जब दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करने के लिए पांचवीं अंतर-सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी 5) में हिस्सा लेने के लिए अगले हफ्ते बुसान, दक्षिण कोरिया में मिलेगी, तो भारत सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध के लिए वैश्विक मानदंड विकसित करने में नेतृत्व कर सकता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के शोधकर्ताओं ने यह बात कही है। सीएसई के शोधकर्ता इन वार्ताओं पर कई वर्षों से गहराई से नजर रखे हुए हैं।
मार्च 2022 में दुनिया ने "प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करने" के लिए एक ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए) प्रस्ताव 5/14 को स्वीकार किया। इस प्रस्ताव ने एक ऐसी कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि बनाने के लिए अंतर-सरकारी वार्ता समिति (आईएनसी) की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।
अब तक पंटा डेल एस्टे, पेरिस, नैरोबी और ओटावा में चार दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं। पांचवीं वार्ता बुसान में 25 नवंबर से 1 दिसंबर 2024 तक होने वाली है। इसे अंतिम दौर की वार्ता कहा जा रहा है, जहां सदस्य देश प्लास्टिक प्रदूषण से संबंधित मुद्दों पर सहमति बनाने का प्रयास करेंगे।
सिंगल-यूज प्लास्टिक का उत्पादन दुनिया में कुल प्लास्टिक उत्पादन का 36 प्रतिशत है। इसमें से लगभग 85 प्रतिशत गलत तरीके से प्रबंधित होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे पर्यावरण में पहुंचकर प्रदूषण फैलाते हैं।
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण कहती हैं: “दुनिया के 141 देशों ने किसी न किसी प्रकार के प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध या प्रतिबंधात्मक उपाय लागू किए हैं, जो यह दर्शाता है कि सदस्य देश कार्रवाई करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, विभिन्न देशों, प्रांतों और राज्यों में नियमों में असंगतता ने इन प्रतिबंधों को लागू करना अपेक्षा से अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है।”
भारत ने यूएनईए 4 में एक प्रस्ताव पेश किया था, जिसका उद्देश्य "सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों से होने वाले प्रदूषण को समाप्त करना" था।
सीएसई के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और सर्कुलर इकॉनमी कार्यक्रम के निदेशक अतिन बिस्वास कहते हैं: “भारत सिंगल-यूज प्लास्टिक को क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर समाप्त करने के प्रयासों में एक अग्रणी भूमिका निभाने के लिए अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है।”
2019 में भारत सरकार ने अनावश्यक सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों की पहचान के लिए एक मानदंड-आधारित ढांचा तैयार किया, इसके तहत कुल 40 सिंगल-यूज प्लास्टिक उत्पादों का मूल्यांकन किया गया और 19 उत्पादों का उत्पादन, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग प्रतिबंधित कर दिया गया।
अतिन बिस्वास कहते हैं, “भारत द्वारा विकसित ये मानदंड एक वैश्विक ढांचे के निर्माण के लिए आधार प्रदान कर सकता है।” आईएनसी बैठकों में कई देशों ने भारत के मानदंड-आधारित दृष्टिकोण का समर्थन किया है।
सीएसई के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और सर्कुलर इकॉनमी कार्यक्रम के प्रबंधक सिद्धार्थ जी सिंह के अनुसार वैश्विक मानदंड विकसित करने और इसे अंतर्राष्ट्रीय संधि का हिस्सा बनाने के विचार को कम से कम 70 सदस्य देशों का समर्थन मिल चुका है।
भारत द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों और अन्य देशों के वैश्विक प्रतिबंध प्रस्तावों के बीच कई समानताएं हैं। इन समानताओं में कचरे की प्रवृत्ति, पर्यावरणीय प्रभाव, पुनर्चक्रण (रिसाइकिल) क्षमता, संग्रहणीयता और विकल्पों की उपलब्धता जैसे मानदंड शामिल हैं। भारत ने उत्पाद की सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर भी ध्यान दिया है।
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि ये समानताएं दर्शाती हैं कि वैश्विक सहमति के लिए आधार पहले से ही तैयार है। साझा सिद्धांतों पर काम करके और सफल राष्ट्रीय मॉडलों से सीख लेकर, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक समग्र, विज्ञान-आधारित दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए।