सुप्रीम कोर्ट ने केंद सरकार से कहा कि वह तय करे कि क्या ओडिशा में खनन पर कोई सीमा होनी चाहिए। साथ ही यह सीमा कैसे तय की जाए, उसके लिए क्या तौर-तरीके अपनाए जाने चाहिए, इस बारे में भी कोर्ट ने केंद्र से उसकी राय मांगी है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि, सरकार यह भी देखे कि कर्नाटक और गोवा में खनन सीमाओं का आधार क्या है। इस मामले में केंद्र सरकार को अगले आठ हफ्तों में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
इस बारे में ओडिशा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी है कि मौजूदा समय में अवैध खनन के कारण ब्याज को छोड़कर 2,622 करोड़ रूपए की राशि बकाया है, जिसमें से 2,215 करोड़ रूपए की धनराशि पांच पट्टेदारों से वसूली जानी है।
सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार से कहा है कि वो बकाए की वसूली की प्रक्रिया जल्द से जल्द शुरू करे और भुगतान न करने वालों की संपत्ति कुर्क करने के लिए कानूनी कदम उठाए। साथ ही, कोर्ट का कहना है कि निविदा के नियमों में यह स्पष्ट होना चाहिए कि कोई भी व्यक्ति जिस पर पैसा बकाया है या जिसका पैसा बकाया वाले लोगों से संबंध है, उसकी निविदा पर विचार नहीं किया जाएगा।
एनजीटी ने दिया सुबर्णरेखा पर होते अतिक्रमण के मामले में जांच समिति के गठन का निर्देश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी पीठ ने सुबर्णरेखा नदी तल पर होते अतिक्रमण के आरोपों की जांच के लिए चार सदस्यीय समिति के गठन का निर्देश दिया है। अतिक्रमण का यह आरोप प्लास्टिक फैक्ट्री यूनिट और कोयला डिपो पर लगा है। इस अतिक्रमण के कारण नदी का प्राकृतिक प्रवाह कम हो रहा है और यह बाढ़ तटबंध के मार्ग को बाधित कर रहा है।
कोर्ट ने अपने दस अगस्त, 2023 को दिए आदेश में यह भी कहा है कि यदि उल्लंघन पाया जाता है, तो उल्लंघनकर्ताओं के खिलाफ कानून को ध्यान में रखते हुए उचित कार्रवाई शुरू की जाए। साथ ही उनपर उचित पर्यावरणीय मुआवजा भी लगाया जाए।
आरोप है कि जलेश्वर तहसील के अंतर्गत सेखसराय मौजा में सुवर्णरेखा नदी के इकोसिस्टम को अपशिष्ट और दूषित जल छोड़े जाने के कारण नुकसान हो रहा है। लोगों का यह भी कहना है कि एक कंक्रीट की दीवार पानी के प्राकृतिक बहाव को रोक रही है और बाढ़ तटबंध को अवरुद्ध कर रही है।
बाणगंगा को दूषित कर रहा, लक्सर औद्योगिक क्षेत्र से निकलने वाला औद्योगिक अपशिष्ट, आरोपों की जांच के लिए समिति गठित
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने निर्देश दिया है कि लक्सर औद्योगिक क्षेत्र से बाणगंगा में मिलने वाले नाले में दो उद्योगों द्वारा छोड़े गए दूषित पानी के आरोपों की जांच एक संयुक्त समिति करेगी। मामला उत्तराखंड के हरिद्वार का है।
कोर्ट के आदेश पर गठित इस समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), क्षेत्रीय कार्यालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ एंड सीसी), राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी), उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी) के साथ हरिद्वार और मुजफ्फरनगर के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) शामिल होंगें।
यह समिति साइट का दौरा करने के बाद मौजूदा स्थिति की समीक्षा करेगी।
इस मामले में समिति को एक तथ्यात्मक और कार्रवाई रिपोर्ट तीन महीने के भीतर कोर्ट में प्रस्तुत करनी है। इस मामले में अगली सुनवाई 22 नवंबर, 2023 को होगी।
इस संबंध में शिकायत उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर में शुक्रताल गंगा घाट पर गंभीर जल प्रदूषण के संबंध में दायर की गई थी। शिकायतकर्ता के अनुसार मैसर्स आर.बी.एन.एस. शुगर मिल प्रा. लिमिटेड मैसर्स आर.बी.एन.एस. डिस्टलरी प्रा. लिमिटेड, दोनों हरिद्वार के लक्सर औद्योगिक क्षेत्र में बाणगंगा नदी के ऊपर स्थित हैं।
आरोप है कि यह दोनों उद्योग अत्यधिक प्रदूषणकारी औद्योगिक अपशिष्टों को नाले में बहा रहे हैं, जो आगे बाणगंगा नदी में मिल जाता है। इन दोनों ही उद्योगों को जब भी मौका मिलता है वे अपने लैगून में जमा जहरीले कचरे को बाहर निकाल देते हैं।
शिकायतकर्ता के मुताबिक अवैध निकासी का यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चल रहा है। इदरीशपुर नाले में बड़ी मात्रा में दूषित जल छोड़ा जाता है, जो शुक्रताल घाट के निचले हिस्से तक बाणगंगा नदी के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है। यह बाते एनजीटी को 29 जुलाई, 2023 को दिए आवेदन में कहीं गई हैं।