प्रदूषण

दुनिया भर में 87 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार है जीवाश्म ईंधन से होने वाला प्रदूषण

भारत में जीवाश्म ईंधन से होने वाला वायु प्रदूषण 24.6 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार था| वहीं चीन में इसके कारण 39.1 लाख लोगों की जान गई थी

Lalit Maurya

भारत में भी जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन से 2012 में करीब 24.6 लाख लोगों की जान गई थी| वहीं यदि चीन को देखें तो वहां 39.1 लाख लोगों को इसके चलते अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। गौरतलब है कि यह शोध 2012 से 2018 के आंकड़ों पर आधारित है| यह शोध बर्मिंघम, लीसेस्टर विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के सहयोग से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किया गया है जोकि जर्नल एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित हुआ है। इस शोध में जीवाश्म ईंधन से मरने वालों के जो आंकड़ें सामने आए हैं, वो पिछले शोधों की तुलना में काफी ज्यादा हैं। इससे पहले जर्नल लैंसेट में ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज पर छपे शोध में जीवाश्म ईंधन के कारण हर वर्ष मरने वालों की संख्या को 42 लाख आंका था। 

शोध के अनुसार दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन के उपयोग से होते वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा शिकार चीन, भारत, यूरोप और उत्तर-पूर्वी अमेरिका के लोग बन रहे हैं। 

इससे पहले किए गए शोध, पीएम 2.5 की वैश्विक औसत मात्रा का अनुमान लगाने के लिए उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों और सतह के अवलोकन पर निर्भर थे। लेकिन समस्या यह है कि उपग्रह और सतह के अवलोकन से इस बात का पता नहीं लगता की वायु प्रदूषण के लिए कौन से प्रदूषक मुख्य रूप से जिम्मेवार है। इनके जरिए जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित होने वाले कणों और धूल, जंगल की आग, धुंए और अन्य स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन में अंतर नहीं कर सकते।

शोध से जुड़ी शोधकर्ता लॉरेटा जे मिकले के अनुसार "उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों में आप केवल पहेली का एक हिस्सा देख पाते हैं। इन आंकड़ों में यह नहीं पता चलता कि किस तरह के कण हैं। जिसकी वजह से आंकड़ों में गैप बना रहता है।" इस समस्या से बचने के लिए शोधकर्ताओं ने जिओस-कैम मॉडल का प्रयोग किया है। इसकी मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोग किस तरह के प्रदूषकों में सांस ले रहे हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार यदि चीन अपने जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन को आधा कर दे तो इससे दुनिया भर में करीब 24 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है, जिनमें से 15 लाख तो खुद चीन के नागरिक होंगे।

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन ओपन एक्यू  द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि लाहौर, दिल्ली और ढाका में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण है। उनके द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार  लाहौर में पीएम 2.5 का वार्षिक औसत 123.9 था, जबकि दिल्ली में 102 और ढाका में 86.5 रिकॉर्ड किया गया था। दुनिया की 90 फीसदी आबादी पहले ही जहरीली हवा में सांस ले रही है, जबकि उनमें से केवल आधे यह जानते है कि जिस हवा में वो सांस ले रहे हैं वो कितनी जहरीली है।

वायु प्रदूषण का खतरा कितना बड़ा है इस बात का अंदाजा आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि दुनिया भर में 90 फीसदी लोग ऐसी हवा में सांस ले रहे हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इंसान के लिए हानिकारक है। यह औसतन हर व्यक्ति की आयु में से तीन साल छीन रहा है। शोध के अनुसार वायु प्रदूषण सबसे ज्यादा बच्चों और बुजुर्ग व्यक्तियों पर असर डाल रहा है।

स्वास्थ्य सुविधाओं के आभाव में इसके सबसे ज्यादा शिकार गरीब देशों के लोग बन रहे हैं। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2020 के अनुसार वायु प्रदूषण के चलते 2019 में भारत के 116,000 से भी ज्यादा नवजातों की मौत हुई थी, जबकि इसके कारण 16.7 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता जोएल श्वार्ट्ज के अनुसार अक्सर कार्बन डाइऑक्साइड और जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में जीवाश्म ईंधन के खतरों के बारे में बात करते हैं। ऐसे में हम इसके स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभाव को अनदेखा कर देते हैं। ऐसे में जब हम जानते हैं कि जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन में कमी करके लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है तो वह नीतिनिर्मातों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने के लिए प्रेरित करेगा। ऐसे में रिन्यूएबल एनर्जी के उपयोग को बल मिलेगा।