प्लास्टिक से पर्यावरण की सुरक्षा के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार नई योजना लेकर आई है। ऐसा प्लास्टिक जिसे रिसाइकिल नहीं किया जा सकता, जैसे कि दूध-दही के पैकेट, उन्हें लोगों से खरीदकर उनका प्रबंधन किया जाएगा। ताकि ये प्लास्टिक कचरे में न जाए और मिट्टी-पानी को प्रदूषित न करे। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि नगर निगम, शहरी निकायों और लोक निर्माण विभाग को पॉलीथिन और प्लास्टिक की खरीद की जिम्मेदारी दी जाएगी।
डाउन टु अर्थ से बातचीत में राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा हिमाचल प्रदेश राज्यप्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष आर.डी. धीमान ने बताया कि अभी हम उस प्लास्टिक को खरीदने की योजना बना रहे हैं, जिसे रिसाइकल नहीं किया जा सकता। इसे हम खरीदारों, दुकानदारों और घर-घर से लेने की योजना पर कार्य कर रहे हैं। इससे कमजोर तबके के लोगों की मदद भी होगी। इसके लिए राज्यभर में कलेक्शन सेंटर बनाए जाएंगे। उन्होंने उम्मीद जतायी कि ये योजना एक महीने के अंदर ही शुरू कर दी जाएगी। इस पॉलीथिन को सीमेंट कंपनियां सरकार से खऱीद सकेंगी। साथ ही सड़क निर्माण के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाएगा। प्लास्टिक की खरीद के लिए राज्य सरकार मूल्य निर्धारित करेगी।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने प्लास्टिक के कचरे को सीमेंट के मिलों में जलाने से ऊर्जा पैदा करने और सड़क बनाने में उपयोग करने के लिए पहल की है। प्लास्टिक हटाओ-पर्यावरण बचाओ अभियान के तहत वर्ष 2009-10 में 208 टन पॉलीथिन और प्लास्टिक को इकट्ठा किया गया और 175 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया गया था। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक 2 किलोमीटर लंबी और 3.7 मीटर चौड़ी सड़क बनाने के लिए लगभग एक टन प्लास्टिक कचरा इस्तेमाल किया जाता है। यानी लगभग 10 लाख प्लास्टिक थैले, जिससे एक टन कोलतार की बचत होती है। इस सड़क पर सूर्य की विकिरणों, अल्ट्रा वायलेट किरणों का प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता। साथ ही सड़क में गढ्ढे कम पड़ते हैं। बोर्ड के मुताबिक प्लास्टिक के कचरे को अगर सड़क निर्माण में इस्तेमाल किया जाए तो इससे करीब 35-40 हजार रुपये प्रति किलोमीटर की बचत होगी। राज्य में वर्ष 2009 से प्लास्टिक के थैलों के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है।
वर्ष 2018 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 15,342 टन प्लास्टिक कचरा रोजाना पैदा होता है, इसमें केवल 9,205 टन प्लास्टिक कचरे का दोबारा इस्तेमाल होता है। जबकि 6,000 टन प्लास्टिक कचरा समंदर, नदी, नालों, तालाबों, जमीन और जंगल में मिलकर पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। इसके साथ ही देश में प्लास्टिक उत्पादन 1.60 करोड़ टन प्रति वर्ष है। इसमें हर वर्ष 10 फीसदी का इजाफा हो रहा है। वर्ष 2020 तक प्लास्टिक उत्पादन 2.2 करोड़ टन होने का अनुमान है। मौजूदा समय में देश में प्लास्टिक का बाजार 25,000 करोड़ रुपये का है।
हिमाचल प्रदेश से लगभग 2 टन प्लास्टिक कचरा रोजाना पैदा होता है। इसमें से मात्र 0.02 टन यानी 200 किलो प्लास्टिक कचरे को ही निष्पादित किया जा पाता है, करीब 300 किलो प्लास्टिक कचरा रिसाइकिल के लिए जाता है। साथ ही करीब 250-400 किलो सीमेंट उद्योग में ईधन के रूप में जलाया जाता है। सरकार की योजना है कि प्लास्टिक कचरे की ऊर्जा को देखते हुए प्लास्टिक कचरे से बिजली पैदा करने के संयंत्र स्थापित किये जाएं। शिमला नगर निगम ऐसा कर भी रहा है। यहां कचरे से बिजली उत्पादन संयत्र में प्रति दिन करीब 1-1.5 टन प्लास्टिक कचरे को जलाकर बिजली बनायी जा रही है।
उत्तराखंड में चली प्लास्टिक एक्सप्रेस
प्लास्टिक कचरा उत्तराखंड के लिए भी बड़ी समस्या है। मई महीने में यहां गति फाउंडेशन और नेस्ले इंडिया ने प्लास्टिक की थैलियों और पैकेट्स को इकट्ठा करने के लिए प्लास्टिक एक्सप्रेस चलायी। गति फाउंडेशन के अनूप नौटियाल के मुताबिक मई में शुरू की गई प्लास्टिक एक्सप्रेस देहरदून से मसूरी के बीच अब तक कररीब 600 किलो प्लास्टिक कचरा उठा चुकी है। जो यहां बने मैगी प्वाइंट्स से इकट्ठा किये गये हैं। इनमें बड़ी संख्या में प्लास्टिक रैपर, मैगी-चिप्स के रैपर्स और कोल्डड्रिंक-पानी की बोतलें शामिल हैं। जिन्हें या तो गहरी खाइयों में उड़ेल दिया जाता या जला दिया जाता। लेकिन प्लास्टिक एक्सप्रेस के ज़रिये इकट्ठा किये गये कचरे को रिसाइकिल के लिए भेजा जाएगा।
धरती को प्लास्टिक ग्रह बनाने से रोकने के लिए इसे रिसाइकल किया जाना बेहद जरूरी है। प्लास्टिक कचरे से प्लास्टिक तेल- ईधन, चारकोल और ब्लैक कार्बन का उत्पादन किया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कहता है कि यदि हम एक टन प्लास्टिक को रिसाइकल करते हैं तो इससे 685 गैलन तेल की बचत होगी, करीब 5.775 किलोवाट बिजली की बचत होगी