प्रदूषण

दिल्ली के कई इलाकों में अवैध रूप से चल रही हैं रंगाई फैक्ट्रियां

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त निगरानी समिति संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर बिंदापुर, मटियाला, रणहोला, ख्याला, मीठापुर, बदरपुर, मुकुंदपुर और किरारी में अवैध रूप से चल रही रंगाई फैक्ट्रियों की जांच करेगी।

इस मामले में आवेदक वरुण गुलाटी ने कोर्ट के समक्ष आवेदन दायर किया था। इसे ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति से कहा है कि वरुण गुलाटी द्वारा दायर आवेदन में जिन इकाइयों का जिक्र किया है उनके संबंध में क्या कार्रवाई की गई है उसपर रिपोर्ट सबमिट करने के लिए कहा है।

23 मई, 2023 को एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि इस रिपोर्ट में सहमति ली है या नहीं उसकी स्थिति का जिक्र होना चाहिए। इसके साथ ही नाली में कचरे के निपटान की क्या स्थिति है, उसकी गुणवत्ता, के साथ-साथ जो क्षेत्र इन इकाइयों के लिए उपयुक्त नहीं हैं उनकी स्थिति और बहाली के लिए क्या कार्रवाई की जानी है उसकी जानकारी भी अगले तीन महीनों के अंदर इस रिपोर्ट में देनी है।

आवेदक का कहना है कि 500 से ज्यादा ऐसे कारखाने चल रहे हैं। यह कारखाने खुले क्षेत्रों, नजफगढ़ नाले या स्वरूप नगर नाले दूषित पानी डाल रहे हैं। यह नाले यमुना में मिलते हैं। इसके साथ ही यह इकाइयां अवैध रूप से भूजल का भी दोहन कर रही है। साथ ही इस क्षेत्र में एफ्लुएंट को साफ करने के लिए सीईटीपी नहीं है।

नई बस्ती में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र और उसके आसपास किसी भी नए निर्माण को नहीं दी जानी चाहिए अनुमति: रिपोर्ट

पर्यावरण मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया है कि नई बस्ती के भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र और उसके आसपास किसी भी नए निर्माण को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यह रिपोर्ट 24 मई, 2023 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंपी है।

रिपोर्ट जम्मू के नई बस्ती में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में हो रहे निर्माण कार्यों से जुड़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक मानसून को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा प्रभावित क्षेत्रों की निगरानी की जानी चाहिए। साथ ही यदि प्रभावित क्षेत्र के बाहर भी घरों में बड़ी दरारों के बनने के संकेत मिलते हैं तो उन्हें तुरंत खाली कर दिया जाना चाहिए।

रिपोर्ट के अनुसार इसके साथ ही एहतियाती तौर पर प्रभावित क्षेत्र के बाहर रह रहे लोगों को भी सुरक्षित स्थानों पर भेजा जाना चाहिए। ढलान से भूस्खलन को रोकने के लिए सड़क किनारे 400 मीटर की दीवार बनाई जानी चाहिए, जिससे ढलान के टूटने पर जानमाल की हानि को रोका जा सके। इसके साथ ही बारिश से पहले पानी के रिसाव को रोकने के लिए सभी दरारों को सीमेंट के घोल से भर देना चाहिए।

एनजीटी ने 17 फरवरी, 2023 को एक मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया था। इस मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि नई बस्ती में घरों में दरारें आने के बाद 19 परिवारों को वहां से स्थानांतरित कर दिया गया था।

ऐसे में समिति को पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए बहाली सम्बन्धी उपायों का सुझाव देने के साथ धारण क्षमता, जल विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान के अध्ययन, साथ -साथ संबंधित और आकस्मिक मुद्दों पर विचार करने का काम सौंपा गया था। समिति ने व्यापक सिफारिशों और सुझावों को शामिल करते हुए एक ड्राफ्ट रिपोर्ट तैयार की है।

क्या गदौन की पहाड़ियों और उसके आसपास हो रहे बालू खनन से पर्यावरण को हो रहा है नुकसान: एनजीटी

एनजीटी ने साहिबगंज के गादौन की पहाड़ियों में चल रहे खनन के कारण पर्यावरण के होते विनाश पर रिपोर्ट मांगी है। मामला बिहार के साहिबगंज का है। जहां सैकड़ों एकड़ में किए जा रहे पत्थर और बालू खनन से पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है।

इस मामले में कोर्ट ने झारखंड सरकार, साहिबगंज के जिलाधिकारी, झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और 13 स्टोन क्रशरों से दो महीनों के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहा है। आवेदक के अनुसार इस क्षेत्र में पिछले 25 वर्षों से हो रहे खनन के कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंचा है। साथ ही यह ग्रामीणों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है। इतना ही नहीं इसके चलते भूजल के स्तर में भी गिरावट आ रही है।

आवेदक प्रदीप कुमार सिंह का कहना है कि  इसके लिए की गई ब्लास्टिंग से घरों को भी नुकसान पहुंचा है। इस मामले में झारखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 19 मई, 2023 को दाखिल की गई कार्रवाई रिपोर्ट में कहा है कि निरीक्षण के दौरान गढ़वा मौजा की सभी पत्थर खदानें और क्रशर बंद पाए गए थे।

ऐसा लगता है कि पत्थर की खदानों में अनुचित ढलान, बेंच की ऊंचाई और चौड़ाई जैसी अवैज्ञानिक खनन पद्धतियों का पालन किया गया था। खानों और क्रशिंग इकाइयों में और उसके आसपास कच्ची हॉल रोड पाई गई, जिसका ठीक से रखरखाव नहीं किया गया था।

इसके साथ ही वहां पर्याप्त पेड़ नहीं लगाए थे। न ही हरियाली देखी गई थी। यह खदानें गंगा के तट से 1.5 से दो किमी की दूरी पर स्थित पाई गईं। रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि खदानों से निकलने वाला कचरा गंगा के बाढ़ क्षेत्र में जमा हो सकता है।

रिपोर्ट से पता चला है कि गोडवा क्षेत्र में एक प्राकृतिक जलधारा 'मोती झरना' हुआ करती थी। हालांकि अवैज्ञानिक तरीके से होते खनन, बढ़ते दबाव और अन्य खदानों से जमा हो रहे कचरे के चलते यह धारा अब पूरी तरह कचरे से पट गई है।