प्रदूषण

पर्यावरण अनुकूल तरीके से किया जाना चाहिए फ्लाई ऐश का निपटान: एनजीटी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 19 सितंबर, 2022 को दिए अपने निर्देश में कहा है कि छत्तीसगढ़ में आम लोगों में फ्लाई ऐश के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। साथ ही नियामक प्राधिकरण से एनओसी प्राप्त करने की प्रक्रिया को भी आसान बनाने की जरूरत है।

साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि अधिकारियों को अवैध निपटान के संबंध में कोई शिकायत प्राप्त होती है तो परिवहनकर्ताओं पर दंडात्मक कार्रवाई सहित नियमों के अनुसार सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

कोर्ट ने कहा है कि राज्य प्राधिकरण को फ्लाई ऐश और बॉटम ऐश के सुरक्षित परिवहन के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के पालन के लिए सभी ट्रांसपोर्टरों को निर्देश देना चाहिए। प्रत्येक फ्लाई ऐश ट्रांसपोर्टर को अपने वाहनों पर यह लिखना चाहिए “यदि इस वाहन द्वारा फ्लाई ऐश की कोई अवैध डंपिंग देखी जाती है तो कृपया कलेक्टर को सूचित करें।“

इसके साथ ही ट्रांसपोर्टर को वाहन पर अपना संपर्क नंबर स्पष्ट रूप से देना चाहिए। इस संबंध में सभी उद्योगों को एक आधिकारिक पत्र जारी किया जा सकता है। इस मामले में एनजीटी के जस्टिस शिव कुमार सिंह की बेंच ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में फ्लाई ऐश के उपयोग और निपटान को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है।

कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार को इसकी जिम्मेदारी तय करनी चाहिए और इसके लिए वो क्षेत्र के सभी बिजली संयंत्रों से पूछ सकते हैं कि वे इस मुद्दे को कैसे हल करेंगे। ड्राई फ्लाई ऐश के निपटान को बढ़ावा देने के लिए, कोरबा जिले के संबंधित थर्मल पावर प्लांट्स (टीपीपी) से निकलने वाली फ्लाई ऐश के निपटान पर ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके संभावित उपयोगकर्ताओं को  किफायती और पर्यावरण अनुकूल तरीके से परिवहन में क्या समस्याएं आती हैं उनका समाधान किया जाना चाहिए।

गौरतलब है कि एनजीटी का यह आदेश राम अवतार अग्रवाल द्वारा 25 अप्रैल, 2022 को बाल्को कंपनी मैनेजमेंट, जिला कोरबा, छत्तीसगढ़ द्वारा नियमों के  उल्लंघन और स्वास्थ्य एवं कृषि पर पड़ते प्रतिकूल प्रभाव के कारण फ्लाई ऐश निपटान के संबंध में दायर आवेदन के जवाब में आया है।

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने यूकेलिप्टस के 1,006 पेड़ों को काटने की दी मंजूरी

देहरादून में सड़कों को चौड़ा करने के लिए पेडों को काटने के खिलाफ आशीष कुमार गर्ग द्वारा दायर अपील को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया है। मामला उत्तराखंड में देहरादून के जोगीवाला/लाडपुर/सहस्त्रधारा क्रॉसिंग/कृशाली स्क्वायर/पैसिफिक गोल्फ एस्टेट से जुड़ा है।

इस बारे में 16 अगस्त, 2022 को उत्तराखंड सरकार ने उच्च न्यायालय को सूचित किया था कि सड़कों को चौड़ा करने के लिए जिन नीलगिरी के 1,006 पेड़ों को काटने की आवश्यकता थी, उनमें से 528 पेड़ पहले ही 4 अगस्त, 2022 तक काटे जा चुके हैं।

इसके अलावा, मसूरी के मंडल वन अधिकारी ने अपने 4 अप्रैल, 2022 को एक पत्र के माध्यम से जानकारी दी है कि यूकेलिप्टस के यह पेड़, जो कि राइट ऑफ वे (आरओडब्ल्यू) के भीतर आते हैं, 1976 में लगाए गए थे, और उक्त पेड़ बड़े आकार के हैं और पहले ही अपनी रोटेशन अवधि यानी इष्टतम आयु पूरी कर चुके हैं।

इस मामले में उच्च न्यायालय का कहना है कि "हालांकि, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि नीलगिरी के 1006 पेड़ों को काटने से, कम से कम कुछ समय के लिए, पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव जरूर पड़ेगा। साथ ही इसकी वजह से उन पक्षियों और कीड़ों पर भी असर पड़ेगा, जो ऐसे पेड़ों में घोंसला बनाते हैं।

कोर्ट का कहना है कि हम इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते की इन पेड़ों को काटने से उत्तराखंड में यूकेलिप्टस के पेड़ों सहित पेड़ों पर घोंसला बनाने वाले पक्षियों और कीड़ों की प्रजातियां असुरक्षित हो जाएंगी।

अवैध हैं गोरेवाड़ा रिजर्व फॉरेस्ट में बांस प्रसंस्करण के लिए स्थापित रासायनिक उपचार संयंत्र: एनजीटी

एनजीटी ने अपने 19 सितंबर 2022 को दिए निर्णय में कहा है कि महाराष्ट्र बांस विकास बोर्ड ने वन मंजूरी के बिना ही नागपुर के गोरेवाड़ा रिजर्व फॉरेस्टमें बांस प्रसंस्करण के लिए एक केमिकल ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया था।

इस प्रकार, बोर्ड ने अनुसंधान और वृक्षारोपण के उद्देश्य से दी गई भूमि के किसी भी हिस्से के अन्य उपयोग के लिए केंद्र सरकार से अनुमति न लेकर वन संरक्षण अधिनियम की धारा 2 का उल्लंघन किया है।

ऐसे में एनजीटी ने महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नियमों के अनुसार जुर्माने की गणना करने और महाराष्ट्र बांस विकास बोर्ड को सुनवाई का अवसर देने के बाद 2 महीने के भीतर इसकी वसूली करने का निर्देश दिया है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए भी कहा है कि उक्त स्थान को पहले की तरह उसकी मूल स्थिति में बहाल किया जाए।

बच्चों के लिए पुलिस स्टेशनों में पैरा-कानूनी स्वयंसेवकों की जानी चाहिए नियुक्ति: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के कानूनी सेवा प्राधिकरणों को निर्देश दिया है कि वे लापता बच्चों और बच्चों के खिलाफ अन्य अपराधों के मामले में पुलिस स्टेशनों में पैरा-लीगल स्वयंसेवकों की जल्द से जल्द नियुक्ति करें। कोर्ट ने इसके लिए तीन महीने का वक्त दिया है।

इस बारे में शीर्ष अदालत ने अपने 19 सितंबर, 2022 को दिए आदेश में कहा है कि संबंधित राज्य/ केंद्र सरकार इन योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए धन की व्यवस्था करेगी। राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण द्वारा लापता बच्चों के लिए तैयार की गई पुलिस थानों में पैरा लीगल वालंटियर्स के पैनल संबंधी योजना को सभी राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों के कानूनी सेवा प्राधिकरणों को एक मॉडल के रूप में भेजा गया है।