प्रदूषण

फाल्गुनी और नेत्रावती नदियों में अवैध बालू खनन, पर्यावरण के साथ मछुआरों को भी कर रहा प्रभावित

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

इंटरटाइडल नदी पारिस्थितिकी तंत्र में सैंडबार को हटाने के सन्दर्भ में एक अलग नीति तैयार करने की जरूरत है। साथ ही रेत के निष्कर्षण और हटाई गई सामग्री के उपयोग की योजना के साथ कितनी मात्रा में रेत को हटाया जाना है इस बारे में स्पष्ट नीति होनी चाहिए।

यह बातें संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में कही है। इस समिति को ऑल ट्रेडिशनल रिवर फिशरमैन एसोसिएशन, दक्षिण कन्नड़ जिला, कर्नाटक द्वारा दायर याचिका के संबंध में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नियुक्त क्या था।

समिति का कहना है कि यह नीति बाजार की मांग और आपूर्ति द्वारा निर्देशित नहीं होने चाहिए, बल्कि इसके निम्न को ध्यान में रखकर मार्गदर्शक सिद्धांत होने चाहिए:

  • नदी की जैव विविधता का संरक्षण;
  • नदी प्रणाली की अक्षुण्णता को बनाए रखना और
  • मछुआरा समुदायों की जीविका की रक्षा करना।

साथ ही नदी तटों के जीर्णोद्धार और एश्चुअरी के कटाव की रोकथाम के लिए सीआरजेड और वन विभाग को स्थानीय समुदायों और मछुआरों को विश्वास में लेते मैंग्रोव के वृक्षारोपण जैसे उपाय करने चाहिए। यह मामला सीआरजेड क्षेत्रों में बालू खनन से जुड़ा है, जो मछलियों की विभिन्न प्रजातियों को प्रभावित कर रहा है।

गौरतलब है कि अपनी इस याचिका में याचिकाकर्ता ने फाल्गुनी और नेत्रावती नदियों में अवैध रेत खनिकों से मछली की विभिन्न प्रजातियों की रक्षा करने का अनुरोध किया था। इस मामले में संयुक्त समिति ने फाल्गुनी नदी के किनारे स्थित इलाकों का दौरा किया था।

पाया गया कि निरीक्षण के समय, कोई बालू पट्टी नहीं हटाई गई थी, हालांकि, समिति ने नदी किनारे दो जगहों पर हाल में अवैध रूप निकाली गई रेत का भंडारण देखा था, जो करीब 10 टन था। निरीक्षण के दौरान पारंपरिक नदी मछुआरा संघ ने समिति को जीवन निर्वाह के लिए फिन फिश, शेल फिश और झींगा सहित नदी में मौजूद मछलियों पर अपनी पारंपरिक निर्भरता के बारे में भी समिति को सूचित किया।

मछुआरों ने बताया कि बालू पट्टी हटाए जाने के कारण मछुआरों की जमीन फाल्गुनी और नेत्रावती नदियों में कट कर डूब गई है। वहीं भोजन के लिए सीप के खोल का संग्रह करने वाली महिलाओं का कहना था कि नदी में बढ़ते प्रदूषण ने पास की खाड़ियों में सीपियों को मार डाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मंगलुरु शहर और बैकमपडी औद्योगिक क्षेत्र से, निकलने वाला अपशिष्ट कई जगहों पर तूफानी नालों के माध्यम से नदी में मिलकर उसे दूषित कर रहा है।

साफ पानी के मामले में एनजीटी के आदेश पर बानूर नगर परिषद ने कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट

बानूर नगर परिषद ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि बानूर कौंसिल के तहत कुल 17 ट्यूबवेल लगे हुए हैं। इनमें से दस ट्यूबवेलों का रख-रखाव पंजाब वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड द्वारा किया जा रहा है, जबकि बाकी सात ट्यूबवेलों की देखरेख नगर कौंसिल द्वारा स्वयं की जाती है।

यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर सबमिट की गई है। कोर्ट के आदेश पर समिति ने बानूर के अंतर्गत आने वाले प्रभावित जल आपूर्ति क्षेत्रों का दौरा किया था। जहां समिति ने विभिन्न वार्डों से पानी के नमूने एकत्र किए थे। साथ ही इनकी रिपोर्ट को पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मोहाली को भेजा गया था।

जानकारी दी गई है कि नगर परिषद जिन सात ट्यूबवेलों का रखरखाव व संचालन कर रही है, उनमें क्लोरीन की नई मशीनें लगाई जा चुकी हैं। इस मामले में बानूर नगर परिषद ने 1 नवंबर, 2022 को सब डिविजनल इंजीनियर, पंजाब वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड को पत्र के माध्यम से क्षेत्र के लोगों के लिए आईएस 10500 (2012) के मापदंडों के अनुसार पीने योग्य पानी की व्यवस्था करने का अनुरोध किया था। साथ ही पीडब्ल्यूएसएसबी को उन पाइपलाइनों को भी बदलने के लिए कहा गया था जहां लीकेज हो रही है।

गौरतलब है कि एनजीटी ने बानूर नगर परिषद, जीरकपुर और राजपुरा के लोगों के लिए साफ पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। जो आईएस: 10500: 2012 में निर्धारित मापदंडों के अनुरूप हो। साथ ही इन क्षेत्रों में उन सभी पाइपलाइनों की पहचान करने के लिए भी कहा गया था जिनमें रिसाव हो रहा है। इन पाइपलाइनों को बदलने का भी निर्देश कोर्ट ने दिया था।

सोनभद्र में ट्रकों की लोडिंग और अनलोडिंग से हो रहे प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए हैं कदम: रिपोर्ट

हाल रोड पर चलने वाले वाहनों द्वारा कोयले की लोडिंग और अनलोडिंग के कारण हो रहे वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय किए जा रहे हैं। मामला सोनभद्र के शक्ति नगर में नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) की खड़िया परियोजना से जुड़ा है।

यह क्षेत्र चिलकडांड के पुनर्वासित गांव के निकट है। रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि हो रहा प्रदूषण पर्यावरण नियमों का उल्लंघन है। इसकी वजह से पैदा हो रही धूल और प्रदूषण, स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो रहा है।

जिला प्रशासन और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 4 मार्च 2023 को एनजीटी में दायर इस रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि करीब 6.61 किलोमीटर लंबी और 10.5 मीटर चौड़ी सीमेंट की सड़क के निर्माण का काम भी प्रगति पर है।

इस बारे में एनसीएल खड़िया परियोजना के महाप्रबंधक ने बताया कि अप्रैल 2023 तक इस सड़क का निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा। निरीक्षण के दौरान पाया गया कि धूल को रोकने के लिए टैंकरों की मदद से पानी का छिड़काव किया गया था।