प्रदूषण

गुरुग्राम में जल निकायों की स्थिति पर एनजीटी ने संयुक्त समिति से तलब की रिपोर्ट

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) और गुरुग्राम जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गुरुग्राम में जल निकायों की स्थिति पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि एनजीटी के समक्ष दायर एक आवेदन में गुरुग्राम के सेक्टर 47 में स्थित एक जल निकाय की साफ-सफाई, सुरक्षा और संरक्षण के लिए अदालत से गुहार लगाई गई थी। इस मामले में आवेदक ने जानकारी दी है कि गुरुग्राम के सेक्टर 47 में करीब तीन एकड़ में एक जल निकाय है। इस जलस्रोत को नजरअंदाज किया जा रहा है।

न केवल कूड़े के डंपिंग ग्राउंड के रूप में इसका उपयोग किया जा रहा है। साथ ही इसके झुग्गियां बसाकर इस पर अतिक्रमण भी किया गया है। इसे अनाधिकृत रूप से चारागाह के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

इतना ही नहीं बढ़ते कचरे के चलते यह तालाब मच्छरों आदि का  प्रजनन स्थल बन गया है। शिकायतकर्ता का कहना है कि पनपते मच्छरों और कीड़ों के चलते इसकी वजह से स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो गया है। ऐसे में एनजीटी ने चार अगस्त, 2023 को मामले की गंभीरता को समझते हुए तथ्यात्मक स्थिति की जांच और बहाली के लिए जरूरी कार्रवाई करने के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने का निर्देश दिया है।

इस मामले में कोर्ट ने हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एचएसपीसीबी) और जिला मजिस्ट्रेट को साइट का दौरा करने, तथ्यात्मक स्थिति की पुष्टि करने और कानून के अनुसार इसकी बहाली के लिए उचित उपचारात्मक कार्रवाई करने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने समिति को राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार गुरुग्राम के अन्य जल निकायों की स्थिति पर भी रिपोर्ट मांगी है। इस मामले में समिति को अपनी रिपोर्ट सबमिट करने के लिए दो महीने का समय दिया है। 

बरेली में प्राकृतिक जल प्रवाह में बाधक बन रहा निर्माण, एनजीटी ने जांच के लिए समिति गठित करने का दिया निर्देश

बरेली में जल के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा उत्पन्न करने का मामला तीन अगस्त, 2023 को एनजीटी के समक्ष आया है। मामले पर सुनवाई करते हुए एनजीटी ने सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग, बरेली के कार्यकारी अभियंता और जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति को साइट का दौरा करने के साथ-साथ आवेदक की शिकायतों की जांच का आदेश दिया है। मामला उत्तर प्रदेश में बरेली की मीरगंज तहसील के बहरौली गांव का है।

कोर्ट ने साथ ही समिति को तथ्यात्मक स्थिति की जांच करने और उचित उपचारात्मक कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने मामले में कानून को ध्यान में रखते हुए परियोजना प्रस्तावक को सुनवाई का मौका देने की बात कही है। इस मामले में समन्वय एवं अनुपालन के लिए बरेली के जिलाधिकारी नोडल एजेंसी होंगे।

कोर्ट ने दो महीने के भीतर तथ्यात्मक और कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। आवेदक का कहना है कि चकबंदी के समय नरई/नाला/खाली के लिए भूमि आवंटित की गई थी, जो जाम मसीहाबाद, करमपुर, तिलमास गोंटिया, करोरा, बहरौली, कुतुवपुर और भगवंतपुर गांवों में बारिश और बाढ़ के पानी को रामगंगा नदी तक ले जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी द्वारा पारित आदेशों के मुताबिक कोई भी व्यक्ति इसमें प्राकृतिक बाधा नहीं पहुंचा सकता।

ऐसे में इनपर किसी भी प्रकार का स्थाई निर्माण करने पानी बहाव को नहीं रोका जा सकता। इस मामले में पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करते हुए स्थाई निर्माण करने का प्रयास किया गया था।

आवेदक का यह भी कहना है कि यदि प्रस्तावित निर्माण न रोका गया तो आसपास खेतों और गांव में बाढ़ के चलते भारी क्षति हो सकती है जिसकी भरपाई आसान नहीं होगी। आवेदक ने कोर्ट से किसी भी स्थाई संरचना के निर्माण को रोकने के लिए निर्देश जारी करने का अनुरोध किया है।