रों को नुकसान पहुंचाते हैं। शोधकर्मी चंद्रशेखर साहू ने बताया कि एक कॉलोनी के नमूने को अलग-अलग जांचा गया है। दोनों में उक्त रसायन के होने की पुष्टि हुई है। शोधकर्मी राधेलाल नापित ने कहा कि यूनियन कार्बाइड के लापरवाही से फेंके गए जहरीले कचरे के कारण आसपास की बस्तियों में यह रसायन फैला है।

ये हैं 29 बस्तियां, जिनमें मिले हानिकारक रसायन
संभावना ट्रस्ट की ओर किए गए दावे के अनुसार गुरुनानक कालोनी, काजी कैंप, रेलवे स्टेशन, पश्चिम मध्य रेलवे, देवकी नगर, हनीफ कालोनी, कांग्रेस नगर, करारिया फार्म, इंडस, दीनदयाल नगर, कृष्णा नगर, इब्राहिमगंज, फिजा कालोनी, मुरली नगर, विश्वकर्मा नगर, श्रद्धा नगर, पन्ना नगर, शहीद कालोनी, रुसल्ली, सबरी नगर, राजेंद्र नगर, हरसिद्धि कैंपस, कैलाश नगर, सूर्या नगर, प्रेम नगर गणेश नगर, शाहजहांनाबाद, हाउसिंग बोर्ड कालोनी करोंद, सिंधी कालोनी के भूजल में आर्गनोक्लोरीन रसायन मिला है।

ट्रस्ट द्वारा उक्त दावे के बाद गैस राहत विभाग के संचालक बसंत कुर्रे का कहना है कि विभाग से पूछकर जांच नहीं की गई है। हमारे पास कोई रिपोर्ट भी नहीं है और न ही किसी ने दी है। जब कोई रिपोर्ट मिलेगी तो उस पर नियमानुसार संज्ञान लेंगे। वैसे किसी बस्ती में हानिकारक रसायन मिलने की पुष्टि संबंधी दस्तावेज किसी ने नहीं बताएं हैं।

सरकार आखिरकार क्यों नहीं हटा पा रही जहरीला कचरा
बेशक जहरीले कचरे को हटाने की कवायद तो की गई, लेकिन पूरे मन से प्रयास नहीं किए गए। यदि होते तो अब तक कचरा नष्ट कर दिया गया होता, जो कि नहीं किया है। पूर्व में सरकारें कह चुकी हैं कि इस कारखाने के अंदर 340 टन जहरीला कचरा पड़ा है, जिसका वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत निपटान किया जाना है। हालांकि कचरे की मात्रा को लेकर जानकार सहमत नहीं है, बार—बार कहते रहे हैं कि यह 20 हजार टन से अधिक कचरा है, जो कारखाना परिसर के अंदर जमीन के नीचे दबाया गया है। तीन वर्ष पहले इस कचरे को नष्ट करने की प्रक्रिया इंदौर के पीथमपुर में शुरू की थी। तब 10 टन कचरा भी नष्ट किया था।

इसकी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी गई थी, फिर सरकार ने गुजरात की एक कंपनी को कचरा नष्ट करने के लिए तैयार किया था। इसी बीच कोरोना महामारी आ गई। इस तरह कचरा नष्ट नहीं हो पाया है। आगे भी कोई रास्ता निकलता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि 2022 का लगभग आधा समय निकल चुका है। वर्ष 2023 में मप्र के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं।

38 साल से भुगत रहे 

38 वर्ष पहले 1984 में 2 व 3 दिसंबर की दर्मियानी रात इसी जेपी नगर के यूनियन काबाईड कारखाने से मिथाइल आइसोसाइनाट गैस 'मिक' के रिसाव ने हजारों नागरिकों को मौत की नींद सुला दिया था। साथ लाखों लोग जन्मजात बीमारियों से पीड़ित हो गए थे। इनमें से हजारों लोग आज भी उन बीमारियों से लड़ रहे हैं।