दुनिया की सबसे भीषण त्रासदियों में गिनी जाने वाली भोपाल गैस त्रासदी पर पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद को फिर झटका लगा है। भोपाल जिला अदालत के सत्र न्यायालय में इस नरसंहार के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड और उसके भारतीय अभियुक्तों के खिलाफ दायर की गई अपील पर 25 अप्रैल से सुनवाई शुरू हुई।
अदालत ने यह फैसला दिया था कि 29 अप्रैल तक रोज सुनवाई करके 24 मई को निर्णय सुनाया जाए। सोमवार को जब इस पर सुनवाई शुरू हुई तो यूनियन कार्बाइड के दो आरोपियों एसपी चौधरी और जे मुकुंद की ओर से 464 सीआरपीसी के तहत आवेदन लगा दिया गया।
इसमें आरोपियों ने कहा कि उन पर जो आरोप (चार्ज) लगाए गए हैं वो गलत हैं, उसमें त्रुटियां है, जिसकी वजह से उन्हें न्याय मिलने में असफलता मिली है। उनका यह भी कहना है कि 7 जून 2010 का फैसला गलत था और इस मामले में फिर से शुरू से सुना जाना चाहिए। कोर्ट ने इस पर सीबीआई और गैस पीड़ित संगठनों से 11 मई को जवाब देने को कहा है।
इस पर भोपाल गैस पीड़ित संगठनों ने निराशा व्यक्त की है। भोपाल ग्रुप फॉर इंफॉर्मेशन एंड एक्शन की रचना ढींगरा ने कहा कि इन दोषियों के खिलाफ चार्ज 1997 में फ्रेम हुए थे और 25 साल बाद इनको याद आ रहा है कि इन पर चार्ज गलत लगाए गए।
उन्होंने कहा कि इस मामले में और कितनी देरी करवाई जा सकती है, इसमें यूका के वकीलों को महारथ हासिल है। इससे भोपाल गैस कांड के हजारों पीड़ितों को न्याय मिलने की उम्मीद को एक बार फिर झटका लगा है।
3 और 4 दिसम्बर 1984 की रात को भोपाल में यूनियन कार्बाइड कारखाने में भीषण गैस रिसाव हुआ था जिसमें हजारों लोगों प्रभावित हुए थे। इस हादसे का असर अब तक दिखाई देता है।
ऐसे ही एक मामले में 7 जून 2010 को भोपाल जिला अदालत के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड, केशव महिंद्रा सहित उसके 7 भारतीय अधिकारियों को धारा 304 (ए), 336, 337, 338 और 35 आईपीसी के तहत दोषी ठहराया था।
यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड और उसके भारतीय अधिकारियों द्वारा इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की गई थी और तब से यह मामला भोपाल जिला न्यायालय की सत्र अदालत में लंबित है। इस मामले को चलते—चलते तकरीबन 11 साल हो गए हैं।
अभियोजन सीबीआई द्वारा न्यायालय के समक्ष 25 मार्च 2022 को बताया कि 2010 से यह आपराधिक अपील इस माननीय न्यायालय के समक्ष लंबित है और किसी भी उच्च न्यायालय का कोई आदेश नहीं है जो इस अपील कार्रवाई को रोकने के लिए आदेशित करता हो। इस मामले में दो 2 दोषी अधिकारी केवी शेट्टी और विजय गोखले दिवंगत हो चुके हैं।
नवम्बर 2021 में यूसीआईएल के 3 दोषी अधिकारियों किशोर कामदार पूर्व अध्यक्ष, जे. मुकुंद वर्क्स मैनेजर और एसपी चौधरी ने वर्तमान सत्र न्यायालय के न्यायाधीश को इस मामले से हटाने की मांग की क्योंकि उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के मुआवजे प्राधिकरण में 1997 में प्रशासनिक भूमिका में काम किया था।
जिला न्यायाधीश ने इस अर्जी को खारिज कर दिया और इन तीनों अभियुक्तों द्वारा मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की गई। 30 नवम्बर 2021 को मप्र उच्च न्यायालय ने पाया कि अभियुक्तों की याचिका को खारिज करके जिला न्यायाधीश को मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करने के लिए आदेशित किया।
इसके बाद मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए लिए इन तीनों अभियुक्तों द्वारा 20 जनवरी 2022 को सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी याचिका दायर की गई। यूनियन कार्बाइड के दोषी अधिकारियों का यह तर्क है कि उनके द्वारा भोपाल के सत्र न्यायालय में दायर आपराधिक अपील पर तब तक सुनवाई नहीं की जानी चाहिए जब तक कि जिला न्यायाधीश को अलग करने के संबंध में उनके एसएलपी मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं हो जाता, लेकिन इसे भी स्वीकार नहीं किया गया।
25 मार्च को इस मामले में सुनवाई करते हुए सत्र न्यायालय के न्यायाधीश ने आदेशित किया कि 25 से 29 अप्रैल से 29 2022 को वह सभी अपनी अंतिम दलीलें पेश करें और 24 मई को मामले में अंतिम निर्णय के लिए रखा जाएगा।
भोपाल गैस पीड़ित महिला पुरुष संघर्ष मोर्चा की शहजादी बी का कहना है कि हादसे के 37 साल बाद, भोपाल के 25,000 लोगों को मारने और 5 लाख लोगों को घायल करने के लिए जिम्मेदार कंपनियों और अधिकारियों ने आपराधिक अपील की कार्यवाही में देरी के लिए हर रणनीति का इस्तेमाल किया है। दोषी अधिकारियों आज भी आजाद घूम रहे हैं और भोपाल गैस पीड़ित अब भी असमय मौत मर रहे हैं।