प्रदूषण

सिंगरौली में जानलेवा हादसे के बाद भी जारी है रिलांयस यूनिट से फ्लाई ऐश का बहाव

रिलांयस की सासन पावर लिमिटेड ने हादसे के बाद भी न ही फ्लाई ऐश की सफाई का काम तेज किया है और न ही सभी पीड़ितों की आवाज सुनी है

Vivek Mishra

मध्य प्रदेश के सिंगरौली में रिलायंस सासन पावर लिमिटेड अपने औद्योगिक जानलेवा हादसे के बाद भी सबक नहीं ले पाया है। घटना को दो माह बीत चुके हैं और अब भी करीब 2 लाख टन राख (फ्लाई ऐश) गवइया नाले में व 2.15 लाख टन फ्लाई ऐश तटबंध टूटने वाली जगह के बगल कंपार्टमेंट 5 क्षेत्र में फैली है। गवइया नाला रिहंद नदी से जुड़ा है और बरसात के कारण पूरी संभावना है कि नाले से फ्लाई ऐश का बहाव फिर हो और रिजर्वायर प्रदूषित हो जाए। कंपनी ने हादसे में मरने वाले कुछ पीड़ितों को मुआवजा देने का काम भले ही जोर-दबाव में तेजी से किया है लेकिन नदी व कृषि क्षेत्र में फैली जहरीले फ्लाई ऐश की सफाई का काम वह बहुत मंद गति से कर रही है।

फ्लाई ऐश से प्रभावित होने वाला गवइया नाला लगभग 6.5 किलोमीटर लंबा, 30 मीटर चौड़ा और औसतन एक मीटर गहरा है। 14-15 जुलाई को प्रभावित जगह पर किए गए केंद्र व राज्य के अधिकारियों की निरीक्षण रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में तटबंध टूटने का कारण ऊपरी सतह पर हाइड्रोस्टेटिक प्रेशर को बताया गया है। हाइड्रोस्टेटिक प्रेशर यानी तटबंध के ऊपरी सतह पर काफी वेग होने के कारण निचले सतह क्षेत्र (लो-लाइंग एरिया) में तटबंध पर अत्यधिक दबाव बन गया जिससे तटबंध क्षतिग्रस्त हुआ और जहरीली राख के कारण जान-माल का काफी नुकसान हुआ। 

तटबंध टूटने की वजह का तकनीकी पड़ताल करने वाले आईआईटी बीएचयू जियोटेक्निकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अरुण प्रसाद ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, “तटबंध विफल होने की शुरुआती वजह पोक्लेन मशीन का फिसलना था लेकिन तटबंध को काफी नुकसान अपस्ट्रीम पर गंभीर हाइड्रोस्टेटिक प्रेशर के कारण पहुंचा। इस क्षति के कारण फ्लाई ऐश के कीचड़ वाले बहाव ने रिटेंशन वॉल (दबाव को झेलने वाली दीवार) को भी काट दिया। कीचड़ में भूजल के मिलने से फ्लाई ऐश और अधिक विकराल हुई और जिसके कारण गांवों में जान-माल की क्षति हुई। इसके अलावा चेकडैम भी डंपिंग साइट के बिल्कुल नजदीक बनाया गया था जिससे यह क्षति हुई।“

हीरालाल बैस बनाम रिलायंस सासन पावर लिमिटेड का मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में लंबित है। सिंगरौली में 10 अप्रैल, 2020 को मैसर्स रिलायंस सासन पावर लिमिटेड के फ्लाई ऐश कीचड़ का तेज बहाव परिसर के बाहर हुआ था। इस फ्लाई ऐश कीचड़ के तेज बहाव के कारण हर्रहवा गांव में छह लोगों की मृत्यु हुई, जिनमें तीन बच्चे, एक महिला और एक पुरुष शामिल थे। इसके अलावा आसपास क्षेत्र में पर्यावरण, जीवन और संपत्ति को भारी क्षति पहुंची।

इस जानलेवा हादसे के कारण को लेकर प्लांट के अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 10 अप्रैल, 2020 की शाम 4 बजकर 40 मिनट पर फ्लाई ऐश की डंपिंग गड्ढे वाली दीवार टूटी थी। यह दीवार निचली सतह वाले क्षेत्र पर थी। फ्लाई ऐश डंपिंग के लिए परिसर के भीतर यह चौथा और पांचवा कंपार्टमेंट था। (फ्लाई ऐश डंपिंग के लिए अलग-अलग कंपार्टमेंट हैं। एक कंपार्टमेंट दूसरे कंपार्टमेंट से बिल्कुल अलग होता है) चौथे कंपार्टमेंट के पास एक पोक्लेशन मशीन मिट्टी की बराबर करने का काम कर रही थी और उसी वक्त मशीन का बैलेंस बिगड़ा और वह ढ़लान की तरफ लुढ़क गई जिससे तटबंध की दीवार क्षतिग्रस्त हो गई और बड़ी मात्रा में फ्लाई ऐश बहकर गांव की तरफ चली गई।   

एनजीटी के आदेश (29 जून, 2020) के आधार पर गठित संयुक्त समिति ने 14-15 जुलाई को सिंगरौली के प्रभावित क्षेत्र का दौरा और निरीक्षण किया। वहीं, 28 जुलाई, 2020 को अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रिलायंस की सासन यूनिट जिस लो लाइंग एरिया के तहत कंपार्टमेंट में फ्लाई ऐश डंप कर रही थी, वह करीब 6.5 मीटर गहरा 41.62 हेक्टेयर क्षेत्र है जो 27.06 लाख घन मीटर वॉल्यूम तक फ्लाई ऐश डंपिग की क्षमता रखता है। कंपनी के जरिए हाई कंस्ट्रेशन स्लरी डिस्पोजल (एचसीडीसी) डिस्चार्ज किया जा रहा था। यानी ऐसी राख का कीचड़ जिसमें पानी और राख का अनुपात 30:70 का था। 10 अप्रैल यानी हादसे वाले दिन तक संबंधित कंपार्टमेंट में 10 लाख घन मीटर फ्लाई ऐश डंप की गई थी।

परिसर के आइसलैंड चार (सी-5 क्षेत्र) यानी गवइया नाले और आसपास कृषि क्षेत्र में डिपॉजिट 10 लाख टन फ्लाई ऐश से 11 हेक्टेयर क्षेत्र और 3 मीटर गहराई तक 4 लाख टन फैला। फिलहाल 3.5 लाख टन फ्लाई ऐश को सी-5 क्षेत्र से निकालकर आइसलैंड 3 में डंप किया गया है। साथ ही ऐश डाइक एक और 2 को ऊंचा उठाने व बंधे को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया गया है। वहीं, 2.67 लाख टन राख गवइया नाले से निकाली गई है जिसका इस्तेमाल भी बंधा मजबूत करने में किया गया है।

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सिंगरौली के क्षेत्रीय अधिकारी एसडी वाल्मिकी ने 17 जुलाई, 2020 को यूनिट के दिए गए आदेश में कहा है कि यूनिट रिंहद नदी को प्रदूषित होने से बचाने के लिए न सिर्फ फ्लाई ऐश की सफाई जल्द करे बल्कि बारिश की गणना और भू व सतह के जल का सप्ताह में दो बार नमूने लेकर मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से जांच कराए और जांच परिणाम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उपलब्ध कराए। जांच समिति ने सिफारिश में कहा है कि यूनिट अब जब भी फ्लाई ऐश का डिस्पोजल करेगी उसे पहले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति हासिल करनी होगी।

एमपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक कंपनी ने पर्यावरणीय क्षति के लिए 10 करोड़ रुपए के अंतरिम हर्जाने में महज 2 करोड़ रुपए ही अभी तक दिए हैं। इसके अलावा कंपनी ने छह मृतकों के परिजनों और अन्य पीड़ितों को कुल 125.3 लाख रुपए दिए हैं। इसके अलावा तीन अन्य गांवों में कृषि नुकसान आकलन का भी मुआवजा दिया है। हालांकि जांच समिति ने कहा है कि अब भी कई ऐसे लोग हैं जिन्हें कंपनी की ओर से मुआवजा दिया जाना चाहिए। इसके लिए कंपनी स्थानीय प्राधिकरणों के साथ मिलकर आसपास के ग्रामीणों की शिकायत सुने और उनका समाधान करे।