आज वायु प्रदूषण सारी दुनिया के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है, जो उम्र के अलग-अलग पड़ावों में स्वास्थ्य को अलग-अलग तरह से प्रभावित कर रहा है, जिससे अजन्मों पर भी खतरा बना हुआ है। हाल ही में किए कुछ अध्ययनों से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से नवजात शिशु के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। हालांकि इस विषय पर बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
इस पर यूपीवी/ईएचयू द्वारा किए एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि अजन्में बच्चे पर वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर गर्भावस्था के शुरुआती और बाद के महीनों में पड़ता है, जिस समय वो वायु प्रदूषण के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील होता है।
हाल के वर्षों में किए अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण, थायराइड को प्रभावित करता है। देखा जाए तो भ्रूण के विकास और मेटाबोलिस्म को नियमित करने के लिए थायराइड हार्मोन बहुत जरुरी होता है। साथ ही यह हार्मोन दिमागी विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
थायरोक्सिन (टी4) मुख्य थायरॉइड हार्मोन है, जोकि शरीर में थायराइड ग्रंथि द्वारा बनाया जाता है। इसी तरह थायरायड स्टिमुलेटिंग हार्मोन (टीएसएच) होता है, जो थायरायड ग्रंथि द्वारा टी 3 और टी 4 हार्मोन के बनने पर असर डालता है।
यूपीवी/ईएचयू और इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता अमाया इरिजार-लोइबाइड ने बताया कि अगर शरीर में इन थायरॉइड हार्मोन का संतुलन सही नहीं है, तो गंभीर बीमारियों के होने का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाता है। यही वजह है कि इस शोध में गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण और नवजात शिशु में थायरोक्सिन के स्तर के बीच के संबंधों का विश्लेषण किया गया है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने 48 घंटे के नवजात शिशुओं में हील प्रिक टैस्ट की मदद से रक्त में थायरोक्सिन और टीएसएच के स्तर को मापा था।
पीएम2.5 और नवजात शिशुओं में थायरोक्सिन के स्तर के बीच है सीधा संबंध
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) और पीएम 2.5, वायु प्रदूषण और वाहनों से होने वाले दो प्रमुख प्रदूषक हैं। यदि पीएम 2.5 की बात करें तो यह प्रदूषण के बहुत महीन कण होते हैं, जो बड़ी आसानी से श्वसन पथ में प्रवेश कर जाते हैं। यूपीवी/ ईएचयू के शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि उन्होंने विशेष रूप से गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में आने से नवजात शिशुओं में थायरोक्सिन के स्तर पर पड़ने वाले असर का विश्लेषण किया है।
उन्होंने इसकी साप्ताहिक आधार पर निगरानी की है क्योंकि एक सप्ताह से अलगे सप्ताह के बीच भ्रूण का विकास बहुत अलग होता है। साथ ही शोधकर्ताओं ने यह जानने के लिए विस्तृत शोध करने की कोशिश की है कि गर्भावस्था के सबसे संवेदनशील सप्ताह कौन से हैं।
शोधकर्ता अमाया इरिजार के अनुसार, “इस अध्ययन में सामने आए परिणाम दिखाते हैं कि गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 का संपर्क और नवजात शिशुओं में थायरोक्सिन के स्तर के बीच सीधा संबंध है। हालांकि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और उसके बीच सीधा सम्बन्ध नहीं पाया गया है।”
इरिजार ने बताया कि गर्भावस्था के शुरुवाती महीनों के दौरान, वायु प्रदूषकों का थायराइड हार्मोन के संतुलन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। इससे शिशुओं में थायरोक्सिन का स्तर कम होता जाता है। जैसे-जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ती है, यह असर कम होता जाता है। यानी मां के प्रदूषण के संपर्क में आने का असर धीरे-धीरे कम महत्वपूर्ण होता जाता है।
हालांकि गर्भावस्था के अंतिम महीनों में यह सम्बन्ध फिर से देखा गया था, लेकिन इस बार यह पहले की तुलना में विपरीत प्रभाव प्रदर्शित करता है। जैसे-जैसे इन सूक्ष्म कणों की एकाग्रता बढ़ती है, उसके साथ-साथ थायराइड हार्मोन का स्तर भी बढ़ता है, जिसका संतुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसा क्यों होता है यह स्पष्ट नहीं है। पर इतना स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण के मामले में गर्भावस्था की सबसे संवेदनशील अवधि शुरुवाती और अंतिम महीने हैं। यूपीवी/ईएचयू द्वारा किया यह अध्ययन जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब शिशुओं पर बढ़ते वायु प्रदूषण के असर को स्पष्ट किया गया है। इससे पहले जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में छपे एक शोध के अनुसार गर्भवती महिलाओं के वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भपात का खतरा 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। वहीं अन्य अध्ययनों में भी वायु प्रदूषण और गर्भावस्था सम्बन्धी जटिलताओं पर प्रकाश डाला गया था, लेकिन उसके विषय में जानकारी बहुत सीमित ही थी।
इसी तरह जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में छपे एक शोध ने इस बात की पुष्टि की थी कि प्रदूषण, मां की सांस से गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच रहा है और उनको अपना शिकार बना रहा है।
अमाया इरिजार के अनुसार उनका अगला कदम उन कारणों को जानने का होगा जिनके द्वारा ये महीन कण गर्भावस्था के प्रारंभिक और अंतिम महीनों में विपरीत प्रभाव पैदा करते हैं। वास्तव में, ये कण कार्बन से बने छोटे गोले से ज्यादा कुछ नहीं हैं, और अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह किस हद तक प्रभावित कर सकते हैं।
यह प्लेसेंटा के जरिए बच्चे तक पहुंचते हैं, क्या इन कणों से जुड़े अन्य घटक शरीर में प्रवेश करने के बाद मुक्त हो जाते हैं, अभी इसे समझना बाकी है। क्या गर्भावस्था के दौरान इन प्रदूषकों का संपर्क न केवल थायराइड हार्मोन को प्रभावित करता है, बल्कि अन्य पहलुओं जैसे कि मानसिक और शारीरिक विकास, मोटापा, आदि को भी प्रभावित करता है, इसे समझने के लिए आगे भी शोध करने की जरुरत है।