क्या कोरोना की दूसरी लहर में बढ़ती मौतों और उसके कारण होते शवदाह की वजह से दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में इजाफा आ गया था। लम्बे समय से शोधकर्ता दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर शवदाह के कारण बढ़ते बोझ के बारे में बोलने से बचते रहे हैं। लेकिन हाल ही में इस पर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि दिल्ली में कोविड की दूसरी लहर के दौरान लॉकडाउन के बावजूद पार्टिकुलेट मैटर में असामान्य वृद्धि दर्ज की गई थी
देखा जाए तो दिल्ली में आज अनगिनत शवदाह गृहों में शवदाह की प्रक्रिया पारम्परिक तरीके से की जाती है, जिसके लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का उपयोग किया जाता है, साथ ही उनसे निकलने वाले धुंए के उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है।
शायद आपको याद होगा वो पिछले साल का समय था जब देश विशेष रूप से दिल्ली, कोविड-19 की दूसरी घातक लहर से जूझ रहा था। प्रारंभिक मीडिया रिपोर्ट को देखें तो उस वक्त दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में लॉकडाउन के दौरान श्मशान के पास स्थित घरों पर घना धुआं छाने की जानकारियां सामने आई थी। लेकिन इसके कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं थे।
हालांकि 2020 में जब महामारी की पहली लहर आई थी तब कोविड-19 के साथ वायु गुणवत्ता पर पड़ने वाले असर को लेकर कई अध्ययन जारी किए गए थे, लेकिन 2021 में दूसरी लहर के दौरान वायु गुणवत्ता पर पड़ते महामारी के असर को लेकर बहुत कम अध्ययन किए गए हैं।
पर अब हाल ही में जर्नल केमोस्फीयर में प्रकाशित एक नए अध्ययन ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि कोविड की दूसरी लहर के दौरान बढ़ते प्रदूषण के लिए कहीं न कहीं बड़ी मात्रा में होते शवदाह भी वजह थे। गौरतलब है कि दिल्ली में कोविड की दूसरी लहर के दौरान लॉकडाउन के बावजूद पार्टिकुलेट मैटर में असामान्य वृद्धि दर्ज की गई थी।
यह अध्ययन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस साइंस (बेंगलुरु), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी); भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे और उत्कल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।
शोध के मुताबिक ऐसा लगता है कि लॉकडाउन के चलते उत्सर्जन में जो कमी आई थी उसको संतुलित करने का काम शवदाह से होने वाला उत्सर्जन कर रहा था, जिससे होने वाले प्रदूषण की मात्रा के बारे में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि इसमें श्मशान घरों में जलती लकड़ी और बायोमास से होने वाले उत्सर्जन की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मार्च और जून 2021 के बीच दो प्रमुख वायु प्रदूषकों पीएम10 और पीएम2.5 का आंकलन किया था। उनका अनुमान है कि अप्रैल में लॉकडाउन के कारण वाहनों और उद्योंगों पर लगी रोक के चलते पीएम2.5 का स्तर 30 से 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक कम हो जाना चाहिए था।
वहीं यदि किसी तरह का प्रतिबन्ध न हो तो इसके 75 से 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहने की सम्भावना थी। लेकिन अप्रैल के वास्तविक आंकड़े 100 से 125 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के बीच थे, जोकि सामान्य से ज्यादा प्रदूषण को दर्शाते हैं।
दिल्ली में जून 2021 को 24,299 पर पहुंच गया था मरने वालों का आंकड़ा
प्रदूषण का स्तर विशेष रूप से 24 अप्रैल से 2 मई के बीच काफी बढ़ गया था। यह वो अवधि थी जब कोरोना सम्बंधित मरीजों और मृत्य दर में भारी वृद्धि दर्ज की गई थी। गौरतलब है कि 03 मई 2021 को दिल्ली में सबसे ज्यादा 448 मौतें दर्ज की गई थी।
इससे पहले 22 अप्रैल 2021 को यह आंकड़ा 306 था। देखा जाए तो 01 अप्रैल 2021 को जब से डेल्टा वैरिएंट अपनी गति पकड़ रहा था तब दिल्ली में कोविड से होने वाली कुल मौतों का आंकड़ा 11,000 से थोड़ा ज्यादा था। जो 01 जून 2021 को बढ़कर 24,299 पर पहुंच गया था।
दिल्ली में 50 से ज्यादा शवदाह गृह हैं, जिनमें से अधिकांश में चिताओं को जलाने के लिए पारम्परिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्रति शवदाह के लिए करीब 300 से 400 किलोग्राम लकड़ी की आवश्यकता होती है। जिसके जलने से बड़ी मात्रा में कार्बनिक, अकार्बनिक और कण धूल जैसे पदार्थ उत्सर्जित होते हैं।
अध्ययन के मुताबिक जिस समय मृत्यु दर सबसे ज्यादा थी वो सीधे तौर पर उस समय से मेल कहती है जब दिल्ली में पीएम2.5 का स्तर चरम पर था। देखा जाए तो 2020 में वायु प्रदूषण के स्तर में अपेक्षित गिरावट दर्ज की गई थी। लेकिन 2021 में गिरावट अनुमान से मेल नहीं खाती हैं, जो उनके बीच विसंगति को दर्शाती है। गौरतलब है कि उस दौरान 2017 से 19 में प्रदूषण का जो स्तर था, उसकी तुलना में 2021 के दौरान कोई खास गिरावट दर्ज नहीं की गई थी।