नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के 7 जनवरी, 2020 को दिए गए आदेश के अनुपालन में गठित संयुक्त समिति ने औद्योगिक क्षेत्र (कॉयर इंडस्ट्रीज कलस्टर), तिरुप्पूर जिले के कांगेयम के पास की भूजल गुणवत्ता पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
चेन्नई के दक्षिणी क्षेत्र की एनजीटी ने औद्योगिक क्षेत्र के पास एक विस्तृत पानी की गुणवत्ता परीक्षण करने का निर्देश दिया था, जहां विवादित कॉयर उद्योग संचालित किया जा रहा था और 20 किलोमीटर के दायरे में रंगाई करने वाली इकाइयां काम कर रही थीं, इस क्षेत्र के पानी की गुणवत्ता में अंतर, विशेषकर टीडीएस स्तर के बारे में पता लगाना था। इस मामले की जांच के लिए एक संयुक्त समिति का गठन किया गया।
कॉयर निर्माण उद्योग केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के नवीनतम वर्गीकरण के अनुसार श्वेत श्रेणी में आता है। पांच कॉयर प्रसंस्करण उद्योग तिरुप्पूर जिले के कांगेयम तालुक और ग्राम परंचरवाज़ी में स्थित हैं। सभी पांचों उद्योगों के चारों ओर सूखे और नमी वाली कृषि भूमि हैं।
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इकाइयों में काम नहीं चल रहा था। इकाई के अधिकारियों ने बताया कि निर्यात मांग में की कमी के कारण फरवरी 2020 से इनका परिचालन बंद हो गया था।
संयुक्त समिति के कुछ निष्कर्ष:
कॉयर गूदा (पीथ) के साथ किए गए लैब अध्ययन के परिणामों से पता चला है कि गूदा (पीथ) द्वारा पानी के लिए टीडीएस का कोई बड़ा काम नहीं था।
गुडुवनचेरी झील में प्रदूषण
तमिलनाडु के चेंगलपट्टु की मरैमालई नगर पालिका द्वारा ठोस अपशिष्ट नियम 2016 का पालन करते हुए हर दिन कचरे को एकत्र कर इसे निपटाने के लिए प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं। यह नगर आयुक्त द्वारा दायर जवाबी हलफनामे में कहा गया था।
हलफनामे में एक संयुक्त समिति की रिपोर्ट का उल्लेख किया गया था, जिसने इस क्षेत्र का निरीक्षण किया था और कहा था कि पंचायत द्वारा कोई ठोस अपशिष्ट, सीवेज को नहीं बहाया जा रहा था।
यह मामला गुडुवनचेरी झील के प्रदूषण से जुड़ा हुआ है। एक अखबार की रिपोर्ट में कहा गया था कि नादिवरम - गुडुवनचेरी नगर पंचायतों और मरैमालई नगर पालिका में घरों से निकलने वाले सीवेज के अलावा उस क्षेत्र के निजी अस्पतालों और क्लीनिकों के अपशिष्ट को भी झील में छोड़ा जा रहा है।
कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) ने पर्यावरण प्रयोगशालाओं के लिए मान्यता पर एनजीटी के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
कर्नाटक में केवल तीन निजी पर्यावरण प्रयोगशालाएं हैं जिन्होंने केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मान्यता प्राप्त की है। राज्य में 65,000 से अधिक उद्योग चल रहे हैं और उन्हें जल और वायु अधिनियम के अनुसार पानी, हवा, शोर और मिट्टी के नमूनों की निगरानी की आवश्यकता होती है। इन सीमित मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं से नमूनों का विश्लेषण कर शीघ्र परिणाम प्राप्त करना संभव नहीं है।
इसके अलावा, उद्योग से दूर स्थित प्रयोगशाला में विश्लेषण के लिए नमूनों को ले जाना व्यावहारिक नहीं है। इस पृष्ठभूमि में केएसपीसीबी के अध्यक्ष ने नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेटरीज (एनएबीएल) से मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं द्वारा केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मान्यता प्राप्त करने के लिए 6 महीने का समय बढ़ाया था।
इससे उद्योगों को पर्यावरण कानूनों का पालन करने में मदद मिलेगी, जिनका पालन करना अनिवार्य हैं, जिनमें पानी, हवा, ध्वनि और मिट्टी के नमूने का विश्लेषण करना शामिल है।
रिपोर्ट में एनजीटी से अनुरोध किया गया है कि वह पर्यावरण और जनता के हित में उचित समय में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मान्यता प्राप्त करने के लिए एनएबीएल मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं को अनुमति दे।
एनएबीएल विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय है। यह परीक्षण और जांच करने वाली प्रयोगशालाओं के लिए गुणवत्ता और तकनीकी क्षमता के तीसरे पक्ष के मूल्यांकन करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। एनएबीएल प्रयोगशालाओं को प्रयोगशाला मान्यता सेवाएं प्रदान करता है जो एनएबीएल मानदंड के अनुसार परीक्षण / जांच अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानकों और दिशानिर्देशों पर आधारित हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 9 अक्टूबर को मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (एमटीएचएल) के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दिए गए तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) मंजूरी के खिलाफ दी गई याचिका को खारिज कर दिया है।
सीआरजेड अधिसूचना, 2011 (पर्यावरण संरक्षण) अधिनियम, 1986 (ईपी अधिनियम) के तहत सीआरजेड अधिसूचना, 2011 के प्रावधानों के तहत मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) के पक्ष में सीआरजेड मंजूरी के खिलाफ अपील दायर की गई थी।
यह कहा गया कि एमटीएचएल परियोजना मुंबई और नवी मुंबई तटीय पारिस्थितिकी को गंभीर रूप से प्रभावित करेगी। याचिकाकर्ता दिलीप बी. नेवतिया ने कहा कि ईपी अधिनियम, ईपी नियम, 1986, ईआईए अधिसूचना 2006 और सीआरजेड अधिसूचना 2011 का उल्लंघन करते हुए परियोजना को मंजूरी दी गई थी।
वर्ष 1992 में प्रस्तावित इस परियोजना में सेवरी से नाहवा के बीच एक पुल का निर्माण करना शामिल था, जो मुंबई शहर को दक्षिणी भाग से जोड़ता है।
एनजीटी ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि सभी आवश्यक सुरक्षा उपायों को सीआरजेड मंजूरी में शामिल किया गया था। परियोजना के अधिवक्ता ने भी सभी उपाय करने और सभी पर्यावरणीय मानदंडों का पालन करने के लिए 19 सितंबर, 2020 में एक हलफनामा दायर किया था।