प्रदूषण

जल गुणवत्ता: महाराष्ट्र की पावना नदी के प्रदूषण की जांच करने का निर्देश

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम को पावना नदी में प्रदूषण के स्रोतों से संबंधित सभी पहलुओं को संबोधित करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। पांच अप्रैल 2024 को दिए इस निर्देश के मुताबिक रिपोर्ट में इस मुद्दे के समाधान के लिए पीसीएमसी द्वारा उठाए कदमों और प्रस्तावित कार्रवाई की भी जानकारी होनी चाहिए।

महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) ने अपनी एक रिपोर्ट में सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) के बारे में विवरण प्रदान किया है, जिससे पता चलता है कि उनमें से अधिकांश संयंत्र ठीक से काम नहीं कर रहे हैं और वो आवश्यक मापदंडों को पूरा करने में विफल रहे हैं। ऐसे में एनजीटी ने पीसीएमसी को एसटीपी के काम न करने के मुद्दे पर अपना जवाब देने को कहा है।

इस मामले में ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के साथ-साथ महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी), पुणे के जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट, और पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम (पीसीएमसी) के आयुक्त को भी पक्षकार बनाने का आदेश दिया है।

एमपीसीबी की रिपोर्ट में पवना नदी की जल गुणवत्ता पर चर्चा की गई है, जिसमें बताया गया है कि पीसीएमसी के सीवेज उपचार संयंत्रों से निकला उपचारित अपशिष्ट आवश्यक मानकों को पूरा नहीं करता, जिसके परिणामस्वरूप दूषित अपशिष्ट नदी में छोड़ा जा रहा है। इसके अतिरिक्त, पीसीएमसी क्षेत्र में विभिन्न नालों के माध्यम से दूषित घरेलू एफ्लुएंट पवना नदी में छोड़ा जा रहा है।

रिपोर्ट में संक्षेप में पीसीएमसी की प्रतिक्रिया का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि सीवेज नेटवर्क को मजबूत करने के लिए कदम उठाए गए हैं। साथ ही एक नई इंटरसेप्टर लाइन बिछाई गई है।

हालांकि, रिपोर्ट में नदियों में छोड़े जा रह कुल डिस्चार्ज की मात्रा, सीवेज डिस्चार्ज में योगदान देने वाली विशिष्ट नालियों और ऐसे डिस्चार्ज को रोकने के लिए किए गए विस्तृत उपायों के बारे में विवरण शामिल नहीं था।

एनजीटी ने देवरिया में बरसाती जल निकासी को दी हरी झंडी

उत्तर प्रदेश के देवरिया की उसकी भौगोलिक परिस्थितियों के कारण मानसून के दौरान गंभीर जलभराव की समस्या का सामना करना पड़ता है। ऐसे में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने नौ अप्रैल, 2024 को कहा है कि इस समस्या के समाधान के लिए देवरिया में बरसाती जल निकासी की योजना बनाई जानी चाहिए। हालांकि साथ ही एनजीटी ने आदेश में यह भी कहा है कि स्लैब केवल वहीं रखे जाने चाहिए जहां रास्ते के लिए उनकी आवश्यक हो।

अदालत ने यह भी आदेश दिया कि खुदाई के दौरान निकली मिट्टी को सड़कों पर फैलने और धूल प्रदूषण को रोकने के लिए निर्धारित स्थान पर ही एकत्र किया जाना चाहिए। वहीं धूल को हवा में फैलने से रोकने के लिए प्रभावित क्षेत्रों पर पानी का छिड़काव करने के लिए पानी के टैंकर उपलब्ध होने चाहिए। तट के कटाव को रोकने और नाले के स्वरूप में सुधार के लिए तूफानी जल नाले के दोनों किनारों पर घास, झाड़ियां, देशी पेड़ और बांस उगाए जाने चाहिए।

इसके अतिरिक्त, शहर से निकलने वाला सीवेज तूफानी पानी में न मिल जाए इसको रोकने के लिए भी उपाय किए जाने चाहिए। गौरतलब है कि इस मामले में आवेदक की शिकायत थी कि वहां उत्खनन से वायु प्रदूषण हो रहा है और इससे आसपास के निवासियों को परेशानी हो रही है।