प्रदूषण

पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: 14 से 18 सितंबर 2020

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें

Susan Chacko, Dayanidhi, Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट  ने 14 सितंबर 2020 को भारत के अटॉर्नी जनरल के लिए नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है। इस आदेश में आदेश में केंद्र सरकार से मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 की धारा 115 की वैधता को सही ठहराने के विषय में पूछा गया है, जो वास्तव में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 309 की उपेक्षा करती है।

यह फैसला लोगों के आत्महत्या करने के प्रयासों को रोकने के सन्दर्भ में दायर एक याचिका पर आया है। गौरतलब है कि लोगों ने चिड़ियाघर में जानवरों के बाड़े में खुद को फेंक कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी। आत्महत्या करने की कोशिश का यह कृत्य धारा 309 के तहत अपराध है।

जबकि मेंटल हेल्थकेयर एक्ट, 2017 की धारा 115, आईपीसी की धारा 309 को प्रभावित कर रही है। यही वजह है कि इसके विषय में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया है।

एनजीटी ने प्लेटिनम एएसी ब्लॉक के खिलाफ पीसीसी के आदेश को रद्द किया

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 14 सितंबर, 2020 को दमन दीव और दादरा नगर हवेली के प्रदूषण नियंत्रण समिति (पीसीसी) द्वारा मैसर्स प्लेटिनम एएसी ब्लॉक को बंद करने से संबंधित पारित आदेश को रद्द किया।

न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति सोनम फेंटसो वांग्दी की पीठ ने निर्देश दिया कि एनजीटी के आदेश की एक प्रति केंद्र शासित प्रदेश दमन दीव और दादरा नगर हवेली के सलाहकार को प्रेषित की जाए, ताकि पीसीसी के इस तरह के आदेश पारित करने वाले अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई करने पर विचार किया जा सके। इस तरह के "बेतुके आदेश" - अदालत के आदेशों को खत्म करने और पर्यावरण के हितों के खिलाफ है।

एनजीटी का यह आदेश मैसर्स प्लेटिनम एएसी ब्लॉक द्वारा पीसीसी के द्वारा 3 फरवरी को पारित आदेश के खिलाफ दायर अपील के मद्देनजर आया था।

पीसीसी के आदेश में कहा गया था कि 9 अक्टूबर, 2015 की अधिसूचना के अनुसार, दादरा और नगर हवेली पर लागू, फ्लाई ऐश निर्यात, ट्रांसपोर्ट और निपटान सुविधा प्रतिबंधित श्रेणी में आती है। इसलिए फ्लाई ऐश का उपयोग करके ऑटोक्लेवेटेड युक्त कंक्रीट के निर्माण को स्थापित करने की अनुमति नहीं है।

फ्लाई ऐश ईंटों / ब्लॉकों के उत्पादन के लिए इकाई निम्नलिखित दो गतिविधियां करती है:

  • फ्लाई ऐश ट्रांसपोर्ट
  • ईंधन का उपयोग करके फ्लाई ऐश ईंटों / ब्लॉकों का निर्माण

इसके अलावा सीपीसीबी के 7 मार्च, 2016 को धारा 18 (1) (बी) के तहत जारी किए गए संशोधित निर्देशों के अनुपालन में पीसीसी उद्योगों के वर्गीकरण का सामंजस्य स्थापित करना बाकी था। इस प्रकार, यूनिट को सहमति की स्वीकार्यता के बारे में किसी भी विचार को पीसीसी द्वारा उद्योगों के सामंजस्य के आधार पर देखा जाना चाहिए। यूनिट द्वारा स्थापित (सीटीई) और कंसेंट टू ऑपरेट (सीटीओ) के संबंध में उल्लंघनों को पीसीसी द्वारा संबंधित अधिनियमों और नियमों के प्रावधानों के अनुसार किया जाना बताया है। 

पर्यावरण के अनुकूल नहीं है तारापुर औद्योगिक क्षेत्र का सीईटीपी

तारापुर औद्योगिक क्षेत्र में मौजूद कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) पर दूसरी संयुक्त जांच रिपोर्ट 16 सितंबर, 2020 को आम जनता के लिए उपलब्ध कर दी गई है। यह रिपोर्ट एनजीटी के आदेश पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रस्तुत द्वारा तैयार की गई है। एनजीटी ने इस मामले में 22 सितंबर, 2019 और 26 सितंबर, 2019 को आदेश जारी किए थे।

गौरतलब है कि इस मामले में एनजीटी ने सीपीसीबी को निर्देश दिया था कि वो एमपीसीबी के साथ मिलकर इस सीईपीटी की व्यापक निगरानी करे और उसपर हर तीन महीने के अंदर नियमित रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

रिपोर्ट के अनुसार 12 मार्च, 2020 को संयुक्त जांच के समय इस सीईटीपी से विभिन्न नमूने लिए गए थे। जिनके विश्लेषण से पता चला है कि 13 नवंबर, 2019 को की गई पिछली जांच के बाद से इस प्लांट के प्रदर्शन में कोई सुधार नहीं आया है। रिपोर्ट में निम्नलिखित बातों का जिक्र किया गया है जहां पर्यावरण नियमों का उल्लंघन किया गया है:

  • सीईटीपी से निकल रहे एफ्लुएंट की गुणवत्ता तय सीमा से कहीं ज्यादा खराब थी और वो निरंतर नियमों को अनदेखा कर रहा था।
  • सीईटीपी का हाइड्रोलिक लोड तय सीमा से कहीं ज्यादा था, साथ ही उससे निरंतर अवैध रूप से वेस्ट निकल रहा था।
  • सीईटीपी में स्लज का ठीक तरह से प्रबंधन नहीं हो रहा था, साथ ही उसमें निरंतरता का भी आभाव था।
  • सीईटीपी की सभी प्रमुख ट्रीटमेंट यूनिट्स और स्लज जमा करने इकाइयां ठीक से काम नहीं कर रही थी।
  • सीईटीपी का इनलेट और आउटलेट फ्लो मीटर की माप सही नहीं थी साथ ही उसका ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम भी काम नहीं कर रहा था। 

एनसीआर में प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र पर रिपोर्ट प्रस्तुत करे : एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को 31 जनवरी, 2021 तक प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र (एनसीजेड) के तहत आने वाले भूमि उपयोग लैंड कवर मैपिंग (एलयूएलसी) पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड अधिनियम, 1985 के प्रावधान के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड (एनसीआरपीबी) द्वारा तैयार क्षेत्रीय योजना के संदर्भ में एनसीजेड के अंतर्गत आने वाली भूमि के उपयोग के मुद्दे पर विचार किया गया।

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 9 सितंबर की अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि एनआरएससी को 1999 और 2019 की दो अवधियों के लिए 1:50,000 स्केल पर एलआईएसएस तृतीय डेटा (रिज़ॉल्यूशन 23.5 मीटर) का उपयोग करके एलआईएसएस नक्शा बनाना (मैपिंग) चाहिए। नक्शे की वर्गीकरण योजना को इस तरह से चुना जाना चाहिए ताकि प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र स्पष्ट रूप से मानचित्रण किए जाए।  

प्रयोग के अंतिम उत्पाद (आउटपुट) को अंतिम रूप देने से पहले जमीनी हकीकत पर जोर दिया जाना चाहिए। यदि आवश्यक हो, एनआरएससी संबंधित संगठनों से एनसीआरपीबी में प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्रों की पहचान के लिए प्रासंगिक विषयगत आंकड़े प्राप्त कर सकता है।

एक ही उपग्रह डेटा (सेंसर), स्केल और कार्यप्रणाली से उत्पन्न दो तुलनीय उत्पाद डेटा सेट प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्र की स्थिति का वास्तविक मूल्यांकन करते हैं अर्थात् यह दो समय अवधि (1999 और 2019) में कैसे बदल गया।

एनसीआरपीबी के तहत आने वाले क्षेत्र में सभी घटक राज्यों में समय के साथ बदलाव आया है क्योंकि इसमें अधिक से अधिक जिलों को जोड़ा गया है। समानता के लिए, रिपोर्ट में विचार किया गया था कि वर्तमान सीमा एनसीआरपीबी को दोनों वर्षों यानी 1999 और 2019 के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।