प्रदूषण

कैसे साफ होंगी हिमाचल की नदियां, एनजीटी ने चार सप्ताह के भीतर मांगी कार्य योजना

हिमाचल प्रदेश में नदियां बढ़ते प्रदूषण से जूझ रही हैं। वहीं अश्वनी खड्ड को राज्य की सबसे प्रदूषित नदी के रूप में पहचाना गया है

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दो जनवरी 2024 को हिमाचल प्रदेश के मुख्य सचिव से चार सप्ताह के भीतर एक हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, जिसमें राज्य में नौ नदियों को साफ करने की योजना का ब्यौरा होना चाहिए।

इस बारे में हिमाचल प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से पेश वकील ने जानकारी दी है कि राज्य की सभी नौ नदियों को पुनर्जीवित करने की योजना का मसौदा तैयार कर लिया गया है। इन योजनाओं को कैसे क्रियान्वित किया जाए, इस पर चर्चा चल रही है और मुख्य सचिव पूरी प्रक्रिया पर नजर रख रहे हैं।

गौरतलब है कि यह मामला कोर्ट द्वारा चार दिसंबर, 2023 को न्यूज हिमाचल में प्रकाशित खबर "अश्वनी खड्ड: हिमाचल प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदी" के आधार पर अदालत ने स्वत: संज्ञान में लिया था। इस खबर के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में नदियां बढ़ते प्रदूषण से जूझ रही हैं। शिमला में अश्वनी खड्ड को राज्य की सबसे प्रदूषित नदी के रूप में पहचाना गया है।

इस खबर से पता चला है कि अश्वनी खड्ड में मुख्य रूप से प्रदूषण सीवेज उपचार संयंत्रों से निकलने वाले कचरे से होते है। वहीं नवीनतम मूल्यांकन से पता चला है कि अश्वनी खड्ड में बीओडी का स्तर जो 2022 में 70 मिलीग्राम प्रति लीटर था वो बढ़कर 80 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया है।

संगरूर में हानिकारक कचरे के मामले में एनजीटी ने तलब की नई रिपोर्ट, पर्यावरण प्रदूषण से जुड़ा है मामला

इस मामले में पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वकील इस बात की पुष्टि नहीं कर सके थे कि क्या उस साइट से उठाई गई मिट्टी दूषित है और इसे हटाने की आवश्यकता क्यों है

नेशनल  ग्रीन ट्रिब्यूनल ने हानिकारक कचरे के मामले में पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) से एक नई रिपोर्ट तैयार करने को कहा है। ऐसा करने के लिए बोर्ड के पास छह सप्ताह का समय है। इस मामले में अगली सुनवाई 26 फरवरी 2024 को होगी।

मामला पंजाब के संगरूर जिले के अलोअरख का है, जहां फेंके गए हानिकारक कचरे को ढकने वाली मिट्टी की परत को हटाने के बारे में कोर्ट ने एक नई रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया है।

गौरतलब है कि इस बारे में दाखिल मूल आवेदन में यह मुद्दा उठाया गया था कि अलोअरख में पानी की समस्या को हल करने के लिए अधिकारियों ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। 31 मार्च 2022 को ट्रिब्यूनल ने इस मूल आवेदन पर फैसला करते हुए कुछ निर्देश जारी किए थे। इसमें उन्होंने एनजीटी के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया था। इस रिपोर्ट के आधार पर यह नया आवेदन दायर किया गया है क्योंकि यह देखा गया कि एनजीटी के निर्देशों का पालन नहीं किया गया।

दूषित साइट पर खतरनाक कचरे को ढकने वाली मिट्टी की परत को हटाने के मुद्दे पर पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) की एक रिपोर्ट को भी इसमें शामिल किया गया है, जिसको लेकर 24 नवंबर 2023 को एक आदेश दिया गया था। कोर्ट ने अपने उस आदेश में साइट के मालिक को मिट्टी की ऊपरी परत को हटाने के लिए कहा था, जिससे राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) के विशेषज्ञ मिट्टी की जांच कर सकें और इस जगह को दोबारा से बहाल किया जा सके।

इस बारे में पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 31 दिसंबर, 2023 को एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक पीपीसीबी के अध्यक्ष ने कुल लागत का 30 फीसदी यानी 6,90,000 रुपए के खर्च को वहन करने पर मंजूरी दी थी। इस पर साइट से मिट्टी हटाने पर कुल 23 लाख रुपए का खर्च आना था।  

ताजा रिपोर्ट में साइट से मिट्टी हटाने के साथ नीरी द्वारा भूभौतिकीय सर्वेक्षण के मामले में हुई प्रगति का ब्यौरा दिया गया है। इसके अनुसार मिट्टी हटाने का काम शुरू हो चुका है और 30 दिसंबर 2023 तक करीब ढाई लाख क्यूबिक फीट मिट्टी निकाली जा चुकी है। वहीं बाकी बची मिट्टी को अगले 12 से 15 दिनों में हटा दिया जाएगा और साइट को समतल कर दिया जाएगा। इसके साथ ही पीपीसीबी के वकील ने जानकारी दी है कि नीरी द्वारा किए जाने वाले सर्वे का काम 31 जनवरी 2024 तक पूरा हो जाएगा।

हालांकि पीपीसीबी के वकील इस बात की पुष्टि नहीं कर सके कि क्या उठाई गई मिट्टी दूषित है और इसे हटाने की आवश्यकता क्यों है। ऐसे में इस बारे में अधिक जानकारी हासिल करने के लिए अदालत ने राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान, नागपुर को नोटिस भेजने का निर्देश दिया है।