कानपुर में जाजमऊ टैनरीज क्लस्टर से निकलकर चकेरी क्षेत्र में पहुंचने वाली नहर का गंदा पानी सीधा धान के खेतों में जा रहा है फोटो : विकास चौधरी/ सीएसई
प्रदूषण

कानपुर में आपातकालीन स्थितियां : औद्योगिक प्रदूषण के कारण लोगों के शरीर में मिला क्रोमियम और मर्करी का अंश

कानपुर के टैनरी उद्योग क्षेत्र जाजमऊ में ईकाइयों से निकलने वाले प्रवाह को शोधित करने के लिए बनाए गए 20 एमएलडी क्षमता वाला सीईटीपी करीब 50 फीसदी क्षमता पर काम कर रहा है

Vivek Mishra

कानपुर नगर और कानपुर देहात व आस-पास जिलों के औद्योगिक क्षेत्रों में जल और मिट्टी में भारी धातुओं का प्रदूषण लगातार जारी है। प्रदूषण की चपेट में आने वाले लोगों के शरीर में खतरनाक धातुओं के अंश मिल रहे हैं। वहीं, कई लोग गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश के बाद औद्योगिक क्षेत्रों में किए गए एक स्वास्थ्य सर्वे में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आए हैं। एनजीटी में न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) की ओर से दाखिल अंतरिम रिपोर्ट में यह कहा गया है कि कानपुर नगर, कानपुर देहात और फतेहपुर जिलों के औद्योगिक क्षेत्र में "आपातकालीन स्थितियां" हैं।

न्यायमित्र ने अपनी सिफारिश में कहा है कि प्रभावित क्षेत्रों में तत्काल चिकित्सा शिविर आयोजित किए जाएं और सीएसआईआर-आईआईटीआर, लखनऊ द्वारा रक्त और सीरम के नमूनों की जांच की जाए।

एनजीटी चेयरमैन जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की अध्यक्षता वाली पीठ कानपुर और आस-पास के औद्योगिक क्षेत्र में औद्योगिक ईकाइयों खासतौर से टैनरीज के जरिए छोड़े जाने वाले औद्योगिक प्रवाह के बिना उपचार या आंशिक उपचार व औद्योगिक प्रदूषण की मामले की सुनवाई कर रही है।

एनजीटी में 14 अगस्त, 2024 को मामले में नियुक्त न्यायमित्र ने कानपुर और आस-पास के जिलों में औद्योगिक क्षेत्रों का मुआयना करने की अनुमति मांगी थी और 26 नवंबर को इस पर अपनी अंतरिम रिपोर्ट दाखिल की।

एनजीटी ने 27 नवंबर, 2024 को सुनवाई के दौरान राज्य व जिला प्राधिकरणों को न्यायमित्र की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का आदेश दिया है।

सिफारिशों में कहा गया है कि कानपुर नगर में गैर-कार्यरत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (एसटीपी) की जांच की जाए और तुरंत समाधान निकाला जाए। यदि सुधार कार्य में समय लगता है, तो महाकुंभ को ध्यान में रखते हुए गंगा और पांडु नदियों में प्रदूषण को रोकने के लिए अस्थायी कार्य योजना लागू की जाए।

डाउन टू अर्थ ने अक्तूबर में अपनी रिपोर्ट में यह खुलासा किया था कि कानपुर के जाजमऊ क्षेत्र में कृषि कैनाल से गंगा तक न सिर्फ आंशिक उपचार वाला औद्योगिक प्रवाह पहुंच रहा है बल्कि वहां की कृषि भूमि में अत्यिधक भारी धातु की मौजूदगी है। रिपोर्ट यहां पढ़ें।

साथ ही जहां नालों को एसटीपी से जोड़ा नहीं गया है, वहां सीवेज का अस्थायी उपचार किया जाए। इसके अलावा कानपुर देहात, कानपुर नगर और फतेहपुर में भारी धातुओं (जैसे क्रोमियम और राख) से दूषित स्थलों की पहचान और मानचित्रण किया जाए। इन क्षेत्रों के प्रभावित लोगों को जीवन यापन के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध कराया जाए।

इसके अलावा तीनों जिलों में दूषित क्षेत्रों की मिट्टी, भूजल और सतही जल के नमूने लिए जाएं और समयबद्ध कार्य योजना बनाई जाए और नदी जल व भूजल गुणवत्ता की निगरानी की जाए।

समिति ने कहा कि ऐसे क्षेत्रों पर किसी भी नए निर्माण की अनुमति न दी जाए, जहां जमीन के नीचे क्रोमियम जमा है।

समिति की यह सिफारिशें तब आईं हैं जब जिला स्वास्थ्य विभाग और जिलाधिकारी की रिपोर्ट में एक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़े उजागर हुए।

जाजमऊ औद्योगिक क्षेत्र में स्वास्थ्य शिविरों में कुल 992 रोगियों की जांच की गई। इनमें त्वचा रोग (530), फेफड़ों की बीमारियां (42), जिगर की बीमारियां (120) लोगों में पाई गईं। वहीं, प्रदूषण से स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव की संभावना जताई गई।

कानपुर के राखी मंडी में जुही बबूरिया क्षेत्र में तीन स्वास्थ्य शिविरों में 375 मरीजों की जांच हुई। इनमें कुल 44 लोगों में क्रोमियम और मरकरी के अंश पाए गए। इनमें से 16 लोग वर्तमान में क्षेत्र में रहते हैं। इसके अलावा क्षेत्र में त्वचा रोग (68), फेफड़ों की बीमारियां (7), जिगर की बीमारियां (24) लोगों में पाई गईं।

पनकी औद्योगिक क्षेत्र में कुल 93 लोगों की जांच में त्वचा रोग (2), जिगर की बीमारियां (2), और उच्च रक्तचाप (5) के मामले पाए गए।

कानपुर के नौरैया खेड़ा और तेजाब मिल कैंपस में सामान्य बीमारियां, त्वचा रोग और श्वसन तंत्र की समस्याएं सामने आईं।

वहीं, जिला प्रशासन ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को यह आश्वासन दिया है कि प्रदूषण के प्रभावों को कम करने के लिए दीर्घकालिक योजनाएं लागू की जाएंगी। स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार और प्रदूषित जल स्रोतों को दोबारा स्थापित करना प्राथमिकता होगी। साथ ही कानपुर के नागरिकों के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए सभी संबंधित विभागों को समन्वित रूप से कार्य करने की आवश्यकता है।

हालांकि, एमिकस क्यूरी ने ग्राउंड पर पाया कि कानपुर नगर, कानपुर देहात और फतेहपुर में क्रोमियम जैसे भारी धातुओं का अत्यधिक जमाव पाया गया है। कई जगहों पर बारिश के पानी से भरे गड्ढे जहरीले तालाब बन गए हैं। साथ ही यमुना नदी और उसकी सहायक नदियों में घरेलू और औद्योगिक कचरे का बहाव देखा गया है। स्थानीय निवासियों में त्वचा रोग, फेफड़ों की बीमारी, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं और अस्थमा के मामले बढ़ रहे हैं।

कानपुर नगर के अटल घाट नवाब गंज और गोलाघाट नाले में प्रदूषण का स्तर अत्यधिक है। इसके अलावा जाजमऊ एसटीपी की खराब स्थिति और जुही बबूरिया में जाम सीवर लाइनों की समस्या है।

वहीं, कानपुर देहात में क्रोमियम के जमाव वाले स्थलों पर बारिश का पानी भरकर जहरीले तालाब बन गए हैं। कृषि भूमि में औद्योगिक राख का उपयोग और पशुओं द्वारा दूषित जल का उपभोग हो रहा है।

फतेहपुर में एमएलएमपी फूड प्राइवेट लिमिटेड के पास क्रोमियम का जमाव है। जबकि बनिया खेड़ा रोड के पास भारी मात्रा में क्रोमियम और राख का जमाव पाया गया।

बहरहाल एनजीटी ने उत्तर प्रदेश राज्य के मुख्य सचिव और अन्य संबंधित अधिकारियों को अगली सुनवाई में स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा है। साथा ही सेंट्रल ग्राउंड वॉटर अथॉरिटी और नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा से जल शोधन परियोजनाओं की स्थिति पर रिपोर्ट तलब की है। और सीपीसीबी और यूपीपीसीबी से टेनरियों और एसटीपी की स्थिति पर जवाब दाखिल करने को कहा है।

मामले की अगली सुनवाई 20 जनवरी, 2025 को होगी।