प्रदूषण

केरल में आस-पास के पर्यावरण को दूषित कर रहा है केएमएमएल, रिपोर्ट में हुआ खुलासा

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

केरल मिनरल्स एंड मेटल्स (केएमएमएल) के आस-पास के क्षेत्र से लिए रुके पानी के नमूनों और उनके विश्लेषण से एसिडिक पीएच और भारी धातुओं की उपस्थिति का पता चला है। वहीं कुएं से लिए पानी के तीन नमूनों में भी आयरन की उच्च मात्रा पाई गई है, जबकि एक नमूने में अम्लीय एसिडिक पीएच का पता चला है।

केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, "ऐसा लगता है कि आस-पास का क्षेत्र प्रदूषित है और कुएं का पानी पीने लायक नहीं है।" वहीं उद्योग के तूफानी पानी के नमूने एसिडिक पीएच और लोहे, मैंगनीज और वैनेडियम की उपस्थिति को दिखाते हैं, जिसका मतलब है कि उद्योग के अंदर की भूमि या तो प्रदूषित है या वट्टकयाल झील सहित आस-पास के क्षेत्र में आयरन ऑक्साइड युक्त कीचड़ के रिसाव की संभावना है।

उद्योग से निकले ट्रीटेड एफ्लुएंट के नमूने का जब विश्लेषण किया गया तो उसमें तय मानकों से ज्यादा सस्पेंडेड सॉलिड्स और भारी धातुओं का पता चला है। इसका मतलब कि मौजूदा उपचार प्रणाली, एफ्लुएंट डिस्चार्ज स्टैण्डर्ड के अनुरूप नहीं है और उसमें बदलाव या अपडेट किए जाने की जरूरत है।

ऐसे में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सिफारिश की है कि नियमों का पालन हो इसके लिए मौजूदा एफ्लुएंट ट्रीटमेंट सिस्टम को उन्नत करने की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि याचिकाकर्ता पद्मकुमार ने आरोप लगाया था कि केरल मिनरल्स एंड मेटल्स करीब 30 वर्षों से अम्लीय पानी छोड़ कर भूमि और जल स्रोतों को प्दूषित कर रहा है। इसकी वजह से कारखाने के आसपास का क्षेत्र किसी अन्य उद्देश्य के लिए अनुपयुक्त हो गया है। वहीं कुएं के पानी में एसिड की अधिकता होने के कारण ग्रामीणों को उससे पानी न लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

इसके अलावा, उद्योग एसिड युक्त कचरे को सीधे समुद्र में पंप कर रहा है। साथ ही यह नहरों के माध्यम से झील में भी जा रहा है। पोरूक्करा में वट्टाक्कयल झील भी अम्लीय मिट्टी के कचरे से भरी हुई है, जो पर्यावरण को दूषित कर रही है। इससे ग्रामीणों का जीवन भी खतरे में है।

सुप्रीम कोर्ट ने जीडीए को 1.04 करोड़ रुपए का भुगतान करने का दिया निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) को 1.04 करोड़ रुपए का भुगतान करने के लिए कहा है। गौरतलब है कि यह भुगतान 21 अक्टूबर, 2020 से 31 मार्च, 2022 की अवधि के दौरान डंप किए गए पुराने कचरे के निपटान से जुड़ा है।

कोर्ट का कहना है कि यदि इस राशि का भुगतान नहीं किया है तो जीडीए को एक महीने के अंदर इस राशि का गाजियाबाद नगर निगम को भुगतान करना होगा। साथ ही गाजियाबाद विकास प्राधिकरण को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दाखिल करना है जिसमें बाहरी विकास शुल्क और उस पैसे के उपयोग और व्यय का उल्लेख करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने सड़क सुरक्षा के मद्देनजर समिति को दिए निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने सड़क सुरक्षा के लिए बनाई समिति के साथ भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) को धारा 136ए को लागू करने पर विचार करने के लिए कहा है। गौरतलब है कि मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 136ए सड़क सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी से संबंधित है।

शीर्ष अदालत का कहना है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर बड़ी संख्या में होने वाली दुर्घटनाओं को ध्यान में रखते हुए यह सुझाव दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6 जनवरी, 2023 को दिए एक आदेश के मद्देनजर सड़क सुरक्षा समिति के अध्यक्ष जस्टिस ए एम सप्रे ने एक बैठक बुलाई थी।

समिति ने मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 136ए के कार्यान्वयन के लिए जरूरी कदम उठाने हेतु एक रोड मैप भी तैयार किया है। इस मामले में अगली सुनवाई 16 अप्रैल, 2023 को होनी है।