प्रदूषण

ग्राउंड रिपोर्ट: गोरखपुर में भी बच्चों के लिए आफत बना वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण के लिहाज से देश के सबसे प्रदूषित क्षेत्र सिंध गंगा के मैदान हैं। उत्तर प्रदेश इसके केन्द्र में है

Satyendra Sarthak

चार माह का यश निमोनिया से पीड़ित है। आठ दिन पहले उसे खांसी शुरू हुई और अगले दिन से सांस फूलने लगी। परिजनों ने भीटी में एक डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने गोरखपुर रेफर कर दिया। यश दाउदपुर स्थित राम जानकी  अस्पताल में भर्ती है, जहां उसकी हालत नाज़ुक है।

यश के पिता खंजर लाल और मां जानकी लगातार बेटे की निगरानी कर रहे हैं। वह उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के सहजनवां के सजनापार गांव के रहने वाले हैं। उन्हें नहीं पता कि उनके बेटे की इस हालत के लिए कौन दोषी है, लेकिन अस्पताल के कर्मचारियों का कहना है कि पिछले कुछ दिनों से अस्पताल में ऐसे बच्चे पहुंच रहे हैं, जिन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है। 

गोरखपुर जिला अस्पताल के बाल विभाग वार्ड में तैनात बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर राघव ने डाउन टू अर्थ को बताया, “पिछले कुछ दिनों से सांस की बीमारी से पीड़ित बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है। ऐसे बच्चों को सुबह तेज खांसी आ रही है और सांस लेने में परेशानी हो रही है। प्रदूषण के कारण उनके फेफड़े सिकुड़ जा रहे हैं इसलिए इन्हें भाप देना पड़ रहा है।” हालांकि अभी अस्पताल में भर्ती करने की नौबत नहीं आ रही है। 

बेशक इन दिनों दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण को लेकर खूब हंगामा हो रहा है, लेकिन राजधानी और राजधानी से सटे इन शहरों के अलावा भी बहुत से शहर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। 

जलवायु थिंक टैंक “क्लामेट ट्रेंड्स” के एक रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण के लिहाज से देश के सबसे प्रदूषित क्षेत्र सिंध गंगा के मैदान हैं। उत्तर प्रदेश इसके केन्द्र में है और प्रदेश की 99.4 प्रदूषित आबादी चिंताजनक वायु प्रदूषण वाले भौगोलिक क्षेत्र में रह रही है। 

2018 में एनजीओ क्लाइमेट एजेंडा ने उत्तर प्रदेश के 14 ज़िलों का अध्ययन कर वायु प्रदूषण पर एक रिपोर्ट “एयर किल्स” नाम से जारी कर बताया कि गोरखपुर और मऊ जैसे छोटे शहर देश की राजधानी दिल्ली और यूपी की राजधानी लखनऊ से भी ज़्यादा प्रदूषित हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि वायु प्रदूषण ग्रामीण इलाक़ों में भी पहुंच गया है। रिपोर्ट में पूरे राज्य को “स्वास्थ्य आपातकाल” के तहत बताया गया था।

यह स्थिति तब है, जब राज्य के कई बड़े शहरों में प्रदूषण निगरानी केंद्रों की संख्या गिनी चुनी है। गोरखपुर में केवल निगरानी केंद्र है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण का सात नवंबर 2023 का बुलेटिन बताता है कि यहां की हवा की गुणवत्ता खराब यानी एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) 195 से 225 के बीच रहा। इससे पहले पांच नवंबर को शहर का एक्यूआई 279 तक पहुंच गया था।  

हवा की बिगड़ती दशा न केवल बच्चों को बीमार कर रही है, बल्कि गर्भस्थ बच्चों और गर्भवती महिलाओं को भी प्रभावित कर रही है। मां की सांस के माध्यम से वायु प्रदूषण के कण प्लेसेंटो को पार करके भ्रूण तक पहुंच जाते हैं। इन कणों के दुष्प्रभाव के कारण शिशु का वजन कम रहता है और मानसिक विकास प्रभावित होता है।

ऐसे बच्चों के सीखने की क्षमता कम होती है और उनमें बौद्धिक विकलांगता का भी ख़तरा रहता है। शिशु का वजन कम होना कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है।

बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में स्त्री रोग विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर सुधीर गुप्ता कहते हैं “किसी भी प्रकार का प्रदूषण फेफड़े को क्षतिग्रस्त करता है। गर्भवती प्रदूषण के कारण पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन ग्रहण नहीं कर पाती है यह भ्रूण के स्वभाविक विकास को रोकता है। इतना ही नहीं, वायु प्रदूषण में सल्फर की मात्रा जितनी अधिक होगी गर्भपात का खतरा भी उतना गंभीर होगा।”

वहीं, बीआरडी मेडिकल कॉलेज बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर भूपेन्द्र कहते हैं “प्रदूषण के कारण शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास बाधित हो सकता है। गर्भवती महिला को अनीमिया हो सकता है। अनीमिया से पीड़ित महिला के द्वारा स्वस्थ बच्चे के प्रसव की उम्मीद बहुत कम होती है।”

गोरखपुर में बढ़ते प्रदूषण के कारण किसी गर्भस्थ शिशु के दुष्प्रभावित होने का केस मिलने के सवाल पर डॉक्टर भूपेन्द्र कहते हैं “अभी तक ऐसा कोई शोध नहीं करवाया गया है कि जिससे साफ हो सके कि बढ़ते प्रदूषण से गर्भवती और शिशु पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है। यह स्पष्ट है कि प्रदूषण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है।”