प्रदूषण

वाहनों के प्रदूषण का केवल दो घंटे का संपर्क ही दिमाग पर डाल सकता है असर

जर्नल एनवायर्नमेंटल हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि यातायात प्रदूषण का सामान्य स्तर भी कुछ घंटों में मानव मस्तिष्क की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि यातायात में प्रदूषण का कुछ घंटों का संपर्क भी आपके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। इस बारे में हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि ट्रैफिक प्रदूषण के केवल दो घंटों के संपर्क में रहने से हमारी दिमागी गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं।

गौरतलब है कि ब्रिटिश कोलंबिया और विक्टोरिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया यह दुनिया में अपनी तरह का पहला अध्ययन है जिसमें इस बात का खुलासा किया गया है कि यातायात प्रदूषण का सामान्य स्तर भी कुछ घंटों में मानव मस्तिष्क की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है।

जर्नल एनवायर्नमेंटल हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से मस्तिष्क पर बड़ी तेजी से प्रभाव पड़ता है। रिसर्च के मुताबिक डीजल प्रदूषण के सिर्फ दो घंटों के संपर्क में आने से इंसानी मस्तिष्क की फंक्शनल कनेक्टिविटी में कमी आ जाती है। गौरतलब है कि मस्तिष्क की यह फंक्शनल कनेक्टिविटी इस बात की माप है कि मस्तिष्क के विभिन्न हिस्से एक दूसरे के साथ कैसे बातचीत और संवाद करते हैं।

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क की गतिविधियों में आए बदलावों के अध्ययन के लिए फंक्शनल मैग्नेटिक रेसोनेंस इमेजिंग (एफएमआरआई) तकनीक की मदद ली है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन के दौरान मस्तिष्क के डिफॉल्ट मोड नेटवर्क (डीएमएन) में बदलाव का विश्लेषण किया है, जो आपस में एक दूसरे से जुड़े मस्तिष्क के हिस्सों का एक समूह है।

यह हिस्से स्मृति और हमारी आंतरिक सोच में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि साफ हवा की तुलना में डीजल उत्सर्जन के संपर्क में आने के बाद 'डीएमएन' के व्यापक हिस्सों में फंक्शनल कनेक्टिविटी में कमी दर्ज की गई थी।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और विक्टोरिया विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉक्टर जोडी गवरिलुक ने जानकारी दी है कि, "हम जानते हैं कि डीएमएन के हिस्सों में फंक्शनल कनेक्टिविटी में आती कमी संज्ञानात्मक प्रदर्शन में गिरावट और अवसाद के लक्षणों से जुड़ी हुई है।

हालांकि साथ ही उन्होंने यह भी माना कि इन बदलावों के कार्यात्मक प्रभावों को पूरी तरह से समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है। उनके अनुसार यह संभव है कि यह बदलाव लोगों की सोच या कार्य करने की क्षमता को भी कमजोर कर सकते हैं।

वहीं अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता डॉक्टर क्रिस कार्ल्स्टन का कहना है कि विशेष रूप से मस्तिष्क में जो यह बदलाव देखे गए थे वो अस्थाई थे। वायु प्रदूषण के जोखिम के बाद मस्तिष्क में कनेक्टिविटी सामान्य हो गई थी।

हालांकि उनका अनुमान है की यह प्रभाव उन क्षेत्रों में लम्बे समय तक रह सकते हैं जहां प्रदूषण का निरंतर जोखिम बना रहता है। उनके अनुसार लोगों को उस हवा के बारे में सावधान रहना चाहिए जिसमें वो सांस ले रहे हैं। साथ ही उनका मानना है कि कारों से निकलने वाले प्रदूषण जैसे हानिकारक वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से बचने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए।

भारत में भी गंभीर है प्रदूषण की स्थिति

देखा जाए तो आज बढ़ता वायु प्रदूषण दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या बन चुका है। आलम यह है कि आज इस अदृश्य खतरे से दुनिया का कई भी क्षेत्र सुरक्षित नहीं है। वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार दुनिया की 100 फीसदी आबादी ऐसी हवा में सांस ले रही है जोकि उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

भारत में तो इसका खतरा कई गुना ज्यादा है। अनुमान है कि बढ़ते प्रदूषण के चलते दुनिया भर में हर साल करीब 90 लाख लोग असमय काल के गाल में समा जाते हैं। जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित एक नए अध्ययन के हवाले से पता चला है कि भारत में हर साल दो लाख से ज्यादा अजन्मों को बढ़ता वायु प्रदूषण गर्भ में ही मार रहा है। वहीं एक अन्य रिसर्च के मुताबिक वायु प्रदूषण के चलते दक्षिण एशिया में हर साल तकरीबन साढ़े तीन लाख महिलाएं मातृत्व के सुख से वंचित रह जाती हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 29 जनवरी 2023 को जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार देश के 183 में से 19 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर 'बेहद खराब' दर्ज किया गया, जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से कई गुना ज्यादा था।

वहीं  दूसरी तरफ देश के केवल आठ शहरों में हवा की गुणवत्ता 'बेहतर' दर्ज की गई, जबकि 42 शहरों में वायु गुणवत्ता का स्तर "खराब" दर्ज किया गया था। वहीं यदि देश के बड़े शहरों की बात करें तो दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 331 दर्ज किया गया वहीं फरीदाबाद में 346, गाजियाबाद में 292, गुरुग्राम में 290, नोएडा में 302, ग्रेटर नोएडा में 320 पर पहुंच गया है। इसी तरह मुंबई में वायु गुणवत्ता सूचकांक 176 दर्ज किया गया, जो प्रदूषण के 'मध्यम' स्तर को दर्शाता है।

देश में यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट से लगाया जा सकता है, जिनके अनुसार बढ़ता प्रदूषण हर दिल्लीवासी से उसके जीवन के औसतन 10.1 साल छीन रहा है, जबकि बढ़ते प्रदूषण के चलते लखनऊ वालों की औसत आयु साढ़े नौ साल तक घट सकती है।

वहीं यदि एक औसत भारतीय की जीवन सम्भावना की बात करें तो बढ़ता प्रदूषण उसमें औसतन पांच साल तक कम कर रहा है। ऐसे में यह जरूरी है कि बढ़ते प्रदूषण को रोकने और उससे बचाव के लिए जल्द से जल्द कड़े कदम उठाए जाने चाहिए।

देश में वायु प्रदूषण के बारे में ताजा अपडेट आप डाउन टू अर्थ के एयर क्वालिटी ट्रैकर से प्राप्त कर सकते हैं।