प्रदूषण

पर्यावरण मुकदमों की साप्ताहिक डायरी: एनजीटी ने बिहार सरकार को क्यों लगाई फटकार?

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में बीते सप्ताह क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें -

Susan Chacko, Dayanidhi, Lalit Maurya

न्यायमूर्ति एस पी वांगड़ी ने बिहार सरकार को उसके 'उदासीन और अस्वीकार्य' रवैये के लिए फटकार लगाई है| मामला बिहार के मुंगेर जिले का है| जहां महानॉय नदी के तट पर अवैध निर्माण किया जा रहा था| इस मामले में महानॉय रिवर सेफ्टी सोसाइटी ने कोर्ट के समक्ष एक अर्जी दाखिल की थी| जिसके अनुसार महानॉय नदी में जिस तरह से गन्दा पानी डाला जा रहा है उसने इस नदी को एक नाले में बदल दिया है| कोर्ट ने इस मामले में बिहार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला मजिस्ट्रेट, मुंगेर से इस मामले की जांच करने और उसके बारे में रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहा है|

गौरतलब है कि इससे पहले ट्रिब्यूनल ने 18 फरवरी, 2019 को एक आदेश जारी किया था| जिसमें कहा था कि मामले में निर्धारण के लिए सबसे पहले प्रश्न यह है कि मुंगेर जिले के टेटिया बम्बर में बीडीओ के ब्लॉक और आंचल कार्यालय का निर्माण नदी की सीमा के भीतर किया गया था या नहीं। इसके अलावा, क्या राज्य सरकार द्वारा नदी के किनारों पर निर्माण के लिए कोई नियम या मानदंड निर्धारित किए थे।

26 अगस्त, 2019 को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार अदालत के समक्ष ऐसे किसी भी नियम को सामने रखने में विफल रही थी। हालांकि एनजीटी के अनुसार बिहार बिल्डिंग बाय-लॉ, 2014 के नियम 22 (2) के तहत इस बारे में कुछ मानदंड निर्धारित किए गए हैं| जिसके अनुसार निर्माण नदी के 100 मीटर के दायरे में किया गया है जो निषिद्ध क्षेत्र है|

राज्य द्वारा फिर से समय मांगा गया और मामले कई बार कोर्ट में आया है और उसे स्थगित करना पड़ा है। ऐसे में एनजीटी ने 31 जुलाई को एक आदेश जारी किया है जिसमे राज्य सरकार को 15 सितंबर से पहले अपनी रिपोर्ट सबमिट करने का अंतिम अवसर दिया है।

चिखली में नदियों को प्रदूषित होने से रोकेगा एसटीपी

पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम (पीसीएमसी) द्वारा एनजीटी के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत गई थी जिसमें चिखली (12 एमएलडी), बोफेल (5 एमएलडी) और पिंपल निलख (15 एमएलडी) में 3 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण के महत्व को समझाया गया था।

रिपोर्ट में पीसीएमसी-पुणे क्षेत्र के अंदर तीन प्रस्तावित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थानों का उल्लेख किया गया है। पीसीएमसी क्षेत्र के अंदर एसटीपी के निर्माण को शुरू करने की अनुमति मांगी गई है। पीसीएमसी की सीमा में तीन नदियां बह रही हैं - मुला, इंद्रायणी और पवना। चिखली और अन्य निकटवर्ती क्षेत्रों में नाले सीधे इंद्रायणी नदी में मिल रहे हैं। अनुपचारित पानी का कुछ हिस्सा इंद्रायणी नदी के किनारे, अलंदी तक बहता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चिखली में एसटीपी का निर्माण करना बेहद आवश्यक है, जो अनुपचारित पानी को उपचारित करेगा और इसे इंद्रायणी नदी में मिलने से रोकेगा।

पीसीएमसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि चिखली में एसटीपी का निर्माण 'कानूनी और उचित' है और किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है। एसटीपी का निर्माण नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित नहीं करेगा क्योंकि नदी के उच्च बाढ़ स्तर (एचएफएल) को देखते हुए योजना बनाई गई थी। एसटीपी के निर्माण से नदी के क्रॉस सेक्शन में भी बदलाव नहीं होगा।

यह रिपोर्ट 04 अगस्त को एनजीटी की साइट पर अपलोड की गई थी।

पर्यावरण मंजूरी के लिए शर्तें तय करना ही काफी नहीं, उनकी निगरानी करना भी है जरुरी: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी)  ने 31 जुलाई, 2020 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के लिए एक आदेश जारी किया है| इस आदेश में यह निर्देश दिया गया है कि वह अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने के लिए प्रभावी कदम उठाए| मामला पर्यावरण मंजूरी और उसकी निगरानी से जुड़ा है| कोर्ट ने इस निर्देश में मंत्रालय से सतत विकास और जनता के भरोसे से जुड़े सिद्धांतों को ध्यान में रखने की सलाह दी है|

पूरा मामला पर्यावरण संरक्षण (अधिनियम), 1986 के तहत पर्यावरण मंजूरी (ईसी) की शर्तों के अनुपालन से जुड़ा है| जिसके प्रभावी निगरानी तंत्र के लिए उठाए जाने वाले कदमों को 14 सितंबर, 2006 में एक अधिसूचना के जरिए स्पष्ट किया गया था| कोर्ट ने कहा है किसी भी प्रोजेक्ट के एसेस्समेंट के आधार पर पर्यावरण मंजूरी के लिए केवल शर्तें तय करना ही काफी नहीं है| जब तक की उसके पूरा हो जाने तक उसकी निगरानी नहीं की जाती और जब तक उसका उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता तब तक मंत्रालय की जिम्मेदारी बनी रहती है|

कोर्ट ने कहा है कि निगरानी तंत्र को प्रभावी बनाने के लिए केवल बार-बार प्रस्ताव रखना ही काफी नहीं है इसके लिए जमीन पर भी प्रभावी कदम उठाने जरुरी है| इसके बिना किए जा रहे कामों को संतोषजनक नहीं माना जा सकता|

बंद खानों में एसिडिक पानी की वजह से मछलियों की जान को खतरा

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 5 अगस्त, 2020 के आदेश में कहा कि मध्य प्रदेश के जिला सिंगरौली के विंध्य नगर की खदान में जमा एसिडिक पानी की निगरानी की जानी चाहिए।

यह आदेश मछली पालन सहकारी समिति के अध्यक्ष सुभाष कुशवाहा द्वारा अदालत में दायर उस याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया, जिसमें कहा गया था कि विंध्य नगर के गोरबी कोयला खदान में फ्लाई ऐश का अवैज्ञानिक तरीके से निपटान वहां के निवासियों के मछली पकड़ने को प्रभावित कर रहा है।

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में ट्रिब्यूनल को सूचित किया गया कि वर्तमान में मैसर्स नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) सिंगरौली कोयला खदान को बहुत पहले बंद कर दिया गया है, इसलिए यह एक निष्क्रिय खदान है।

जुलाई 1997 में खदान को निष्क्रिय घोषित कर दिया गया था। वर्तमान में खदान में पानी भरा हुआ है जो अम्लीय है। जिसकी अम्लीय प्रकृति पीएच चक्र 2.1 से 2.9 तक है। खदान में अम्लीय जल की उपस्थिति प्राकृतिक और भू-वैज्ञानिक कारणों से है। एमपीपीसीबी द्वारा वर्ष 2016, 2017, 2018 और 2019 में खदान के गड्ढे में संचित अम्लीय जल का समय-समय पर परीक्षण किया।

पानी अत्यधिक अम्लीय था और किसी भी मछली के लिए सही नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा निर्धारित सर्वोत्तम उपयोग जल गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार मछली के रहने के लिए खदान के पानी की गुणवत्ता ठीक नहीं है इसलिए इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। अम्लीय जल में कोई भी मछली नहीं रह सकती है।

यह भी प्रस्तुत किया गया है कि खदान को कई साल पहले छोड़ दिया गया था, लेकिन इसमें कोई जलीय जीवन नहीं देखा गया है और न ही स्थानीय लोगों को पानी में मछली पकड़ते देखा गया।

एनजीटी आदेश के बाद से मनाली में होटलों और गेस्ट हाउसों के लिए नहीं जारी की गई एनओसी: रिपोर्ट

29 जुलाई, 2019 को एनजीटी का एक आदेश आया था, जिसके बाद से हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मैकलोडगंज और मनाली में होटलों और गेस्ट हाउसों के लिए कोई परमिशन नहीं दी है और न ही कोई नई एनओसी जारी की है| यह जानकारी हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर 4 अगस्त, 2020 को एनजीटी में सबमिट एक रिपोर्ट में सामने आई है| जिसे राज्य सरकार की ओर से संयुक्त सचिव (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग/ अर्बन डेवलपमेंट) द्वारा कोर्ट में सबमिट किया गया है|

इस मामले में डिवीजनल टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ऑफिस, कुल्लू ने ग्राउंड वेरिफिकेशन किया है| जिसके बाद जानकारी दी है कि मनाली म्युनिसिपेलिटी कौंसिल ने नियमों का कड़ाई से पालन करने के बाद ही निर्माण गतिविधियों को अनुमति प्रदान की है| वहीं मनाली म्युनिसिपेलिटी एरिया में किसी भी प्रकार के वाणिज्यिक भूमि उपयोग को परमिशन नहीं दी है|

जब तक और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और वाटर सप्लाई के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं किए जाते तब तक निर्माण गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसी तरह, धर्मशाला नगर निगम के आयुक्त ने बताया कि मैकलोडगंज में भी निर्माण गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है।

हालांकि रिपोर्ट के अनुसार धर्मशाला नगर निगम द्वारा 18 वाणिज्यिक इकाइयों को पूरा करने के लिए मंजूरी जारी की गई है| इन इकाइयों ने सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट और वाटर सप्लाई के लिए जरुरी नियमों को पूरा कर लिया है| मनाली में वायु और जल गुणवत्ता पर लगातार निगरानी रखी जाती रही है| नदियों की निगरानी से पता चला है कि वहां जल की गुणवत्ता 'बी' श्रेणी में आती है| वहीं मई 2020 में की गई निगरानी के अनुसार वायु की गुणवत्ता तय मानकों के अनुरूप ही है|

साथ ही रिपोर्ट के अनुसार मनाली में एक वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के निर्माण का काम भी चल रहा है| जबकि राज्य में एक कॉमन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी है। जिसके नमूने सीमा के भीतर ही पाए गए हैं। धर्मशाला नगर निगम क्षेत्र में 100 फीसदी डोर टू डोर कचरे का कलेक्शन किया जा रहा है। जबकि क्षेत्र में उत्पन्न 50 फीसदी कचरे को स्रोत पर ही अलग कर दिया गया था और बाकी कचरे को प्रोसेसिंग के दौरान अलग किया जा रहा है|