केंद्र सरकार के सामने इस समय आम बजट पेश करने के बाद उसके सामने सबसे बड़ी समस्या है कि उसने जो बजट में घोषणाएं की हैं, क्या उस पर विश्वास किया जा सकता है या क्या बजटीय घोषणाओं पर ईमानदारी से क्रियान्वयन किया जाएगा? हालांकि इस अविश्वास को विश्वास में बदलने के लिए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजटीय भाषण के दौरान गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की एक कविता पढ़ी।
इस कविता का शाब्दिक अनुवाद कुछ इस प्रकार से है, “विश्वास वह चिड़िया है जो प्रकाश की अनुभति करती है और तब गाती है जब भोर में अंधेरा बना ही रहता है”। सरकार और आम जन के बीच अविश्वास की जो एक खाई बन गई है, ऐसे में वित्तमंत्री का कहना है कि हम उस चिड़िया की तरह से हैं और हमें विश्वास है कि यह बजट आमजन को राहत प्रदान करेगा।
बजट में वित्तमंत्री ने पुराने वाहनों को लेकर बड़ी घोषणा की है। उन्होंने कहा है कि सरकार देश में प्रदूषण की समस्या को कम करने के लिए वाहन स्क्रैप पॉलिसी (पुराने वाहनों को हटाने की नीति) लाने जा रही है। इस नीति के तहत पुराने वाहनों को निश्चित समयकाल के बाद सड़कों पर चलाने की अनुमति दी जाएगी। इसके बाद इन वाहनों को स्क्रैप के लिए भेज दिया जाएगा।
वित्त मंत्री ने संसद में नई स्क्रैप पॉलिसी की घोषणा करते हुए कहा कि ऑटो सेक्टर को एक बड़ा तोहफा दिया है। क्योंकि पुराने वाहनों के सड़क से गायब हो जाने से ऑटो सेक्टर में वाहनों की बिक्री में तेजी देखने को मिलेगी। कोरोना काल के दौर में सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में ऑटो सेक्टर सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। बताया गया है कि इस पॉलिसी के ऐलान से ऑटो सेक्टर में वाहनों की बिक्री बढ़ेगी और इस सेक्टर में हुए नुकसान की भरपाई हो सकेगी।
ध्यान रहे कि केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनों हुए एक कार्यक्रम के दौरान इस तरह के संकेत दे दिए थे। ध्यान रहे कि पिछले साल सरकार ने बिजली के वाहनों को अपनाने के लिए 15 साल से पुराने वाहनों को खत्म करने की अनुमति देने के लिए मोटर वाहन मानदंडों में संशोधनों का प्रस्ताव किया था।
बीते वर्षों में प्रदूषण भारत के लिए एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। कई बड़े शहरों में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक रहा कि बुजुर्ग एवं बीमार लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने नई स्क्रैप पॉलिसी लाने का ऐलान किया है। देशभर में पुराने वाहनों से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। वाहन पुराने हो जाने पर अधिक प्रदूषण फैलाते हैं।
सरकार का दावा है कि नई स्क्रैप पॉलिसी के आने से सड़कों से पुराने वाहन गायब हो जाएंगे और प्रदूषण के स्तर में भी कमी देखने को मिलेगी। सरकार की इस पहल से लोगों का रुझान इलेक्ट्रिक वाहनों की तरफ बढ़ेगा जो कि प्रदूषण कम करने के लिहाज से बहुत आवश्यक है।
दरअसल, इलेक्ट्रिक वाहनों की दुनियाभर में बढ़ती डिमांड को देखते हुए सरकार ने इस दिशा में काम करने का निर्णय लिया है। क्योंकि सरकार की ये मंशा है कि आने वाले वक्त में भारत में अधिक से अधिक इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल किया जाए। जिसके लिए सरकार ने 15 साल से अधिक पुराने वाहनों को हटाने संबंधी यह घोषणा की है। यह नीति कारों, ट्रकों और बसों सहित 15 साल से अधिक पुराने वाहनों को हटाने के लिए है।
इस नीति के अमल शुरू करने पर निश्चिततौर देश में कबाड़ बढ़ेगा। लेकिन आश्चर्यजनक ढंग से यह क्षेत्र असंगठित है। ऐसे में बजटीय घोषणा के अमल में लाने के बाद सरकार के सामने यह एक बड़ी समस्या खड़ी होगी कबाड़ को ठिकाने लगाने की। द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (टेरी) द्वारा 2017 में प्रकाशित पोजिशन पेपर के अनुसार, वाहनों से होने वाला करीब 60 प्रतिशत प्रदूषण 10 साल से अधिक पुराने वाहनों से होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, पुराने वाहन वर्तमान मानकों से 15 गुणा अधिक प्रदूषण फैला रहे हैं।
ध्यान रहे कि बिहार में हवा की गुणवत्ता खराब होने पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 4 नवंबर 2019 को घोषणा की कि राज्य में 15 साल से पुराने व्यवसायिक और सरकारी वाहन नहीं चलेंगे। इसके अलावा 15 साल पुराने वाहनों की फिटनेस जांच होगी। इस तरह के प्रतिबंध अपनी उम्र पूरी कर चुके वाहन (ईएलवी यानी एंड ऑफ लाइफ व्हीकल) की संख्या में भारी बढ़ोतरी कर रहे हैं। लेकिन भारत में अब तक समस्या से निपटने के लिए कोई कारगर नीति नहीं बनी है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने साल 2016 में पहली बार ईएलवी के पर्यावरण हितैषी प्रबंधन हेतु गाइडलाइंस जारी की थीं। एनजीटी के आदेश के अनुपालन में जनवरी 2019 में ऑटोमोबाइल से जुड़े विभिन्न संगठनों के परामर्श के बाद संशोधित गाइडलाइंस जारी की गई। इन गाइडलाइंस में ऑटोमोबाइल कचरे के टिकाऊ प्रबंधन की रूपरेखा है। ईएलवी में हानिकारण तत्व जैसे तेल, लुब्रिकेंट्स, लेड एसिड बैटरी, लैंप, इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे, एयरबैग आदि होता है, अगर इनका वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन न किया जाए तो ये स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल सकते हैं। जानकार बताते हैं कि असंगठित रूप से चल रहे तमाम स्क्रैप बाजार में गाइडलाइंस की उपेक्षा की जाती है।
सीपीसीबी का अध्ययन बताता है कि देश भर में इस समय 90 लाख ईएलवी सड़कों पर चल रहे हैं। अनुमान के मुताबिक, 2025 तक 2.18 करोड़ ईएलवी हो जाएंगे।
वियोनशॉम्पिंग विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के तेजस सूर्या नाइक का जून 2018 में प्रकाशित शोधपत्र “इंड ऑफ लाइफ व्हीकल्स मैनेजमेंट एट इंडियन ऑटोमोबाइल सिस्टम” बताता है कि दुनियाभर में ऑटोमोबाइल का कचरा चुनौती बन चुका है।
दुनियाभर में वाहनों का स्वामित्व आबादी में विकास दर से अधिक है। 2010 में वाहनों का स्वामित्व 100 करोड़ पार हो चुका है। इसी के साथ ईएलवी की संख्या भी बेतहाशा बढ़ी है। इस चुनौती से पार पाने के लिए यूरोपीय यूनियन, जापान, कोरिया, चीन और ताइवान कानूनी ढांचा बनाकर इस समस्या पर काफी हद तक काबू पा लिया है। भारत में 2010 में 11 करोड़ वाहन सड़कों पर चल रहे थे। 2010 से 2015 तक बीच अतिरिक्त 10.3 करोड़ वाहनों का उत्पादन किया गया।
सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालय के वाहन पोर्टल के मुताबिक, भारत में इस समय 22.95 करोड़ वाहनों का पंजीकरण है। अनुमान है कि 2030 तक 31.5 करोड़ वाहन सड़कों पर होंगे। सड़क पर चलने वाले वाहन पर्यावरण को प्रदूषित तो कर ही रहे हैं, साथ ही पारिस्थितिक संतुलन भी बिगाड़ रहे हैं। लेकिन इनके ठीक से प्रबंधन नहीं किया जा रहा है।
एक शोध पत्र के मुताबिक, इस वक्त अकेले दिल्ली की सड़कों पर 54.92 लाख ईएलवी हैं। 2025 तक ऐसे वाहनों की संख्या बढ़कर 77.35 लाख और 2030 तक 96.33 लाख हो जाएगी। इसी तरह चेन्नई में फिलहाल 25.18 लाख ईएलवी हैं जिनके 2025 तक 38.61 लाख और 2030 तक 49.38 लाख होने का अनुमान है।
सीपीसीबी के मुताबिक, एक कार में 70 प्रतिशत इस्पात और 7-8 प्रतिशत एलुमिनियम होता है। शेष 20-25 प्रतिशत हिस्सा प्लास्टिक, रबड़, कांच, आदि होता है। अगर पर्यावरण अनुकूल और वैज्ञानिक तरीके से रिसाइक्लिंग की जाए तो इनमें से अधिकांश चीजें दोबारा इस्तेमाल की जा सकती हैं।