प्रदूषण

फेस मास्क बन रहे हैं दूसरी बड़ी प्लास्टिक समस्या

Dayanidhi

फेस मास्क कोरोनावायरस और अन्य बीमारियों के फैलने से रोकने में मदद करते हैं, कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने के लिए लगभग सभी स्वास्थ्य समूहों और देशों द्वारा बड़े पैमाने पर लोगो को मास्क का उपयोग करने को कहा गया।

प्लास्टिक उत्पादों की तरह "फेंकने वाली जीवन शैली" के तहत, डिस्पोजेबल मास्क 2003 के सार्स से कोविड-19 तक महामारी का प्रतीक रहा है। हालांकि इस बात की कोई आधिकारिक रिपोर्ट नहीं है कि कितने मास्कों का निपटान किया जाता है।

हाल के अध्ययनों में अनुमान लगाया गया है कि दुनिया भर में हम हर महीने 129 अरब फेस मास्कों का उपयोग करते हैं, जिसका मतलब है कि हम हर मिनट 30 लाख मास्कों का उपयोग कर रहे हैं। उनमें से ज्यादातर प्लास्टिक माइक्रोफाइबर से बने डिस्पोजेबल फेस मास्क हैं।

शोध में चेतावनी दी गई है कि मास्कों के अनुचित तरीके से निपटान बढ़ता जा रहा है, इसकी वजह से पर्यावरणीय खतरे बढ़ सकते हैं, इन खतरों की पहचान कर इसे अगली प्लास्टिक की समस्या बनने से रोकना आवश्यक है।

इस शोध की अगुवाई दक्षिण डेनमार्क विश्वविद्यालय के पर्यावरण विषविज्ञानी एल्विस जेनबो जू और प्रिंसटन विश्वविद्यालय से सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग के प्रोफेसर जियाओंग जेसन रेन ने की है।

मास्क रीसाइक्लिंग के लिए अलग से कोई दिशानिर्देशों का न होना

डिस्पोजेबल मास्क प्लास्टिक से बने उत्पाद हैं, जिन्हें आसानी से नष्ट नहीं किया जा सकता है, लेकिन ये पारिस्थितिकी तंत्र में व्यापक रूप से फैलने वाले सूक्ष्म प्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक जैसे छोटे प्लास्टिक कणों में टूट सकते हैं।

डिस्पोजेबल मास्क का विशाल उत्पादन प्लास्टिक की बोतलों की तर्ज पर हो रहा है, जिनका प्रति माह उत्पादन 4300 करोड़ होने का अनुमान है।

शोधकर्ताओं ने कहा हालांकि, प्लास्टिक की बोतलों को जिनमें से ऐप. 25 पीसीटी. रीसायकल किया जाता है, लेकिन मास्क रीसायकल पर कोई आधिकारिक मार्गदर्शन नहीं है, जिससे इसे ठोस कचरे के रूप में निपटाए जाने के अधिक आसार हैं।

प्लास्टिक बैग की तुलना में मास्क की अधिक चिंता

यदि रीसाइक्लिंग करके निपटाया नहीं जाता है, तो अन्य प्लास्टिक कचरे की तरह, डिस्पोजेबल कहे जाने वाले मास्क पर्यावरण, ताजे पानी के स्रोतों और महासागरों में समा सकते हैं, जहां ये कम समय में बड़ी संख्या में सूक्ष्म आकार के कणों में टूटकर (5 मिमी से छोटे) कण उत्पन्न कर सकता है। एक सप्ताह के अंदर ये कण अति सूक्ष्म 1 माइक्रोमीटर से छोटे कणों में टूट जाता है जिसे नैनोप्लास्टिक कहा जाता है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि एक नई और बड़ी चिंता यह है कि मास्क सीधे अति सूक्ष्म आकार के प्लास्टिक फाइबर (~ (टिल्ड) 1 से 10 माइक्रोमीटर की मोटाई) से बनाए जाते हैं। जब यह वातावरण में टूटता है, तो मास्क प्लास्टिक बैग की तुलना में अधिक सूक्ष्म आकार के प्लास्टिक कणों को आसानी और तेजी से फेला सकता है।

नए मास्क या नैनोमास्क सीधे सूक्ष्म (नैनो) आकार के प्लास्टिक फाइबर जो 1 माइक्रोमीटर से छोटे व्यास के होते है, का उपयोग कर बनाए जाते हैं, जाहिर है इनका प्रभाव बहुत खराब हो सकता हैं। इस तरह के मास्क नैनोप्लास्टिक प्रदूषण का एक नया स्रोत हैं।

शोधकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि वे नहीं जानते कि पर्यावरण में पाए जाने वाले बड़ी संख्या में प्लास्टिक के कणों में मास्कों का कितना योगदान है, केवल इसलिए कि प्रकृति में मास्क के नष्ट होने के कोई आंकड़े मौजूद नहीं है। यह शोध पत्रिका फ्रंटियर ऑफ एनवायर्नमेंटल साइंस एंड इंजीनियरिंग में प्रकाशित हुआ है।

लेकिन हम जानते हैं कि, अन्य प्लास्टिक कचरे की तरह, डिस्पोजेबल मास्क भी हानिकारक रासायनिक और जैविक पदार्थों, जैसे कि बिस्फेनॉल ए, भारी धातुओं, साथ ही रोगजनक सूक्ष्म जीवों को जमा और इन्हें वातावरण में जारी कर सकते हैं। एल्विस जेनबो जू कहते हैं कि ये पौधों, जानवरों और मनुष्यों पर अप्रत्यक्ष प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।

इस समस्या से निपटने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

एल्विस जेनबो जू और जियोंग जेसन रेन ने समस्या से निपटने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए:

  • संग्रह और निपटान के लिए मास्क केवल कचरे के डिब्बे में डाले
  • मास्क के कचरे के लिए बने दिशानिर्देशों और अपशिष्ट प्रबंधन के सख्त कार्यान्वयन पर विचार किया जाना चाहिए
  • सूती कपड़े के मास्क जिनका फिर से उपयोग किया जा सके इस पर विचार किया जाना चाहिए
  • जिन्हें आसानी से नष्ट किया जा सके (बायोडिग्रेडेबल) मास्कों के निर्माण पर विचार करना होगा