न्यायमूर्ति एस पी गर्ग की अध्यक्षता वाली समिति ने एनजीटी में जो रिपोर्ट सबमिट की है उसमें कहा है कि अनावश्यक हॉर्न बजाने के मामले में जीरो टॉलरेंस की नीति का पालन किया जाना चाहिए। इसके साथ ही समिति ने ध्वनि प्रदूषण पर जागरूकता बढ़ाने की भी सिफारिश कोर्ट से की है।
मामला दिल्ली में ध्वनि प्रदूषण की बढ़ती समस्या से जुड़ा है। गौरतलब है कि एस पी गर्ग समिति ने यह रिपोर्ट एनजीटी के 11 अगस्त 2020 और 3 फरवरी, 2022 को दिए आदेश पर कोर्ट में सबमिट की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार शहरों में गाड़ियों से होने वाला शोर बढ़ते ध्वनि प्रदूषण की वजह है। जानकारी दी गई है कि शहर में 60 से 70 फीसदी शोर सड़क यातायात से हो रहा है। ऐसे में समिति ने वाहनों से होने वाले शोर को सीमित करने के लिए पेड़ लगाने और हॉर्न का कम से कम उपयोग करने की सलाह दी है। साथ ही कहा है कि लोगों को इस बारे में जागरूक करने की जरुरत है।
इसके साथ ही वाहनों की गति में लगाम लगाने जैसे अन्य उपायों को अपनाने की बात भी कही है। इसके साथ ही समिति नई सिफारिश की है दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा निर्माण कार्यों के लिए जो ड्राफ्ट दिशा-निर्देशों बनाए जा रहे हैं, उन्हें तेजी से अंतिम रूप दिया जाना चाहिए।
भूजल का अवैध दोहन कर रहे हैं सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र के ज्यादातर उद्योग
संयुक्त समिति द्वारा तैयार विश्लेषण रिपोर्ट से पता चला है कि मध्य प्रदेश में इंदौर के सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र के ज्यादातर उद्योग भूजल के अवैध दोहन में लगे हैं। इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि वहां के ज्यादातर उद्योग केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) से एनओसी लिए बिना ही भूजल का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं।
इसके साथ ही समिति ने भूजल के नमूनों का भी विश्लेषण किया है जिससे पता चला है कि वहां भूजल में मौजूद हानिकारक घटकों (डिसॉल्व सॉलिड्स) की मात्रा निर्धारित मानकों से ज्यादा है। रिपोर्ट के अनुसार ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि उस क्षेत्र में लम्बे समय से उद्योग गंदे पानी को ऐसे ही जमीन पर छोड़ रहे थे, क्योंकि उनके पास सामान्य सीवेज और एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट की व्यवस्था नहीं थी।
इसके साथ ही रिपोर्ट में इसकी जो एक और वजह बताई गई है वो यह है कि नदी के पास स्थित आवासीय कॉलोनियों से निकलने वाले अनुपचारित घरेलू अपशिष्ट को ऐसे ही छोड़ा जा रहा है, जो इस भूजल में बढ़ते प्रदूषण की वजह हो सकता है। गौरतलब है कि यह कॉलोनियां औद्योगिक क्षेत्र के ऊपर की ओर स्थित नरवर नाले के पास स्थित हैं, जो औद्योगिक क्षेत्र से होकर गुजरता है।
एनजीटी को सही जानकारी नहीं दे रहा टीडीआई इंफ्रास्ट्रक्चर
टीडीआई शहर कुंडली के लिए सीवरेज, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं देना टीडीआई इंफ्रास्ट्रक्चर की जिम्मेवारी है लेकिन वो ऐसा नहीं कर रहा है। यह जानकरी आवेदक मनोरमा शर्मा और संदीप सचिन द्वारा दायर हलफनामे में सामने आई है। इसके साथ ही आवेदकों का आरोप है कि टीडीआई इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को झूठे रिकॉर्ड दिखा रहा है।
हलफनामे से पता चला है कि आवेदकों ने टीडीआई सिटी कुंडली, सोनीपत, हरियाणा में प्लाट खरीदा है। यह टीडीआई शहर लगभग 1200 एकड़ भूमि में फैला है। जहां प्लाट पर निर्माण कार्य प्लाट खरीददारों द्वारा स्वयं किया जाना है, जबकि सीवरेज, बिजली, पानी, बागवानी, एसटीपी, वर्षा जल संचयन जैसी सामान्य सुविधाएं परियोजना प्रस्तावक यानी टीडीआई इंफ्रास्ट्रक्चर द्वारा प्रदान की जानी थी। लेकिन वो ऐसा करने में विफल रहा है।
इतना ही नहीं आवेदकों ने यह भी आरोप लगाया है कि परियोजना प्रस्तावक ने रिकॉर्ड में हेराफेरी करके एनजीटी के साथ भी धोखाधड़ी करने की कोशिश की है। पता चला है कि टीडीआई इंफ्रास्ट्रक्चर में विकास दिखाने के लिए अपार्टमेंट प्रोजेक्ट संबंधित दस्तावेज कोर्ट में दाखिल किए हैं।
झांपर नदी तट पर होते रेत खनन के मामले में समिति ने एनजीटी को सौंपी रिपोर्ट
झांपर नदी के तट पर होते रेत खनन के मामले में समिति ने अपनी रिपोर्ट एनजीटी को सौंप दी है। यह खनन मध्य प्रदेश में शहडोल की जयसिंहनगर तहसील में बाराच गांव में चल रहा था। संयुक्त समिति ने निरीक्षण के बाद एनजीटी को जो रिपोर्ट सौंपी है उसमें जानकारी दी है कि वहां खनन पट्टा मालिक को संबंधित अधिकारियों से सभी आवश्यक अनुमतियां और वैध अनुमोदन मिल गया है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, "ऐसा लगता है कि शिकायत में उठाया गया मामला संभावनाओं और निराधार और दोषपूर्ण धारणा पर आधारित है।" वर्तमान स्थिति यह है कि इन खदानों में खनन गतिविधियों को जनवरी 2022 की शुरुआत से ही रोक दिया गया है और मानसून के चलते सितंबर 2022 तक यहां दोबारा खनन की सम्भावना नहीं है।