पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) यानी प्रदूषण के महीन कणों के कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ गया है। रिसर्च से पता चला है कि पिछले 29 वर्षों में प्रदूषण के इन महीन कणों के कारण कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों से होने वाली मौतों में करीब 35 फीसदी का इजाफा हुआ है।
हालांकि रिसर्च के अनुसार मौतों में होने वाली यह वृद्धि महिलाओं और पुरुषों में एक समान नहीं है। इसकी वजह से जहां पुरुषों की मृत्यु में 43 फीसदी की वृद्धि देखी गई। वहीं महिलाओं की मृत्यु में 28.2 फीसदी की वृद्धि रिकॉर्ड की गई।
आंकड़ों के मुताबिक जहां 1990 में पार्टिकुलेट मैटर के कारण हुई कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के चलते वैश्विक स्तर पर 26 लाखो लोगों की मौत हुई थी, वहीं 2019 में मौतों का यह आंकड़ा बढ़कर 35 लाख पर पहुंच गया था। यह जानकारी अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आई है।
कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के बारे में बता दें कि यह कोई एक बीमारी नहीं बल्कि ऐसे रोगों का एक समूह है जो ह्रदय या रक्त वाहिकाओं जैसे धमनियों और शिराओं को निशाना बनाते हैं। वहीं पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) से तात्पर्य प्रदूषण के उन महीन कणों से है जो आकार में बहुत छोटे होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकते हैं।
यह अध्ययन तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर 204 देशों के 1990 से 2019 के लिए जुटाए प्रदूषण से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया है। जिन्हें ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज अध्ययन के लिए एकत्र किया गया था।
इन आंकड़ों की मदद से शोधकर्ताओं ने यह समझने का प्रयास किया है कि पार्टिकुलेट मैटर, स्वास्थ्य, मृत्यु और विकलांगता सम्बन्धी जोखिम को किस हद तक प्रभावित कर रहा है। हालांकि यह अध्ययन स्ट्रोक और इस्केमिक हृदय रोग तक ही सीमित है, जिसके दौरान ह्रदय के कुछ हिस्सों में रक्त और ऑक्सीजन की पूर्ति बाधित हो जाती है।
विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों में भी हुई 31 फीसदी की वृद्धि
रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके अनुसार ऐसा नहीं है कि पार्टिकुलेट मैटर से होने वाली यह कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां केवल मौतों में ही इजाफा कर रही है, इनकी वजह से 1990 से 2019 के बीच दुनिया भर में विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों में भी 31 फीसदी की वृद्धि हुई है। जो 1990 में 68 लाख से बढ़कर 2019 में 89 लाख पर पहुंच गई हैं। बता दें कि एक विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष से तात्पर्य पूरे एक वर्ष के लिए स्वास्थ्य को हुई हानि को दर्शाता है।
शोध के मुताबिक क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों ने भी इसे प्रभावित किया है। जो क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर थे वहां सशक्त क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक जानें गई हैं। वहीं इसके विपरीत इन क्षेत्रों में लोगों को तुलनात्मक रूप से कम वर्षों तक इसके कारण हुई विकलांगता को झेलना पड़ा था।
अध्ययन में जो चौंकाने वाली बात सामने आई वो यह थी कि जब शोधकर्तांओं ने लोगों की उम्र को ध्यान में रखा तो प्रदूषण के इन कणों और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के चलते होने वाली मौतों में 37 फीसदी की गिरावट देखी गई।
अध्ययन में जो चौंकाने वाली बात सामने आई वो यह थी कि जब शोधकर्तांओं ने लोगों की उम्र को ध्यान में रखा तो प्रदूषण के इन कणों और कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों के चलते होने वाली मौतों में 37 फीसदी की गिरावट देखी गई।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रोफेसर फरशाद फरजादफर ने प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है कि, "मौतों में यह कमी एक अच्छा संकेत है। जो बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों और उपचार की उपलब्धता का संकेत देती है। फिर भी विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों में वृद्धि से संकेत मिलता है कि जहां कम लोग हृदय रोग से मर रहे हैं वहीं पहले की तुलना में कहीं ज्यादा लोग विकलांगता के साथ जीने को मजबूर हैं।"
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने घर के बाहर और भीतर मौजूद प्रदूषण के सम्बन्ध में भी अंतर दर्ज किया है। रिसर्च के अनुसार इस दौरान जहां आउटडोर पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण से जुड़ी हृदय संबंधी मौतों और विकलांगता में उम्र के समायोजन के बाद आठ फीसदी की वृद्धि देखी गई वहीं दूसरी तरफ घरों के भीतर प्रदूषण के मामले में इसमें उल्लेखनीय रूप से 65 फीसदी की कमी दर्ज की गई।
इस बारे में शोधकर्ता फरजादफर का कहना है कि, “सॉलिड फ्यूल्स की वजह से घरों के भीतर होने वाले प्रदूषण के प्रभावों में गिरावट के लिए परिष्कृत बायोमास, इथेनॉल, गैस, सौर ऊर्जा और बिजली जैसे स्वच्छ ऊर्जा के स्रोतों तक बेहतर पहुंच और उपयोग वजह हो सकते हैं।" वहीं बेहतर स्टोव और वेंटिलेशन भी इसमें मददगार हो सकते हैं।"
इससे पहले के शोधों में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि प्रदूषण के यह महीन कण ह्रदय सम्बन्धी बीमारियों से होने वाली मौतों और विकलांगता से जुड़े हैं। इन कणों का संपर्क हृदय रोग, स्ट्रोक और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। बता दें कि प्रदूषण के यह सूक्ष्म कण आंख, नाक या गले में जलन पैदा कर सकते हैं। यह कण आसानी से सांस के जरिए हमारे फेफड़ों और रक्तप्रवाह तक पहुंच सकते हैं।
वायु प्रदूषण का खतरा, दुनिया के लिए कोई नया नहीं है। यह कितना बड़ा है इस बात का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुनिया भर में हर साल तकरीबन 90 लाख लोग वायु प्रदूषण के चलते असमय मारे जाते हैं, जबकि जो बचे हैं उनके जीवन के भी यह औसतन प्रति व्यक्ति तीन साल छीन रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया की 99 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस लेने को मजबूर है जो स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक है।
भारत में वायु प्रदूषण की मौजूदा स्थिति आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।