महेंद्रगढ़ में अवैध खनन
हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को अपनी रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें बताया गया कि महेंद्रगढ़ के गढ़ी गांव में कोई खनन नहीं हो रहा है और हरियाणा माइनिंग कंपनी का संचालन बंद है। बोर्ड की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस मामले की जांच के लिए गठित संयुक्त समिति ने 16 जून को साइट का निरीक्षण किया था।
एनजीटी में शिकायत की गई थी कि मेसर्स हरियाणा माइनिंग कंपनी, खसरा नंबर 122, पहाड़ गढ़ी, ग्राम गढ़ी, तहसील नारनौल, जिला महेन्द्रगढ़ के द्वारा अवैध खनन किया जा रहा है और भारतीय वन अधिनियम 1927, वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1981, जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1974 और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 का उल्लंघन किया जा रहा है। इस शिकायत के आधार पर 6 मार्च को एनजीटी) ने आदेश दिए थे कि इस मामले की जांच की जाए।
नारनौल के खनन अधिकारी ने बताया कि हरियाणा खनन कंपनी की लीज को 10 जनवरी, 2020 को आवंटित क्षेत्र से बाहर अवैध खनन और रॉयल्टी न देने के कारण निरस्त कर दिया गया था। इसलिए लीज का अनुबंध करते समय सुरक्षा के रूप में जमा की गई राशि रु. 2,47,65,625 जब्त कर लिए गए हैं।
वन विभाग ने यह भी बताया कि उक्त लीज धारक ने खसरा नंबर 122, ग्राम गढ़ी, ने 18 जून, 2016 को अवैध खनन गतिविधियों को अंजाम देने के दौरान 597 पेड़-पौधों को नष्ट कर दिया था। विभाग द्वारा माइनिंग कंपनी के खिलाफ नुकसान करने की रिपोर्ट जारी की है और विशेष पर्यावरण न्यायालय, फरीदाबाद में कार्रवाई की गई।
इसके अलावा, 22 अप्रैल, 2019 के आदेश में अदालत ने कंपनी को मुआवजे के रूप में रु. 1,21,788 की राशि को अदालत में भुगतान करने को कहा था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनी को, हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जल अधिनियम 1974 और वायु अधिनियम 1981 के प्रावधानों के तहत सहमति की शर्तों का पालन न करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
स्टोन क्रशर शुरू करने से पहले करना होगा मुआवजे का भुगतान
मध्य प्रदेश में ग्राम तिलोरा, रौसा, तहसील महर, जिला सतना में स्टोन क्रशर प्रदूषण फैला रहा है। इस स्टोन क्रशर संचालक को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) की संयुक्त समिति द्वारा तय मुआवजे की राशि का भुगतान करना होगा। एनजीटी ने 1 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि स्टोन क्रशर तभी शुरू किया जा सकता है जब मुआवजे का भुगतान हो जाए साथ ही इकाइयों को पर्यावरणीय मानकों का भी पालन करना होगा।
समिति की रिपोर्ट में हवा की गुणवत्ता, स्वास्थ्य के मुद्दों और कृषि उत्पादन के नुकसान को ध्यान में रखा गया और कहा गया कि वायु गुणवत्ता, स्वास्थ्य और कृषि को हुए नुकसान के आकलन के लिए सीपीसीबी द्वारा विकसित तंत्र के आधार पर गणना की गई है, जो इस तरह है-
अ) वायु गुणवत्ता को नुकसान के लिए = रु. 5,57,784 प्रति दिन
ब) श्वसन रोगों के कारण स्वास्थ्य को नुकसान = रु. 10, 34,000 / -
स) पीएम 10 और पीएम 2.5 द्वारा गेहूं का कृषि उत्पादन नुकसान = रु. 1420 / -
एमपीपीसीबी द्वारा 27 अप्रैल को एक कार्रवाई रिपोर्ट भी सौंपी थी, जिसमें 19 फरवरी, 2018 से 31 मार्च, 2019 तक पर्यावरणीय मानदंडों के उल्लंघन के लिए हर स्टोन क्रशर के खिलाफ मुआवजे का आकलन किया गया था। कुछ डिफ़ॉल्टर स्टोन क्रशर ने यह जमा भी किया था, शेष ने अभी तक जमा नहीं किया, ट्रिब्यूनल को इसके बारे में सूचित किया गया था।
चावल की मिल अब नहीं फैला रही है प्रदूषण
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उधम सिंह नगर स्थित एक चावल मिल मालिक पर प्रदूषण फैलाने के मामले में अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंपी है। एनजीटी ने भी बोर्ड की रिपोर्ट पर संतुष्टि जताई है। यह मिल एमएस बंसल इंडस्ट्रीज ग्राम दानपुर, काशीपुर रोड, तहसील रुद्रपुर, जिला उधमसिंह नगर द्वारा संचालित की जा रही है।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) द्वारा दायर रिपोर्ट में कहा गया है कि इकाई को पहले नियमों की अनदेखी करते हुए पाया गया था, जिस कारण 7 मार्च, 2019 को मिल बंद करने का आदेश पारित किया गया था।
इसके बाद, मिल को 90 दिनों के लिए फिर से चलाने की अनुमति दी गई और पर्यावरण क्षतिपूर्ति का भी आकलन किया गया। इसके बाद, इकाई ने उपचारात्मक उपाय किए और मुआवजे का भुगतान किया। अब मिल नियमों की पुरी तरह से पालन कर रही है।