प्रदूषण

विशाखापट्टनम गैस लीक: लापरवाही बरती तो फिर हो सकता है हादसा: पर्यावरण मंत्रालय

मंत्रालय के अनुसार एलजी पॉलिमर प्लांट में बाकी बची स्टाइरीन मोनोमर को 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान पर रखना जरुरी है, ताकि भविष्य में किसी भी तरह के खतरे को टाला जा सके

Susan Chacko, Lalit Maurya

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार विशाखापत्तनम के एलजी पॉलिमर प्लांट में बाकी बची स्टाइरीन मोनोमर को 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान में रखना जरुरी है, ताकि भविष्य में किसी भी तरह के खतरे को टाला जा सके। यह बात मंत्रालय द्वारा दायर हलफनामे में कही गई है। 29 मई 2020 को इससे जुडी रिपोर्ट को एनजीटी की वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है।

गौरतलब है कि रेफ्रिजरेशन प्रणाली के विफल होने और भारी मात्रा में मौजूद स्टाइरीन गैस के चलते 7 मई 2020 की सुबह एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के विशाखापट्टनम प्लांट से स्टाइरीन गैस का रिसाव हुआ था, जिसके चलते 12 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि इससे हजारों लोग प्रभावित हुए थे।  

इसके सन्दर्भ में मंत्रालय ने कहा है कि एलजी पॉलिमर की इस यूनिट को संचालित करने के लिए सहमति आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एपीपीसीबी) द्वारा जारी की गई थी| जिसके अंतर्गत इस प्लांट को 313 टीपीडी पॉलीस्टीरीन और 102 टीपीडी एक्सपेंडेबल पॉलीस्टीरीन के निर्माण के लिए मंजूरी दी गई थी जोकि 31 दिसंबर 2021 तक के लिए मान्य थी।

इससे होने वाले उत्सर्जन पर नजर रखने के लिए इस यूनिट को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ऑनलाइन कंटीन्यूअस एमिशन मॉनिटरिंग सिस्टम (ओसीइएमएस) के साथ जोड़ा गया था, जोकि रियल टाइम में उत्सर्जन और प्रवाह से जुड़े डेटा को सीपीसीबी के सर्वरों में भेजता था। 24 मार्च, 2020 को इस यूनिट ने सीपीसीबी को एक मेल के जरिये सूचित किया था कि इस प्लांट के संचालन पर रोक लगा दी गई है। सीपीसीबी ने बताया कि ओसीइएमएस के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 24 मार्च, 2020 से 5 मई, 2020 के बीच इस प्लांट से किसी प्रकार के उत्सर्जन के आंकड़ें नहीं मिले हैं। जबकि 6 मई, 2020 को ऑनलाइन कंटीन्यूअस एमिशन मॉनिटरिंग सिस्टम को पुन: चालू किया गया था।

खराब रेफ्रिजरेशन सिस्टम भी था हादसे की एक वजह

रिपोर्ट के अनुसार इस यूनिट स्टाइरीन मोनोमर के 2500 केएल और 3500 केएल के दो स्टोरेज टैंक थे। इन मुख्य भंडारण टैंकों के अलावा यूनिट में स्टाइरीन मोनोमर के तीन और अतिरिक्त टैंक भी स्थापित किए गए थे। इन सभी टैंकों में तापमान को 20 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए आंतरिक रेफ्रिजरेशन सिस्टम की भी व्यवस्था की गई थी। इस हादसे में जो स्टाइरिन गैस लीक हुई वो कथित तौर पर 2500 केएल के स्टोरेज टैंक से हुई थी। हालांकि कितनी गैस लीक हुई इसकी सही मात्रा ज्ञात नहीं है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस यूनिट में भारी मात्रा में कच्चे माल के रूप में स्टाइरीन मोनोमर को स्टोर किया गया था| साथ ही यूनिट के बंद होने के कारण रेफ्रिजरेशन सिस्टम जो ख़राब था, वो भी दुरुस्त नहीं किया गया था। रिपोर्ट के अनुसार यह हादसे की मुख्य वजहों में से है|

पर्यावरण और वन मंत्रालय ने खतरनाक रसायनों के विनिर्माण, उपयोग और हैंडलिंग को विनियमित करने के लिये दो तरह के नियमों- खतरनाक रसायनों का विनिर्माण, भंडारण और आयात (एमएसआईएचसी) नियम 1989 और रासायनिक दुर्घटना (आपातकालीन योजना, तैयारी और प्रतिक्रिया), (सीएईपीपीआर) नियम 1996 को जारी किया था। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक गतिविधियों से होने वाली रासायनिक दुर्घटनाओं को रोकना और रासायनिक (औद्योगिक) दुर्घटनाओं के प्रभावों को सीमित करना है। साथ ही जान-माल और पर्यावरण को होने वाली क्षति को रोकना है|

इसके साथ ही एमओईएफ एंड सीसी ने अपनी रिपोर्ट में मंत्रालय द्वारा उठाये गए क़दमों को भी सूचीबद्ध किया है| जिसमें आंध्र प्रदेश के  मुख्य सचिव (पर्यावरण) और आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एपीपीसीबी) के अध्यक्ष को एमएसआईएचसी नियम 1989 और सीएईपीपीआर नियम 1996 के आधार पर आगे की कार्रवाई करने के लिए कहा गया है। साथ ही उन्हें 90 दिनों के भीतर दुर्घटना से जुडी एक विस्तृत रिपोर्ट भी दायर करने के लिए कहा गया है।

प्लांट में अभी भी मौजूद स्टाइरीन का भारी स्टॉक

इस मामले में सेंट्रल क्राइसिस ग्रुप की एक बैठक आयोजित की गई थी, जिसमें यह बताया गया है कि चूंकि इस यूनिट की रेफ्रिजरेशन सिस्टम ख़राब है और तापमान भी ज्यादा है तो इससे निपटने के लिए अधिकारी लगातार पानी का छिड़काव कर रहे हैं| जिससे इस यूनिट में बचे हुए स्टाइरीन मोनोमर के भंडार को 20 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान पर रखा जा सके|

इसके अलावा, प्लांट में उपलब्ध मर्कैप्टन (अवरोधक) का इस्तेमाल प्लांट में मौजूद स्टाइरीन मोनोमर के तीन अन्य टैंकों को स्थिर करने के लिए किया जा रहा है| साथ ही जरुरी मर्कैप्टन के स्टॉक की व्यवस्था गुजरात से की जा रही है। राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (नीरी) की एक टीम भी पहले से ही स्थिति को नियंत्रित करने, अधिकारियों की सहायता और सलाह देने के लिए साइट पर मौजूद है। अध्यक्ष ने विस्तृत विचार-विमर्श के बाद सदस्यों से उनके सुझाव मांगे हैं जिससे रेफ्रिजरेशन सिस्टम की अनुपस्थिति में स्टाइरीन मोनोमर के भंडारण को नियंत्रण में रखा जा सके और संभावित हादसे के टाला जा सके|

इससे पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गठित संयुक्त जांच समिति ने 28 मई, 2020 को अदालत में गैस रिसाव के मामले पर अपनी रिपोर्ट दायर कर दी थी| जिसमें हादसे के लिए कंपनी को जिम्मेवार माना था| इस रिपोर्ट के अनुसार एलजी पॉलिमर को स्टाइरीन की निगरानी और रखरखाव का अनुभव नहीं था, जिस वजह से यह हादसा हुआ| उस रिपोर्ट में भी भारी मात्रा में मौजूद स्टाइरीन, खराब रेफ्रिजरेशन सिस्टम और पुराने टैंक को हादसे के लिए जिम्मवार बताया गया था| इन दोनों ही रिपोर्ट से एक बात तो तय हो जाती है कि इस हादसे के लिए कंपनी द्वारा की गई लापरवाही एक बड़ी वजह थी|

सीएसई ने भी अपनी रिपोर्ट में इस दुर्घटना के लिए कंपनी की लापरवाही को जिम्मेवार माना था| जिसके अनुसार प्लांट खोलने की हड़बड़ी में मेंटेनेंस के नियमों की अनदेखी की गयी थी| अब एनजीटी कमिटी रिपोर्ट से भी यह बात साफ हो गयी है कि जिस तरह से प्लांट में इस हानिकारक गैस को रखा गया था वो सही नहीं था साथ ही उसके रखरखाव पर भी उचित ध्यान नहीं दिया गया था। 

50 करोड़ जमा कराए

एलजी पॉलिमर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने एक हलफनामे के जरिये एनजीटी को सूचित किया है कि उसने प्रारंभिक मुआवजा के रूप में 50 करोड़ रुपए की राशि जमा करा दी है। यह राशि जिला मजिस्ट्रेट, विशाखापत्तनम के पास जमा कराई गई है| गौरतलब है कि इससे पहले एनजीटी की प्रधान पीठ ने हादसे से हुई क्षति को देखते हुए एलजी पॉलिमर्स को जिलाधिकारी के पास 50 करोड़ रुपये की शुरुआती राशि जमा कराने का आदेश दिया था। इसके साथ ही कंपनी ने विस्तृत हलफनामा दाखिल करने के लिए अदालत से और समय देने का अनुरोध किया है| एलजी पॉलिमर द्वारा यह हलफनामा 8 मई के एनजीटी के आदेश के जवाब में दायर किया गया है।