प्रदूषण

एनजीटी के आदेश पर रीवा में अवैध स्टोन क्रशर और खनन इकाइयों की जांच के लिए समिति गठित

एनजीटी के समक्ष दायर एक शिकायत में रीवा के विभिन्न गांवों में चल रहे अवैध स्टोन क्रशरों और खनन इकाइयों के कारण होते प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र को हो रहे नुकसान का मुद्दा उठाया था

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेंट्रल बेंच ने रीवा के कई गांवों में चल रहे अवैध स्टोन क्रशर और खनन कार्यों के आरोपों की जांच के लिए पांच सदस्यीय संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है। मामला मध्य प्रदेश का है।

कोर्ट ने इस समिति से क्षेत्र का दौरा करने के साथ-साथ, पर्यावरण पर पड़ते प्रभावों का आंकलन करने को कहा है। साथ ही समिति को सहमति की शर्तों और पर्यावरण मंजूरी का पालन किया जा रहा है या नहीं, इसकी जांच का भी काम सौंपा गया है। 28 फरवरी 2024 को जारी इस आदेश के मुताबिक, समिति को अगले छह सप्ताह के भीतर एक तथ्यात्मक रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट करनी होगी।

गौरतलब है कि एनजीटी के समक्ष दायर एक शिकायत में रीवा के विभिन्न गांवों में चल रहे अवैध स्टोन क्रशरों और खनन इकाइयों के कारण होते प्रदूषण का मुद्दा उठाया गया था। यह भी शिकायत है कि इसकी वजह से पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो रहा है।

आरोप है कि धूल प्रदूषण के चलते हवा और जलस्रोत दूषित हो रहे हैं। अवैध विस्फोटकों की मदद से किए जा रहे विस्फोट न केवल हवा और पानी की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचा रहे हैं, साथ ही मानव जीवन के लिए भी खतरा पैदा कर रहे हैं।

इस बारे में मध्य प्रदेश राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एमपीएसईआईएए) ने अपनी बैठक में कहा था कि, चूंकि स्टोन क्रशर इकाइयों को संचालन के लिए पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) की आवश्यकता नहीं है। इसकी वजह से एमपीएसईआईएए के पास इसकी नियमित निगरानी और जांच के लिए कोई तंत्र नहीं है। यही वजह है कि इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया गया और समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है।

यह भी जानकारी दी गई है कि रीवा की हुजूर तहसील में स्थित नरौरा, हिनौती, सोनरा, मध्यपुर, छिजवार, बहेलिया, कहमेरिया, बैजनाथ और बेला सहित गांवों के आवासीय क्षेत्रों में 32 स्टोन क्रशर या खनन इकाइयां बिना लाइसेंस और अनुमति के अवैध रूप से चल रही हैं।

क्या लार्सन एंड टुब्रो ने सिंचाई परियोजना के निर्माण में किया पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 27 फरवरी 2024 को एक सिंचाई परियोजना के निर्माण में लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड द्वारा पर्यावरण नियमों के उल्लंघन का मुद्दा  उठाया है। मामला मध्य प्रदेश का है। ट्रिब्यूनल ने इस मामले में संयुक्त समिति से एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

इसके साथ ही कोर्ट ने समिति से साइट का दौरा कर छह सप्ताह के भीतर तथ्यात्मक एवं कार्रवाई रिपोर्ट सौंपने को कहा है। इस मामले में मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड समन्वय और लॉजिस्टिक समर्थन के लिए नोडल एजेंसी होगी। इस मामले पर अगली सुनवाई 16 अप्रैल 2024 को होगी।

गौरतलब है कि यह पूरा मामला एक सिंचाई परियोजना से जुड़ा है। इस परियोजना का निर्माण लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के साथ मिलकर नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण द्वारा किया गया है। आरोप है कि इस सिंचाई परियोजना के निर्माण के दौरान पर्यावरण और वन मंजूरी संबंधी शर्तों का पालन नहीं किया गया था।

यह भी आरोप है कि खुदाई से निकलने वाले कचरे को बिना ढंके आसपास के वन क्षेत्रों में डंप किया गया, जो वन संरक्षण अधिनियम 1980 का उल्लंघन है। इसकी वजह से वायु प्रदूषण हो रहा है। इसके अतिरिक्त, यह भी आरोप है कि लार्सन एंड टुब्रो ने नियमों को ताक पर रख आवश्यकता से कम गहराई पर पाइपलाइन बिछाई है।

आवेदक का यह भी आरोप है कि परियोजना प्रस्तावक वन और पर्यावरण मंजूरी संबंधी शर्तों का भी उल्लंघन कर रहा था। उसने जंगल में एक पंप हाउस का निर्माण किया है। हालांकि उसकी वजह से वन क्षेत्र को जो नुकसान पहुंचा है, उसकी भरपाई नहीं की गई है। इसी तरह बिना उचित उपायों के मिट्टी को खुले में डंप किया गया। इसके लिए प्रभावित गांवों और वन समितियों से भी मंजूरी नहीं ली गई थी।

आवेदक का कहना है कि पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की वजह से वन क्षेत्र में पौधों और जानवरों को नुकसान पहुंचा है। साथ ही इसकी वजह से मूल निवासियों की जीविका भी प्रभावित हुई है।

लक्ष्मी ताल के जीर्णोद्धार के लिए शुरू की गई परियोजना ने जल गुणवत्ता में किया है सुधार

दस सदस्यीय समिति ने झांसी के लक्ष्मी ताल पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने जल पुनर्भरण, भंडारण क्षमता, जल गुणवत्ता और पारिस्थितिक संतुलन पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई शोध अध्ययनों और रिपोर्टों के आधार पर लक्ष्मी ताल के ऐतिहासिक पहलू का अध्ययन किया है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लक्ष्मी ताल के जीर्णोद्धार के लिए शुरू की गई परियोजना ने जल गुणवत्ता के साथ-साथ तालाब की पारिस्थितिकी में भी काफी सुधार किया है। इसके अलावा, जो चारदीवारी बनाई गई थी, उसकी वजह से आसपास के जलग्रहण क्षेत्र और मार्ग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। साथ ही इसकी वजह से लक्ष्मी ताल को एक पर्यटक स्थल के रूप में बढ़ावा देने में मदद मिली है।