प्रदूषण

यमुनानगर में अवैध खनन में शामिल तीन कंपनियों पर एनजीटी ने लगाया 18.7 करोड़ का जुर्माना

Susan Chacko, Lalit Maurya

यमुनानगर की रादौर तहसील में अवैध खनन में शामिल तीन कंपनियों पर एनजीटी ने 18.7 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। मामला यमुनानगर की रादौर तहसील में पोबारी गांव का है। एनजीटी ने पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए मैसर्स डेवलपमेंट स्ट्रैटजीज इंडिया प्रा. लिमिटेड, मैसर्स दिल्ली रॉयल्टी कंपनी और मैसर्स मुबारिकपुर रॉयल्टी कंपनी पर क्रमशः 2.5 करोड़, 4.2 करोड़ और 12 करोड़ रुपए का मुआवजा भरने का निर्देश दिया है।

अपने 18 नवंबर, 2022 को दिए आदेश में एनजीटी ने कहा कि इस राशि को एक महीने के भीतर हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास जमा किया जाना है।  इसका उपयोग जिला मजिस्ट्रेट के परामर्श से एक कार्य योजना तैयार करके और उसे क्रियान्वित करके पर्यावरण की बहाली के लिए किया जाएगा।

इस कार्य योजना में क्षेत्रों की बहाली, खनन के बाद के उपचारात्मक उपायों, नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बहाल करने और जरूरत पड़ने पर अन्य बहाली संबंधी गतिविधियों को शामिल करने की जरूरत है। एनजीटी ने आदेश में कहा है कि इसके लिए जिला पर्यावरण योजना को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

इस मामले की जांच कर रही निगरानी समिति का कहना है कि मैसर्स डेवलपमेंट स्ट्रैटजीज इंडिया प्रा. लिमिटेड ने बहाली सम्बन्धी अध्ययन करने की आवश्यकता का उल्लंघन किया है। साथ ही उसने ग्रीन बेल्ट का विकास नहीं किया है।

प्रगतिशील खान बंद करने की योजना को लागू न करना, सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाना और जीपीएस सिस्टम नहीं होना, नदी के बहाव को मोड़ना, अवैध इनस्ट्रीम माइनिंग, खनन पट्टा क्षेत्र के प्रवेश पर वे ब्रिज उपलब्ध नहीं कराना स्पष्ट रूप से पर्यावरण नियमों का  उल्लंघन है।

वहीं मैसर्स दिल्ली रॉयल्टी कंपनी के बारे में यह पाया गया कि उसने बाउंड्री पिलर स्थापित नहीं किए हैं और लीज की अवधि समाप्त होने के बाद भी खनन जारी रखा है। साथ ही वो उपचारित सीवेज के पानी की जगह टैंकर की मदद से भूजल का उपयोग कर रहा था। वहीं मैसर्स मुबारिकपुर रॉयल्टी कंपनी भी खनन के लिए निर्धारित गहराई को पार करते हुए पाई गई थी।

कोलेरू झील से अतिक्रमण हटाने का चल रहा है काम: संयुक्त समिति

कोलेरू वन्यजीव अभयारण्य आंध्र प्रदेश में एलुरु के वन्यजीव प्रबंधन प्रभाग के अधीन है और जानकारी मिली है कि वन विभाग सभी बाधाओं के बावजूद प्रभावी तरीके से अभयारण्य का प्रबंधन कर रहा है। यह जानकरी 17 नवंबर, 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष दायर संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में दी है।

पता चला है कि ज्यादातर जलीय कृषि के लिए क्षेत्र में मौसमी अतिक्रमणों के मामले सामने आए हैं, जिनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं। इसके लिए जो बांध बनाए गए थे उन्हें तोड़ दिया गया है साथ ही गांव स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए हैं, जिससे लोगों को इस बारे में जागरूक किया जा सके। जानकारी दी गई है कि कोलेरू झील प्रबंधन से संबंधित सभी जिला स्तरीय विभाग झील क्षेत्र की सुरक्षा और संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

जानकारी दी गई है कि उस स्थान पर बड़े पैमाने पर पक्षियों या मछलियों की मृत्यु नहीं दर्ज की गई गई है, जैसा कि शिकायत में आरोप लगाया गया था। साथ ही झील के पानी की गुणवत्ता वन्यजीवों के प्रसार के लिए उपयुक्त है। वन विभाग के पास हर साल होने वाली एशियन वाटर बर्ड सेंसस के माध्यम से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार कोलेरू झील बेसिन 4 लाख से अधिक पक्षियों का मददगार रहा है।

वर्तमान में यह क्षेत्र दक्षिण एशियाई स्पॉट-बिल्ड पेलिकन की 50 फीसदी आबादी और वैश्विक आबादी का 30 फीसदी से ज्यादा का आश्रय है। पता चला है कि इस क्षेत्र को अभयारण्य में शामिल किए जाने के बाद से विशेष रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि संयुक्त समिति द्वारा जारी यह रिपोर्ट एनजीटी  द्वारा 19 अप्रैल, 2022 को दिए आदेश पर तैयार की गई है।

गौरतलब है कि एलुरु मंडल में चतापरू के दाराम गोविंदा राजन ने ट्रिब्यूनल के समक्ष एक आवेदन दायर किया था, जिसमें उन्होंने कोलेरू झील में बड़े पैमाने पर होते अवैध अतिक्रमण की जानकरी दी थी, जिसके लिए तालाबों का निर्माण किया गया था, जो कि एलुरु और कृष्णा जिलों की प्रमुख झीलों में से एक कोलेरू झील के इकोसिस्टम को नष्ट कर रहा है।

नियमों को ताक पर रख ऊना में चल रहे अस्पताल के मामले में एनजीटी ने अधिकारियों से मांगा जवाब

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हिमाचल प्रदेश के ऊना के आवासीय भूखंड में चल रहे अस्पताल के मामले पर संबंधित अधिकारियों को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामला गैर-अनुरूप क्षेत्र में अस्पताल की स्थापना का है। इस मामले पर अगली सुनवाई 23 जनवरी, 2023 को होगी।

गौरतलब है कि आवेदक नवीन कुमार ने कहा था कि शिवालिक अस्पताल नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग, हिमाचल प्रदेश के मास्टर प्लान का उल्लंघन करते हुए और जल अधिनियम, 1974 के तहत संचालित करने की सहमति प्राप्त किए बिना ही 10 बिस्तरों वाला अस्पताल चला रहा था। इसने बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के तहत भी अनुमति नहीं ली थी।