प्रदूषण

कैसे हो सकती है दक्षिण एशिया की जहरीली हवा साफ, शोधकर्ताओं ने सुझाए रास्ते

Dayanidhi

लकड़ी जलाने, बिजली उत्पादन, मोटर वाहनों और अन्य जलने वाले स्रोतों से महीन कण उत्सर्जित होते हैं। केवल 2.5 माइक्रोमीटर या उससे छोटे, ये कण इतने छोटे होते हैं कि सांस के जरिए शरीर के अंदर जा सकते हैं और हृदय और फेफड़ों को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। पीएम 2.5 के रूप में जाना जाने वाले, इन कणों के संपर्क में आने से भारत और दक्षिण एशिया के आसपास के क्षेत्र में मृत्यु दर का बड़ा खतरा है।

सेंट लुइस में वाशिंगटन विश्वविद्यालय के मैककेल्वे स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के रैंडल मार्टिन की प्रयोगशाला में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में भारत के 29 राज्यों और आसपास के छह देशों में विभिन्न उत्सर्जन क्षेत्रों और ईंधन से होने वाले पीएम 2.5 का मूल्यांकन किया। भारत के अलावा इन देशों में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका और म्यांमार शामिल थे।

यह अध्ययन कार्बनिक पदार्थों की शुरुआती पहचान करता हैं, विभिन्न स्रोतों से वायुमंडल में सीधे उत्सर्जित होने वाले कार्बनिक कण दक्षिण एशिया में पीएम 2.5 की भारी मात्रा के लिए जिम्मेवार हैं। यह अध्ययन पूरे दक्षिण एशिया में पीएम 2.5 की मात्रा को कम करने और लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के संभावित मार्गों पर भी प्रकाश डालता है। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है

अध्ययन के मुताबिक, दक्षिण एशिया के देशों में भारी उत्सर्जन और उससे संबंधित वायु प्रदूषण और मृत्यु दर काफी है। अध्ययन से पता चलता है कि 2019 में परिवेशी पीएम 2.5 के कारण दक्षिण एशिया में 10 लाख से अधिक मौतें मुख्य रूप से घरों में लकड़ी या कोयला जलाने, उद्योग और बिजली उत्पादन से हुईं। ठोस जैव ईंधन पीएम 2.5 के कारण मृत्यु दर को बढ़ाने वाला प्रमुख जलने वाला ईंधन है, इसके बाद कोयला और तेल और गैस हैं।

अध्ययनकर्ता ने बताया कि, वायु प्रदूषण, घर के अंदर और बाहर दोनों जगह, दक्षिण एशिया में मौत के खतरे का एक प्रमुख कारण है। इन स्रोतों को समझना इस गंभीर समस्या के प्रबंधन की दिशा में एक महत्वपूर्ण तथा पहला कदम है।

पीएम 2.5 के प्रभावों का मूल्यांकन करने में एक बड़ी चुनौती यह समझना है कि समय के साथ इसका उत्पादन और वितरण कैसे होता है। अध्ययनकर्ताओं ने  ने क्षेत्रीय सिमुलेशन विकसित करने के लिए वैश्विक उत्सर्जन सूची, उपग्रह की मदद से महीन सतह कण पदार्थ अनुमान लगाया और उसे अत्याधुनिक वैश्विक स्तर की मॉडलिंग क्षमताओं के साथ जोड़ा। उन्होंने यह समझने के लिए लंबी दूरी के यात्रा पर भी ध्यान दिया कि विभिन्न उत्सर्जन क्षेत्रों और ईंधन ने पीएम 2.5 और संबंधित मृत्यु दर में कैसे योगदान दिया।

अध्ययनकर्ता के मुताबिक, सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग की बाधाओं के साथ वायुमंडलीय संरचना के मॉडलिंग में प्रगति ने पूरे दक्षिण एशिया में पीएम 2.5 के स्रोतों के इसे आकलन को सक्षम किया है। इससे जैव ईंधन और कोयला जलाने से होने वाले बड़े प्रभाव की जानकारी मिली।

अध्ययनकर्ता ने यह भी कहा कि दक्षिण एशिया में पीएम 2.5 की व्यापक संरचना प्रमुख योगदान देने वाले क्षेत्रों में प्राथमिक कार्बन द्वारा संचालित है। टीम का पीएम 2.5 संरचना विश्लेषण विशेष प्रजातियों से जुड़ी शमन रणनीतियों को विकसित करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी हो सकती है।

कुछ अन्य उल्लेखनीय विशेषताओं में मध्य और पूर्वी भारत में कोयले का बड़ा योगदान, उत्तर-पूर्व और मध्य भारत में भारी घरेलू वायु प्रदूषण, बांग्लादेश में जैव ईंधन का योगदान और म्यांमार में खुली आग शामिल हैं।

इस अध्ययन से पता चलता है कि दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण की समस्या सिर्फ शहरी स्तर की समस्या नहीं है, इसलिए शहरी स्तर के विकास पर आधारित  नीतियां राष्ट्रीय स्तर पर पीएम 2.5 के खतरे को कम करने के लिए पर्याप्त नहीं होंगी।

अध्ययनकर्ता पूरे दक्षिण एशिया में भविष्य के हस्तक्षेप के लिए कई रणनीतियों का सुझाव देते हैं, जिसमें ऊर्जा के स्थायी स्रोतों के साथ पारंपरिक ईंधन स्रोतों में बदलाव को प्रोत्साहित करने वाली नीतियां भी शामिल हैं।

भारत में पिछले पांच से 10 वर्षों में नीतियों ने वायु प्रदूषण संबंधी चिंताओं और संबंधित स्वास्थ्य को होने वाले खतरे और मृत्यु दर की पहचान करने और उनमें सुधार करने की दिशा में काम किया है। इन नीतियों को प्रभावी देखना दक्षिण एशियाई आबादी को आगे बढ़ने और रणनीतिक नीतियां विकसित करने के लिए प्रेरित कर रहा है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा, यह अध्ययन आसपास के देशों के साथ-साथ भारत के विभिन्न राज्यों के लिए विस्तृत क्षेत्र, ईंधन और संरचना-आधारित जानकारी प्रदान करता है, जो स्थानीय नीति निर्माताओं के लिए उनके विशेष क्षेत्र से जुड़े पीएम 2.5 स्रोतों को खत्म करने के लिए उपयोगी हो सकता है।