प्रदूषण

एनजीटी ने पुरी के लिए पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं को लागू करने के दिए निर्देश

देश के विभिन्न अदालतों में विचाराधीन पर्यावरण से संबंधित मामलों में क्या कुछ हुआ, यहां पढ़ें

Susan Chacko, Dayanidhi

नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (एनजीटी) ने कहा है कि पुरी के लिए पर्यावरण प्रबंधन योजना (ईएमपी) की तैयारी पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। योजना को शीघ्रता से पूरा कर इसे एक वर्ष के भीतर व्यावहारिक किया जाना चाहिए। 

यह आदेश सुभाष दत्ता द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सोनम फिंटसो वांग्दी की पीठ द्वारा पारित किया गया।

यह मामला पुरी में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के निर्माण, सीवेज लाइन बिछाने, श्मशान घाट के सुधार के साथ-साथ तटीय (सीआरजेड) क्षेत्र में छप्पर अनधिकृत और अवैध संरचनाओं को हटाने के संबंध में हैं।

आवासीय क्षेत्र में पेट्रोल पंप स्थापित करने को लेकर एनजीटी ने कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का दिया निर्देश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 17 अगस्त को देहरादून में एक पेट्रोल पंप स्थापित करने से संबधित याचिका को लेकर सुनवाई की गई। याचिका में कहा गया था कि जिला मजिस्ट्रेट ने पेट्रोल पंप को लगाने के लिए दिशानिर्देशों की अनदेखी कर अनापत्ति प्रमाण पत्र (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) जारी किया है।

इस मामले में एनजीटी ने उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया। साथ ही, देहरादून और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए), उत्तराखंड समिति को दो महीने के भीतर मामले में एक तथ्यात्मक और की गई कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया।

 एनजीटी ने रेत खनन के लिए सही ढंग से पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति को तय करने का दिया निर्देश

 नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 17 अगस्त, 2020 को रेत खनन को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया। एनजीटी ने अवैध रेत खनन के मामले में पर्यावरण क्षतिपूर्ति को ठीक से लागू करने के लिए तय की गई कार्यप्रणाली पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। समिति को परिदृश्य का विश्लेषण करने के लिए भी कहा गया है। एनजीटी का आदेश 30 जनवरी को सीपीसीबी के द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के मद्देनजर आया था। रिपोर्ट में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति को तय करने के लिए दो दृष्टिकोणों पर विचार किया गया था।

 जो निम्नलिखित है :

 (अ) दृष्टिकोण 1: पारिस्थितिक नुकसान को देखते हुए, रेत निकालने का मुआवजा बाजार मूल्य के आधार पर होना चाहिए।

 (ब) दृष्टिकोण 2: पारिस्थितिक क्षति के लिए एक आसान शुद्ध वर्तमान मूल्य (एनपीवी) की गणना करना।

 निष्पक्ष सलाहकार ने कहा कि सुझाए गए मुआवजे का निर्धारण करने का तरीका कठिन है और वर्तमान पारिस्थितिक महत्व के बारे में बताने में इसमें चूक हुई है। छूट की दरों के संबंध में जटिलता है। प्रत्यक्ष मुआवजा देने की विधि बेहतर है लेकिन इसमें और बदलाव करने की आवश्यकता है।

 एनजीटी ने निर्देश दिया कि उपरोक्त सुझाव को समिति द्वारा देखा जाना चाहिए और उसके बाद मुआवजे के पैमाने को अंतिम रूप दिया जाना चाहिए।

 दीपका ओपन कास्ट कोल माइंस के कोयला खनन विस्तार पर विवाद

 एनजीटी के समक्ष लक्ष्मी चौहान की ओर से दलीलों का एक संक्षिप्त सारांश प्रस्तुत किया गया, जिसमें छत्तीसगढ़ में 3.1 से 3.5 करोड़ (31 से 35 मिलियन) टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) से दीपका ओपन कास्ट कोल माइंस के विस्तार के लिए दी गई पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) को चुनौती देने का कारण बताया गया।

पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 20 फरवरी, 2018 को साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड को कोयला खनन के विस्तार के लिए प्रदान किया गया था। दलीलों में कहा गया कि केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा दी गई पर्यावरणीय मंजूरी गैरकानूनी, अनुचित और अनियमित है।

पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) से पहले पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (ईआईए) रिपोर्ट और सार्वजनिक जन सुनवाई की कार्रवाई सहित अन्य दस्तावेजों की विस्तृत जांच करना विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (ईएसी) का कर्तव्य था। ईएसी ने अनिवार्य जन सुनवाई के बिना विस्तार करने की अनुमति दी। भले ही ईआईए अधिसूचना का प्रावधान अनिवार्य था, लेकिन विस्तार की अनुमति देते समय ईएसी द्वारा इसकी अनदेखी की गई थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि परियोजना ने वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 का उल्लंघन कर 409.056 हेक्टेयर वन भूमि में खनन किया है।