प्रदूषण

रिपोर्ट में खनन से जुड़े क्या कुछ तथ्य आए सामने, केन नदी से जुड़ा है मामला

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

नदी तटों के प्रतिबंधित क्षेत्रों में खनन न हो इससे बचने के लिए केन नदी के पास खनन पट्टों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ऐसे में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) द्वारा दायर संयुक्त समिति की रिपोर्ट में इन-स्ट्रीम खनन को रोकने के लिए नदी के किनारे और भीतर खदान क्षेत्रों का आबंटन न करने की सलाह दी गई है। यह मामला उत्तर प्रदेश के बांदा में केन नदी के पास हो रहे अवैध खनन से जुड़ा है।

साथ ही 19 जून, 2023 को जारी इस रिपोर्ट में रेत खनन के लिए लागू और निगरानी किए गए दिशानिर्देशों (ईएमजीएसएम 2020) के साथ पट्टेदार द्वारा प्रस्तुत खनन योजना का पालन करने के महत्व पर भी जोर दिया गया है। रिपोर्ट में इस बात पर भी बल दिया गया है कि खनन प्रक्रिया के दौरान इन दिशानिर्देशों का पालन किया जाना चाहिए।

इसके साथ ही रिपोर्ट में खनन कार्य समाप्त होने के बाद और मानसून से पहले पर्यावरण बहाली के काम को पूरा कर लेने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। रिपोर्ट में पर्यावरण को उसकी मूल स्थिति में बहाल करने के लिए जरूरी उपाय करने की भी बात कही गई है, जिससे खनन गतिविधियों के कारण होने वाले संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।

गौरतलब है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 19 अप्रैल, 2023 को राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (एसईआईएए), यूपीपीसीबी और बांदा के जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति को मामले की जांच का निर्देश दिया था।

इस समिति ने गांव अमलोरखादर और खपतीहा में खनन क्षेत्रों का दौरा किया था। समिति के अनुसार अमलोरखादर के जिस क्षेत्र में खनन के लिए पट्टा दिया गया है वहां खनन नहीं हो रहा है, जबकि पैलानी तहसील के खपतीहा में पट्टा दिए क्षेत्र में खनन जारी था। पट्टा दिया गया यह क्षेत्र केन नदी और उसके आसपास है।

रिपोर्ट के मुताबिक खनन उस क्षेत्र में किया जा रहा है जो जलमग्न है। साथ ही यह भी सामने आया है कि वहां चल रही खनन गतिविधि तय सीमा को पार कर गई है। जैसा कि सतत रेत खनन प्रबंधन दिशानिर्देश 2016 (एसएसएमजी 2016) और रेत खनन 2020 के लिए प्रवर्तन और निगरानी दिशानिर्देश (ईएमजीएसएम 2020) में तय किया गया है। यह दिशानिर्देश उपलब्ध खनिजों का अधिकतम 60 फीसदी खनन करने की अनुमति देते हैं, लेकिन वास्तविक में वहां जितना भी खनिज मौजूद है उसका पूरा दोहन किया जा रहा है। इसमें पुनःपूर्ति किए गए खनिज भी शामिल हैं।

हालांकि जांच के दौरान यह पाया गया कि खनन, कार्य योजना के अनुसार निर्धारित सीमाओं के भीतर किया गया था। खनन गतिविधियों ने केन नदी पर अतिक्रमण नहीं किया था, और न ही इसके चलते उसके प्रवाह में कोई रुकावट पैदा हुई थी बांदा स्थित खान कार्यालय ने यह भी जानकारी दी है कि खनन की गई सामग्री की मात्रा मानसून से पहले की अवधि में उपलब्ध खनिजों की कुल मात्रा और 2022 में पुनःपूर्ति की गई खनिज की मात्रा से कम है। संयुक्त समिति ने खनन के बाद पर्यावरण बहाली की योजना के बारे में भी जानकारी दी है।

जैसा की तय किया गया था कि खनन क्षेत्र के 20 फीसदी हिस्से में वृक्षारोपण किया जाना था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया था। टीम ने यह भी जानकारी दी है कि पर्यावरण ऑडिट और उससे जुड़े नियमों का खनन क्षेत्र में सख्ती से पालन नहीं किया गया था।

मणिपुर में दूषित जल के दोबारा उपयोग के लिए बनाई गई है कार्य योजना

मणिपुर ने दूषित जल को साफ करने के बाद उसके पुन: उपयोग के लिए नीति और कार्य योजना तैयार कर ली है, जिसे जल्द ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा। यह जानकारी मणिपुर द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को सौंपी रिपोर्ट में दी गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट (पीएचईडी) दूषित जल प्रबंधन के लिए विकेंद्रीकृत या पारंपरिक तकनीकों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

इसके साथ ही शहरी क्षेत्रों में घर-घर जाकर कचरा एकत्र किया जा रहा है साथ ही उसको अलग करने पर भी ध्यान दिया गया है। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में गीले कचरे से खाद बनाई जा रही है। साथ ही पहाड़ी गांवों में इसे जानवरों को खिलाना आम है।

रिपोर्ट के अनुसार इन गांवों में पैदा हो रहे करीब 90 फीसदी ठोस कचरे को पशु चारे या खाद के रूप में उपयोग किया जा रहा है। वहीं शहरी क्षेत्रों ने मैटेरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) स्थापित की हैं जो प्रत्येक शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) में चालू हैं।

इसके साथ ही अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़ी बेस्ट प्रैक्टिसेज से सीखने के लिए विभिन्न विभागों के अधिकारियों की एक टीम ने इंदौर का दौरा किया था। इसमें जनजातीय मामलों के साथ पहाड़ी विभाग, ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग, शहरी विकास, पीएचईडी और पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन निदेशालय के अधिकारी शामिल थे।

16 जून 2023 को सबमिट रिपोर्ट में बताया गया है कि अब यह टीम शहरी, ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में कचरा प्रबंधन के लिए एकीकृत कार्य योजना पर काम कर रही है।

दिल्ली के रिहायशी इलाके में अवैध रूप से चल रही थी तीन औद्योगिक इकाइयां

दिल्ली के रिहायशी इलाके में अवैध रूप से चल रही तीन औद्योगिक इकाइयों का पता चला है। मामला दिल्ली के शास्त्री नगर का है। इस मामले में परिसर के मालिकों को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने नोटिस जारी किए हैं और उन्हें दिल्ली मास्टर प्लान 2021 के अनुसार परिसर का सही उद्देश्य के लिए उपयोग करने का निर्देश दिया है।

यह जानकारी पूर्वी दिल्ली के जिला मजिस्ट्रेट ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष दायर अपनी रिपोर्ट में दी है।