प्रदूषण

अंटार्कटिक की ताजा बर्फ में मिले माइक्रोप्लास्टिक के सबूत, जानिए क्यों चिंतित हैं वैज्ञानिक

Lalit Maurya

वैज्ञानिकों को पहली बार अंटार्कटिक में गिरी ताजा बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के सबूत मिले हैं, जो अपने आप में चिंता का विषय है। न्यूजीलैंड में कैंटरबरी विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में 19 अलग-अलग जगहों से ताजा गिरी बर्फ के नमूने एकत्र किए थे जिनमें से सभी में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता चला है। इस शोध से जुड़े निष्कर्ष साइंटिफिक जर्नल द क्रायोस्फीयर में प्रकाशित हुए हैं।

देखा जाए तो अधिकांश लोग अंटार्कटिका को एक प्राचीन और अपेक्षाकृत ऐसे सुदूर स्थान के में देखते हैं जो बाकी दुनिया से अछूता है। जहां आज भी इंसानों प्रभाव बहुत ज्यादा नहीं है। ऐसे में इस स्थान पर ताजा गिरी बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक्स का पाया जाना एक गंभीर खतरे की ओर इशारा करता है।

गौरतलब है कि जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर छोटे-छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इसके साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने से भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं। सामान्यतः प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है।

शोध में वैज्ञानिकों को प्रति लीटर पिघली बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक्स के औसतन 29 कण मिले हैं, जोकि आसपास के रॉस सागर और अंटार्कटिक समुद्री बर्फ में पहले पाई गई माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा से कहीं ज्यादा है।

वैज्ञानिकों को इन नमूनों में 13 अलग-अलग प्रकार के प्लास्टिक की मौजूदगी का पता चला है, जिसमें सबसे आम पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (या पीईटी ) था। इसका इस्तेमाल ज्यादातर शीतल पेय की बोतलों जैसे कोल्ड ड्रिंक्स और कपड़ों आदि में किया जाता है। हैरानी की बात है कि इस प्लास्टिक के कण 79 फीसदी नमूनों में पाए गए हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले शोधों में वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि प्लास्टिक के यह महीन कण उन जगहों पर मिल चुके हैं जहां इनकी मौजूदगी लगभग नामुमकिन थी, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर यह खतरा कितना गंभीर रूप लेता जा रहा है।

इस बारे में शोधकर्ता एलेक्स एवेस का कहना है कि अंटार्कटिक की ताजा बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक्स का पाया जाना अविश्वसनीय के साथ-साथ दुखद भी है। जो स्पष्ट करता है कि प्लास्टिक प्रदूषण आज सीमाओं से परे फैल चुका है जिससे दुनिया के सुदूर स्थान भी बचे नहीं हैं। उनके अनुसार उन्होंने अंटार्कटिका के रॉस द्वीप क्षेत्र में 19 साइटों से बर्फ के नमूने लिए थे और उन सभी में माइक्रोप्लास्टिक के कण मिले हैं।

माइक्रोप्लास्टिक्स को लेकर क्यों चिंतित हैं वैज्ञानिक

वैज्ञानिकों के मुताबिक माइक्रोप्लास्टिक न केवल इंसानी स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण के लिए भी बड़ा खतरा हैं। जो जीवों के विकास, प्रजनन के साथ-साथ उनके जैविक कार्यों को भी प्रभावित कर रहे हैं। इनका असर पूरे इकोसिस्टम पर पड़ रहा है। इतना ही नहीं व्यापक पैमाने पर हवा में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी बर्फ पिघलने की रफ्तार पर भी असर डाल रही है जो कहीं इसकी वजह से कहीं ज्यादा तेज हो जाती है। इस तरह यह जलवायु पर भी असर डाल रही है।

इस पर हाल ही में किए एक अन्य शोध से पता चला है कि वातावरण में पहुंचने के बाद प्लास्टिक के यह महीन कण छह दिनों तक हवा में रह सकते हैं। इतने समय में यह कई महाद्वीपों की यात्रा कर सकते हैं। इस अध्ययन से पहले भी माइक्रोप्लास्टिक्स के यह टुकड़े समुद्रों की गहराइयों से लेकर पहाड़ की ऊंचाइयों तक मिल चुके हैं। इतना ही नहीं इन कणों ने इंसानी रक्त और फेफड़ों में भी अपनी पैठ बना ली है।

इतना ही नहीं कुछ समय पहले जर्नल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में प्रकाशित एक अध्ययन में अजन्मे बच्चे के गर्भनाल में भी माइक्रोप्लास्टिक होने के सबूत मिले थे। यदि इंसानी स्वास्थ्य पर इनके असर की बात करें तो वैज्ञानिक अभी भी इसे पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं। हालांकि इस बात की जानकारी है कि शरीर में पहुंचने के बाद माइक्रोप्लास्टिक के यह कण कोशिकाओं की कार्य प्रणाली को खराब कर सकते हैं।

पता चला है कि इनकी मौजूदगी के कारण कोशिकाओं की मेटाबोलिज्म प्रक्रिया धीमी पड़ गई थी, उनका विकास रुक गया था और आकार में भी बदलाव देखा गया था। इसके साथ ही प्लास्टिक के यह कण बैक्टीरिया में एंटीबायोटिक प्रतिरोध को 30 गुना तक बढ़ा सकते हैं, जोकि स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।   

ऐसे में यह जरुरी है कि प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग में कमी की जाए और उसके स्थान पर जहां तक मुमकिन हो उसके विकल्प के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए, क्योंकि कभी वरदान समझा जाने वाला यह प्लास्टिक आज दुनिया के लिए अभिशाप बनता जा रहा है।

इसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं, क्योंकि हमने बड़े पैमाने पर इसका दुरूपयोग किया है। आज बड़े पैमाने पर प्लास्टिक से पैदा होने वाले कचरे को ऐसे ही वातावरण में छोड़ा जा रहा है जो लौटकर माइक्रोप्लास्टिक्स के रूप में हमारे शरीर और पर्यावरण में अपनी पैठ बना रहा है। ऐसे में यदि हम आज भी न सम्भले तो भविष्य में इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं।