प्रदूषण

पर्यावरण मुकदमों की डायरी: उत्तर प्रदेश की 707 बस्तियां आर्सेनिक प्रभावित: रिपोर्ट

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

27 जुलाई 2020 को जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंप दी है। मामला उत्तरप्रदेश में आर्सेनिक के कारण भूजल में बढ़ते प्रदूषण से जुड़ा है।

रिपोर्ट के अनुसार बहराइच, बलिया, बलरामपुर, बरेली, बस्ती, बिजनौर, चंदौली, गाजीपुर, गोंडा, गोरखपुर, लखीमपुर खीरी, मेरठ, मिर्जापुर, मुरादाबाद, राय बरेली, संत कबीर नगर, शाहजहांपुर, सिद्धार्थनगर, संत रविदास नगर, उन्नाव और उत्तर प्रदेश के कुछ अन्य जिले में भूजल आर्सेनिक के कारण  दूषित हो चला है। इसके साथ ही यहां पीने के साफ़ पानी की भी भरी किल्लत है जिस वजह से यह जिले 2015 से ही नजर में हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 707 जगह आर्सेनिक प्रभावित हैं। जिनमें से 164 निवास स्थान ऐसे हैं जहां अब तक पाइप वाटर नहीं पहुंच पाया है। जिनमें से 44 बस्तियों में दिसंबर 2020 तक पाइप लाइन का काम पूरा हो जाएगा जबकि 45 बस्तियों में मार्च 2021 तक पाईप लाइन जरिए जल की व्यवस्था कर दी जाएगी। इसके अलावा 120 बस्तियों को सामुदायिक जल शोधन संयंत्र (सीडब्ल्यूपीपी) द्वारा कवर करने का प्रस्ताव रखा गया है।

रिपोर्ट के अनुसार आर्सेनिक प्रदूषित बस्तियों में हैंडपंपों को हटाने का काम अब तक पूरा नहीं हुआ है जो अगले 3 महीनों में पूरा हो जाएगा। इसके साथ ही रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि स्वास्थ्य विभाग द्वारा अगले 3 महीनों के अंदर प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया जाना चाहिए और 6 महीने के अंदर उसे दूर करने के लिए एक माइक्रो प्लान एनजीटी में पेश किया जाना चाहिए।

इसके साथ ही रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि कृषि विभाग द्वारा भी एक अध्ययन किया जाना चाहिए जिससे फूड चेन पर इसके प्रभाव को समझा जा सके। साथ ही 6 महीने के अंदर इसके इम्पैक्ट असेसमेंट प्लान को तैयार कर सकते हैं और कृषि पदत्ति और क्रॉपिंग पैटर्न में भी बदलाव किया जा सकता है, जिससे इसके हानिकारक प्रभावों को कम किया जा सके। 

हरियाणा में सॉलिड वेस्ट के ठीक से निपटान न करने पर एनजीटी ने अधिकारियों पर दिखाई नाराजगी

एनजीटी ने हरियाणा के अधिकारियों द्वारा सॉलिड वेस्ट के लिए किए जा रहे कामों पर नाराजगी जताई है। मामला हरियाणा के सिरसा में डबवाली से जुड़ा है। जहां वैज्ञानिक तरीके से सॉलिड वेस्ट का निपटान नहीं किया जा रहा है। राज्य द्वारा 15 जुलाई को एक रिपोर्ट दायर की गई है जिसके अनुसार सॉलिड वेस्ट के निपटान का काम वैधानिक नियमों के अनुसार नहीं हो रहा है।

एनजीटी ने इसे ठीक करने के लिए अधिकारियों को एक 'अंतिम अवसर' दिया है। साथ ही वेस्ट को रोकने के लिए जरुरी और कड़े कदम उठाने के लिए कहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 11 जनवरी, 2021 को की जाएगी। अदालत ने निर्देश दिया है कि इस आदेश की एक प्रति अनुपालन के लिए हरियाणा के शहरी स्थानीय निकाय विभाग के सचिव को भेजी जाए। 

थर्मल पावर प्लांट और कोयला वॉशर से हो रहे प्रदूषण की जांच के लिए एनजीटी ने समिति को दिया अतिरिक्त समय

थर्मल पावर प्लांट और कोयला वॉशर के कारण हो रहे प्रदूषण की जांच के लिए समिति ने एनजीटी से अतिरिक्त समय मांगा था, जिसे कोर्ट ने 28 जुलाई को स्वीकार कर लिया है। मामला छत्तीसगढ़ में रायगढ़ जिले के तमनार और घरघोड़ा ब्लॉक का है। जहां थर्मल पावर प्लांट और कोयला वॉशर के कारण होने वाले प्रदूषण की जांच के लिए एनजीटी  ने एक जांच समिति गठित की थी।

यह बिजली संयंत्र और कोयला वाशरियां मैसर्स जिंदल पावर लिमिटेड, मैसर्स जिंदल पावर एंड स्टील लिमिटेड, मैसर्स टीआरएन एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड, मैसर्स महावीर एनर्जी एंड कोल बेनेफिकेशन लिमिटेड, मैसर्स हिंडालको इंडस्ट्रीज लिमिटेड और मैसर्स मोनेट एनर्जी लिमिटेड, एसईसीएल के हैं।

गौरतलब है कि कथित तौर पर इन इकाइयों से हवा, पानी और जमीन दूषित हो रही थी। वहीं पर्यावरण और आसपास रहने वाले लोगों पर इसका बुरा असर पड़ रहा था। वहां पानी और मिट्टी में जहरील धातुएं मिली हैं जो स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा हैं। यही वजह है कि इनसे हो रहे उत्सर्जन की निगरानी करना जरुरी है। साथ ही प्रदूषण की जवाबदेही भी तय करना जरुरी है और इसको रोकने के उपाय करना भी आवश्यक है।

एनजीटी ने 27 फरवरी को निर्देश दिया था कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा सबमिट रिपोर्ट में जो उपाए सुझाए गए हैं उनपर अमल किया जाए।

रिपोर्ट में थर्मल पावर प्लांटों में इलेक्ट्रो-स्टैटिक प्रीसिपिटेटर्स (ईएसपी) और फ्यूल गैस डी-सल्फराइजेशन सिस्टम (एफजीडी) की स्थापना का सुझाव दिया था। साथ ही भूजल में आ रही गिरावट, मृदा प्रदूषण, जंगलों के हो रहे विनाश और रोजगार पर पड़ रहे असर को भी नजरअंदाज नहीं करने के लिए कहा है।

अदालत ने कहा है कि "इन प्लांट्स में किसी भी तरह के विस्तार या नई परियोजनाओं को केवल गहन मूल्यांकन के बाद ही अनुमति दी जानी चाहिए। साथ ही प्रदूषण को कम करने के उपायों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। इसमें स्वास्थ्य पर पड़ रहे असर और उसको रोकने के उपायों पर भी ध्यान देना चाहिए।

झीलों को प्रदूषण से बचाने के लिए बेंगलुरु में बन रहे हैं एसटीपी

बेंगलूरु जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) ने एनजीटी के समक्ष अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी है। जिसमें उसने इस बात की जानकारी दी है कि किस तरह बेलंदूर, अगारा और वरथुर झील में सीवेज न बहाया जाए इस बात सुनिश्चित किया गया है। इसके साथ ही इस रिपोर्ट के अनुसार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के निर्माण का काम भी शुरू हो गया है जो 30 सितंबर, 2020 तक पूरा हो जाएगा। साथ ही सीवरेज नेटवर्क बिछाने और मौजूदा एसटीपी में बदलाव करके उन्हें जैविक पोषक तत्वों को हटाने के भी काबिल बनाया जाएगा। इसके साथ ही इस बात को भी सुनिश्चित किया गया है कि साफ किए गए जल को यूजीबी नेटवर्क में नहीं डाला जाए और न है ट्रीटेड सीवेज झीलों में बहाया जाए।

बीडब्ल्यूएसएसबी ने कहा है देशव्यापी लॉकडाउन के कारण 24 मार्च से 14 अप्रैल तक काम नहीं हो सका था। इसके अलावा, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, भारत सरकार ने बेंगलुरु को रेड जोन में वर्गीकृत किया था। इस कारण प्रतिबंधों को 3 मई तक जारी रखा गया था। हालांकि गैर-जरूरी माल वाहनों की आवाजाही को अनुमति दी गई थी, लेकिन विनिर्माण इकाइयों के बंद होने के कारण निर्माण के लिए आवश्यक सीमेंट और स्टील की व्यवस्था नहीं की जा सकी थी।

बीडब्ल्यूएसएसबी ने कोर्ट को सूचित किया है कि एक्टिवेटिड सीवेज पर आधारित 150 एमएलडी क्षमता का नया एसटीपी जल्द ही पूरा हो जाएगा। कोरमंगला स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में 210 एमएलडी क्षमता का आईएसपीएस (मध्यवर्ती सीवेज पंपिंग स्टेशन) के निर्माण का काम पूरा हो चुका है, लेकिन 150 एमएलडी एसटीपी के पूरा होने के बाद ही इससे सीवरेज पंप किया जाएगा। रिपोर्ट में यह भी बताया है कि चिक्कबगुरु में 5 एमएलडी एसटीपी और हुलीमावु में 10 एमएलडी एसटीपी का काम पूरा हो चुका है।