प्रदूषण

पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में 20 अगस्त से पहले पार्किंग पालिसी को अंतिम रूप देने का दिया सुझाव

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें

Susan Chacko, Dayanidhi, Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 10 अगस्त को दिए आदेश में कहा है कि ईंधन के रूप में केरोसिन का इस्तेमाल रोकने के लिए केवल जुर्माना लगाना काफी नहीं है| गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए उठाए जरुरी क़दमों पर सुनवाई कर रहा था।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली की पार्किंग नीति का भी मुद्दा उठाया है| पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (ईपीसीए) ने कोर्ट को सूचित किया है कि कृष्णा नगर, कमला नगर और लाजपत नगर में पायलट परियोजनाएं संतोषजनक रूप से काम कर रही हैं| कोर्ट ने दिल्ली की सभी पांचों निगमों को ईपीसीए और संबंधित प्राधिकरण के साथ मिलकर विस्तृत योजना बनाने के लिए कहा है| कोर्ट ने कहा है कि अच्छा होगा कि 20 अगस्त, 2020 से पहले पार्किंग नीति को अंतिम रूप दे दिया जाए|

इसी आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान नगर निगमों को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है| जिसमें बताना है कि अपने घर में क्वारंटाइन किए व्यक्तियों से कितना बायोमेडिकल वेस्ट इकट्ठा किया जा रहा है|   

इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी पूछा है कि इस कचरे को कितनी मात्रा में एकत्र किया गया है और इसे अन्य कचरे से कैसे अलग किया जा रहा है| साथ ही रिपोर्ट में कचरे को इकठ्ठा करने के तरीकों और उसे अलग करने की विधि के बारे में भी जानकारी मांगी है|

गंगा में दूषित सीवेज छोड़ने पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार पर जुर्माना

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार ने अभी तक पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में लगाए गए जुर्माने की राशि को जमा नहीं कराया है। एनजीटी के समक्ष सीपीसीबी द्वारा 11 अगस्त को दायर की गई रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। सीपीसीबी द्वारा यह जुर्माना सीवेज परियोजनाओं को समय पर पूरा न कर पाने के लिए लगाया था। गौरतलब है कि इन राज्यों में बड़े पैमाने पर अशोधित सीवरेज बिना ट्रीटमेंट के गंगा नदी में छोड़ा जा रहा है, जिससे प्रदूषण में इजाफा हो रहा है।

इसके साथ ही रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि झारखंड पर लगाए जुर्माने को हटा लिया गया है क्योंकि उसने 6 नालों में से दो को शुरू कर दिया गया है, बाकी चार नालों पर भी काम चल रहा है। साथ ही उसने सीवेज ट्रीटमेंट के अंतरिम उपायों को अपना लिया है|

इस मामले में एनजीटी ने 12 दिसंबर, 2019 को एक आदेश जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि सीवेज उपचार से संबंधित परियोजनाओं को 31 जून, 2020 तक पूरा कर लिया जाना था। और अन्य परियोजनाओं के लिए 31 दिसंबर, 2020 तक की छूट दी गई थी। जो भी राज्य उसे पूरा कर पाने में विफल रहेंगे उन्हें मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया था।

जब तक यह पूरे नहीं होते तब तक गंदे सीवेज को सीधे गंगा में बहाए जाने से बचने के लिए अंतरिम उपायों को अपनाने का भी आदेश दिया गया था। जिससे दूषित सीवेज को गंगा के पानी में मिलने से रोका जा सके। साथ ही यदि 1 नवंबर, 2019 तक इन उपायों को नहीं अपनाया जाता तो इसके लिए मुआवजा भरना जरुरी कर दिया था।

सरिस्का टाइगर रिजर्व में अवैध खनन पर एनजीटी ने लगाई कड़ी फटकार

एनजीटी ने 10 अगस्त को राजस्थान के अलवर जिले के सरिस्का टाइगर रिजर्व में अवैध खनन के मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया।

इस समिति में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला मजिस्ट्रेट अलवर और राजस्थान के प्रधान मुख्य संरक्षक (वन बल के प्रमुख) अधिकारी शामिल होंगे।

एनजीटी ने अवैध खनन के अनुमान, क्षेत्र में स्वीकृत खानों की संख्या और पर्यावरणीय आधार पर संवेदनशील क्षेत्रों में अवैध खनन की जांच के लिए नियम बनाने और दो महीने के अंदर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

यह आदेश 27 जुलाई की एक अखबार की रिपोर्ट के मद्देनजर आया, जिसमें सरिस्का रिजर्व के अंदर संदिग्ध खनन माफिया से संबंधित एक ट्रैक्टर द्वारा वन होमगार्ड को नीचे गिराने की सूचना मिली थी। यह घटना उस समय घटी जब होमगार्ड ने अपने सहयोगी के साथ मिलकर खनन माफियाओं को रोकने का प्रयास किया था।

अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व 1,281 वर्ग किलोमीटर में फैला है। क्षेत्र छह श्रेणियों में विभाजित है। वहां सिर्फ 108 वन रक्षक है, जबकि उनकी स्वीकृत संख्या 132 है। इसके अलावा, सरिस्का में लगातार हमलों के खतरे बढ़ रहे हैं। यहां अवैध खनन करने वाले, जानवरों को चराने वालों के साथ निहत्थे वन रक्षक क्षेत्र की रक्षा के लिए अक्सर संघर्ष करते रहते हैं। यह घटना पहली बार नहीं हुई थी इससे पहले भी ग्रामीणों ने वन अधिकारियों पर हमला किया था।

ट्रिब्यूनल ने उम्मीद जताई कि राजस्थान उच्च स्तर पर कानून को लागू कर निगरानी करेगा और केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय संबंधित राज्य अधिकारियों के साथ समन्वय करेगा।

रखवाली करने वाले (गार्ड) और अन्य अधिकारियों के मनोबल को बनाए रखने के लिए और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए, मृतक के परिवार को उचित रूप से पुनर्वासित किया जाना चाहिए। पुलिस तन्त्र को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोषी को शीघ्र पकड़ कर उसे उसके द्वारा किए गए अपराध की सजा मिले। आदेश में आगे कहा गया कि बाघों के लिए संरक्षित/आरक्षित क्षेत्र में अवैध खनन करने वालों के साथ कड़ाई से निपटा जाना चाहिए।

रोरो गांव में अभ्रक की पुरानी खदानों से उड़ रही धूल के कारण स्वास्थ्य और पर्यावरण को हो रहा है नुकसान

झारखंड सरकार द्वारा एनजीटी को रोरो अभ्रक खदान, चाईबासा जो कि पश्चिमी सिंहभूम जिले के अंतर्गत आता है, इस क्षेत्र की बहाली के लिए उठाए गए कदमों की सूची देने से पहले एक रिपोर्ट सौंपी गई।

इस तरह की खदानों के लिए लीज हैदराबाद एस्बेस्टस सीमेंट प्रोडक्ट लिमिटेड (एचएसीपीएल) के पक्ष में दी गई थी। वर्ष 1983 में खदानों ने काम करना बंद कर दिया था। हालांकि, इस क्षेत्र में पर्यावरण और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए, खदानों के पुनर्स्थापन के लिए सुरक्षा उपाय नहीं किए गए थे।

स्वास्थ्य को होने वाले खतरों, तालाबों और नदियों के प्रदूषण के परिणामस्वरूप एस्बेस्टस धूल आधारित प्रदूषण का उत्सर्जन लगातार जारी रहा।

ट्रिब्यूनल को झारखंड राज्य द्वारा सूचित किया गया था कि रोरो गांव की छोड़ी गई अभ्रक की खदानों के पुनर्निर्माण और पुनर्वास से संबंधित कई योजनाएं लागू की गई थीं।

योजनाओं में 'बड़ा लागिया पंचायत के अंदर रोरो गांव के मुंडसई' में एक जल मीनार का निर्माण शामिल है। 565 स्थानीय निवासियों की स्वास्थ्य जांच (1,50,000 रुपये की लागत से प्रारंभिक जांच) की गई थी। 565 स्थानीय निवासियों में से 164 में एस्बेस्टोसिस बीमारी के लक्षण पाए गए थे। 164 स्थानीय निवासियों में से 126 का पीपीटी और एक्स-रे परीक्षण किया गया था।

देश में अवैध रेत खनन रोकने के लिए समिति ने दिए सुझाव

न्यायमूर्ति एस.वी.एस. राठौड़ ने अवैध रेत खनन पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष 13 अगस्त, 2020 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इससे पहले समिति को गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में रेत खनन के मामले की रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था।

समिति ने सिफारिश की कि जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट (डीएसआर) को बहुत सावधानी से तैयार करने की आवश्यकता है। इनका प्राकृतिक तौर पर सर्वेक्षण और फिर से अध्ययन किया जाना चाहिए। चूंकि रेत जमाव एक लगातार चलने वाला मुद्दा है, इसलिए उन्हें नियमित रूप से अपडेट करने की आवश्यकता होती है।

लीज डीड देते समय, महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मापदंडों जैसे कि रेत जमाव और इसकी पुनःपूर्ति, कटाव वाले क्षेत्र, आधारिक संरचनाओं से दूरी पर विचार किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक तंत्र होना चाहिए कि वास्तविक खनन गतिविधि स्वीकृत खनन योजना और पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) के अनुरूप हो। 

विभागीय निरीक्षण की वैधानिक प्रणाली के अलावा, विशेषज्ञों द्वारा वार्षिक पर्यावरण आडिट की एक प्रणाली अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए।

इसके अलावा, खनन के कारण पर्यावरण को होने वाले नुकसान की बहाली के लिए एक प्रभावी तंत्र होना चाहिए। रॉयल्टी का एक हिस्सा पर्यावरण बहाली कोष (एनवायरनमेंट रेस्टोरेशन फण्ड) के रूप में रखा जाना चाहिए।

रेत का भंडारण गोदाम नदी तट से कम से कम 5 किलोमीटर दूर होना चाहिए। समिति ने कहा कि अन्यथा पट्टाधारक द्वारा भंडारण की आड़ में अवैध खनन किया जा सकता है।