प्रदूषण

नदियों में दवाओं के प्रदूषण से स्वास्थ्य के लिए बढ़े खतरे: अध्ययन

Dayanidhi

दुनिया भर की नदियों में दवा या फार्मास्युटिकल प्रदूषण पर किए गए एक अध्ययन ने दिल्ली और हैदराबाद सहित दुनिया भर में नदी के पानी के नमूनों का मूल्यांकन किया है। नदी के नमूनों में मधुमेह, मिर्गी और दर्द निवारक दवाओं के अंश मिले हैं। जो हमारी पारिस्थितिकी और लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।

यह नदियों में फार्मास्यूटिकल के अवशेषों का पता लगाने तथा उन्हें मापने वाला पहला अध्ययन है। भारत जैसे निम्न मध्यम आय वाले देशों की नदियों में सबसे अधिक फार्मास्युटिकल प्रदूषण की मात्रा पाई गई है, जहां बड़ी फार्मास्युटिकल उत्पाद क्षमताएं हैं लेकिन पर्यावरणीय नियम काफी सुस्त हैं।

अध्ययन में कार्बामाज़ेपाइन, मेटफॉर्मिन और कैफीन जैसे 61 दवाओं की उपस्थिति को मापने के लिए दुनिया भर की 258 नदियों का आकलन किया गया है। अध्ययन किए गए इन नदियों में से 36 देशों की नदियों पर पहले कभी भी फार्मास्यूटिकल्स की निगरानी नहीं की गई।

वेनेजुएला के सुदूर गांव यानोमामी जो कि आधुनिक दवाओं का उपयोग नहीं करते हैं वहां नमूनों में कुल सक्रिय दवाओं के अंश या फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआई) की औसत सांद्रता शून्य पाई गई। जबकि लंदन में इनकी मात्रा 3,080 नैनोग्राम प्रति लीटर, दिल्ली में 46,700 से लेकर लाहौर में सबसे अधिक 70,700 तक पाई गई।

अध्ययन की अगुवाई करने वाले यूके में यॉर्क विश्वविद्यालय के एक पर्यावरण शोधकर्ता जॉन विल्किंसन ने कहा हमें लगभग दो दशकों से इस बात की जानकारी हैं कि फार्मास्यूटिकल पानी के स्रोतों में अपना रास्ता बनाते हैं जहां वे जीवित जीवों को प्रभावित कर सकते हैं। जबकि अब तक लगभग सभी अध्ययनों ने उत्तरी अमेरिका, यूरोप और चीन पर ध्यान केंद्रित किया था।

अध्ययन में कहा गया है कि फार्मास्युटिकल प्रदूषण हर महाद्वीप के पानी को दूषित कर रहा है। किसी देश की सामाजिक आर्थिक स्थिति और उसकी नदियों में फार्मास्युटिकल के बहुत अधिक मात्रा में प्रदूषण के बीच मजबूत संबंध है। जिसमें निम्न-मध्यम आय वाले देशों की नदियां सबसे अधिक प्रदूषित हैं।

फार्मास्युटिकल प्रदूषण का उच्च स्तर अधिक औसत आयु के क्षेत्रों के साथ-साथ उच्च स्थानीय बेरोजगारी और गरीबी दर के साथ जुड़ा पाया गया। दुनिया के सबसे प्रदूषित देश और क्षेत्र वे हैं जहां सबसे कम शोध किए गए हैं। अर्थात् उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्से इस बात की तस्दीक करते हैं।

सबसे अधिक दवाओं का प्रदूषण नदी के किनारे कचरा जमा करने या डंपिंग करने, अपशिष्ट निपटान के बुनियादी सुविधाओं का अभाव होने और अवशिष्ट सेप्टिक टैंक के कचरे को नदियों में डालना शामिल है।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली और हैदराबाद के वैज्ञानिकों सहित विल्किंसन और उनके सहयोगियों ने दिल्ली में यमुना नदी और हैदराबाद में कृष्णा और मुसी नदियों सहित 104 देशों में 258 नदियों के 1,052 नमूना स्थलों से नमूनों में दवाओं के अंश का विश्लेषण किया।

उनके अध्ययन में चार दवाओं - कैफीन, निकोटीन, पैरासिटामोल और कोटिनिन तंबाकू के उप उत्पाद का पता चला, जो सभी जीवनशैली या उत्तेजक यौगिकों के तत्व हैं। इसमें अंटार्कटिका सहित सभी महाद्वीपों के नमूने शामिल थे।

भारत के नमूनों में कैफीन और निकोटीन जैसे उत्तेजक सहित अन्य दवाओं के अलावा एनाल्जेसिक, एंटीबायोटिक्स, एंटी-कॉन्वेलसेंट्स, एंटी-डिप्रेसेंट्स, एंटी-डायबिटिक, एंटी-एलर्जी दवाएं, और बीटा ब्लॉकर्स नामक कार्डियोवैस्कुलर दवाएं पाई गईं।

बोलीविया के 25,400 के बाद 21,000 नैनोग्राम प्रति लीटर पर भारत में मधुमेह के उपचार के लिए उपयोग होने वाली दवा का दुनिया की दूसरी सबसे अधिक सांद्रता पाई गई। इसकी तुलना में, यूके की मधुमेह के उपचार में उपयोग होने वाली 1,550 और अमेरिका में 635 थी।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा दुनिया भर में नमूने वाले जगहों के एक चौथाई में कम से कम एक दवा का अंश पाया गया जो जलीय जीवों के लिए सुरक्षित माने जाने वाले स्तरों से अधिक थी। हालांकि इस तरह के प्रदूषण से इन्सानों को होने वाले नुकसान का अभी तक कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। वैज्ञानिक चिंतित हैं कि अगर भोजन के लिए लोगों द्वारा उपभोग किए गए जलीय जीवों के शरीर में दवा की मात्रा लोगों द्वारा आवश्यक चिकित्सीय सांद्रता के स्तर तक पहुंच जाती है, तो इससे इन्सानों पर प्रभाव पड़ सकता है।

पर्यावरण में एंटीबायोटिक दवाओं के उच्च स्तर भी रोगाणुओं में दवा प्रतिरोध को बढ़ा सकते हैं। दुनिया भर में 64 जगहों पर सिप्रोफ्लोक्सासिन सुरक्षित सीमा से अधिक पाई गई। 13 में से 9 एंटीबायोटिक दवाओं की सांद्रता कम से कम एक नमूना लिए गए जगहों के लिए सुरक्षित सीमा से अधिक पाई गई है।

बांग्लादेश के बारिसल में मेट्रोनिडाजोल नामक एंटीबायोटिक सुरक्षित सीमा से सबसे अधिक पाई गई, जहां इसकी मात्रा सुरक्षित सीमा से 300 गुना अधिक थी अध्ययन में उच्च आय वाले देशों या सबसे गरीब देशों की तुलना में निम्न-मध्यम आय वाले देशों में अधिकतम दवाओं की (एपीआई) सांद्रता पाई गई।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अपशिष्ट जल के उपचार के बुनियादी ढांचे सीमित हैं। लेकिन कम आय वाले देशों की आबादी की तुलना में उनकी आबादी के पास दवाओं तक पहुंच अधिक है।

जबकि कम आय वाले देशों में भी अपशिष्ट जल उपचार की सुविधाएं ठीक नहीं हैं, दवाओं तक कम पहुंच और उनको खरीदने की क्षमता उनके दवाओं की (एपीआई) सांद्रता को कम करती है। 

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि भविष्य में अन्य पर्यावरणीय साधन जैसे तलछट, मिट्टी और बायोटा को शामिल करने के लिए उनके दृष्टिकोण का विस्तार किया जा सकता है और प्रदूषण को ले कर वैश्विक स्तर पर डेटासेट का निर्माण किया जा सकता है। यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।