प्रदूषण

रेलवे स्टेशनों को पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए: एनजीटी

Susan Chacko, Dayanidhi

18 अगस्त, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस सोनम फेंटसो वांग्दी की खंडपीठ ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) एवं प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) को निर्देश दिया कि रेलवे अपशिष्ट प्रबंधन सहित पर्यावरणीय मानदंडों का पालन सुनिश्चित करे। यथा स्थिति के लिए जोनल एवं डिवीजनल रेलवे अधिकारियों को इस मामले पर संबंधित राज्य पीसीबी व पीसीसी को घोषणा पत्र प्रस्तुत करना होगा।

एनजीटी का यह आदेश 13 जुलाई की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के मद्देनजर आया था।

रिपोर्ट के द्वारा ट्रिब्यूनल को सूचित किया गया कि सीपीसीबी और संबंधित राज्य पीसीबी एवं पीसीसी की टीमों ने जल अधिनियम, 1974, वायु अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण (ईपी) अधिनियम की आवश्यकता के संदर्भ में 36 रेलवे स्टेशनों का मूल्यांकन किया है।

सीपीसीबी की एक विशेषज्ञ समिति ने रेलवे स्टेशनों को लाल, नारंगी और हरे रंग की श्रेणियों में वर्गीकृत किया। रिपोर्ट में 'रेलवे स्टेशनों के पर्यावरण प्रदर्शन आकलन' का अवलोकन भी शामिल है।

सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, केवल 11 ने जल अधिनियम और वायु अधिनियम के संदर्भ में 'सहमति' के लिए आवेदन किया है और केवल 3 ने वायु अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण (ईपी) अधिनियम के तहत वैधानिक नियमों के अनुसार आवेदन किया है।

एनजीटी ने कहा कि शेष प्रमुख रेलवे स्टेशनों (कुल 720 में से) को आज से तीन महीने के भीतर सहमति एवं प्राधिकरण के लिए आवेदन करने का निर्देश दिया। हालांकि, शुल्क केवल 1 अप्रैल, 2020 से देय होगा और साथ ही कहा गया कि बकाया राशि के भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है।

खुर्जा में उद्योगों द्वारा अवैध तरीके से निकाला जा रहा है भूजल

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के खुर्जा में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) की अनुमति के बिना उद्योगों द्वारा भूजल को अवैध तरीके से निकाला जा रहा है। एनजीटी ने 18 अगस्त के अपने आदेश में शैलेश सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में यह बात कही।

अदालत ने अपने आदेश में कहा अधिकारियों को कार्रवाई करनी चाहिए और कानून की उचित प्रक्रिया के बाद मुआवजे की वसूली करनी चाहिए। इसके अलावा, अधिकारियों को ऐसी इकाइयों के अवैध संचालन के खिलाफ सतर्कता रखनी चाहिए जो निरीक्षण के दौरान चालू अवस्था में नहीं पाई जाती हैं। ऐसी इकाइयों को तब तक संचालित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जब तक कि वे पर्यावरण के अनुकूल नहीं होते हैं और जब तक अतीत में उनके अवैध संचालन के लिए, उनके द्वारा मुआवजे का भुगतान किया जाता है।

अदालत ने कहा कि नालियों के पानी के नमूनों में उच्च स्तर के प्रदूषण को देखते हुए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस तरह के प्रदूषण के स्रोत का पता लगाने और सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए एक अभियान शुरू करना चाहिए। ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया कि 18 जनवरी, 2021 से पहले 31 दिसंबर, 2020 तक साइट पर जाने और स्थिति देखने के बाद संयुक्त समिति द्वारा एक और रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी चाहिए।

खुर्जा में बूचड़खानों के अवैध संचालन पर एनजीटी में दायर याचिका से संबंधित यह आदेश, भूजल, नालियों, नदियों में अपशिष्टों को बहाना और बिना किसी कानूनी अधिकार के भूजल निकालने के मामले में है। दायर याचिका में कथित मानदंडों का उल्लंघन करने का भी आरोप लगाया गया था।

10 जून को एक संयुक्त समिति की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी, रिपोर्ट में कहा गया था कि मुंडाखेड़ा रोड पर 15 बूचड़खानों और मांस प्रसंस्करण इकाइयों में से, खुर्जा में केवल 3 चालू हालत में पाए गए थे और शेष 12 बंद थे।

मुंडाखेड़ा नाले की निगरानी के संबंध में, यह कहा गया था कि नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट की भारी मात्रा विभिन्न स्थानों पर, नाली के किनारे पर डंप की गई है।

ग्रीन बेल्ट के अतिक्रमण पर एनजीटी ने रिपोर्ट प्रस्तुत करने का दिया आदेश

दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और वन संरक्षक, पश्चिम वन प्रभाग को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने जनकपुरी में एक स्कूल के निर्माण के लिए ग्रीन बेल्ट में पेड़ों को काटने के आरोप पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।

कहा गया था कि स्कूल की साइट एक ग्रीन बेल्ट का हिस्सा थी, जिसे दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा गुरु विवेकानंद शिक्षा संस्थान को अवैध रूप से स्थानांतरित कर दिया गया।