मध्य प्रदेश में बिजली सरप्लस है। यहा तक कि मध्यप्रदेश पावर मेनेजमेंट कंपनी को पिछले पांच सालों में बिना बिजली खरीदे विद्युत कंपनियों को 12,834 करोड़ रुपए का भुगतान बतौर फिक्स चार्ज के रूप में करना पड़ा है, लेकिन इसके बावजूद प्रदेश में चुटका परमाणु बिजली घर की तैयारी अपने अंतिम दौर में पहुंच चुकी है।
यह जानते और समझते हुए भी कि इस परमाणु घर के निर्माण से मध्य प्रदेश के मंडला जिले के चुटका सहित 54 गांव के 1.25 लाख लोग विस्थापित होंगे। जबकि अभी तक इन गांवों की ग्राम सभाओं से इस परमाणु घर के निर्माण के लिए अनुमति नहीं मिली है।
यही नहीं इस परमाणु बिजली घर से बनने वाली बिजली की दर नौ से 12 रुपए प्रति यूनिट होगी। जबकि सौर ऊर्जा की प्रति यूनिट अधिकतम दर 2.97 रुपए है।
मध्य प्रदेश के मंडला जिले में बन रही चुटका परमाणु परियोजना के निर्माण के लिए भारत के सबसे बड़े बिजली उत्पादक नेशनल थर्मल पावर कार्पोरेशन (एनटीपीसी) और न्यूक्लियर पावर कार्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के बीच संयुक्त उद्यम अणुशक्ति विद्युत निगम लिमिटेड बनाकर गत एक मई 2023 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
इस समझौते के बाद आदिवासियों की चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति का संघर्ष और तेज हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि चुटका परमाणु घर से उत्पादित होने वाली बिजली की दर सार्वजनिक क्यों नहीं की जा रही है। इस संयंत्र से उत्पादित बिजली का 50 प्रतिशत मध्यप्रदेश सरकार को खरीदना है परन्तु अभी तक प्रदेश की पावर मेनेजमेन्ट कंपनी और एनपीसीआईएल के बीच बिजली खरीदी अनुबंध नहीं हुआ है।
चुटका संयत्र से एक मेगावाट बिजली उत्पादन की लागत लगभग 18 करोड़ रुपए आंकी गई है। वर्ष 2014 से 2020 तक प्रदेश की विद्युत कंपनियों का घाटा 36 हजार 812 करोड़ रुपए और कर्ज 50 हजार करोड़ रुपए तक हो गया है। इस हिसाब से प्रदेश के प्रति बिजली उपभोक्ताओं पर 25 हजार का कर्ज चढ़ चुका है।
चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के अध्यक्ष दादु लाल कुङापे का कहना है कि अभी तक हमारी ग्राम सभाओं से इस चुटका परमाणु परियोजना को मंजूर नहीं किया गया है। ऐसे में सरकार किस बिना पर इस परियोजना को आगे बढ़ाते जा रही है। और अंत में वही होगा कि वे पुलिस की मदद से जोरजबदस्ती कर हमें अपने चुटका सहित अन्य गांवों से बेदखल कर देंगे।
गांव में अब तक इस परियोजना से जुड़ा हुआ एक भी कार्य नहीं हुआ है और हमारी समिति ने करने भी नहीं दिया है। साथ ही उनका कहना था कि भविष्य में भी हम इस परियोजना जुड़े किसी भी व्यक्ति को गांव में प्रवेश नहीं करने देंगे।
संघर्ष समिति के एक वरिष्ठ सदस्य राजकुमार सिन्हा का कहना है कि प्रदेश की जनता परमाणु संयंत्र से बनने वाली बिजली की दर जानना चाहती है जो नहीं बताई जा रही है,जबकि उत्पादित बिजली का आधा हिस्सा प्रदेश सरकार को ही खरीदना है।
ध्यान रहे कि वर्ष 2020 के सरकारी आंकङे अनुसार प्रदेश में नवीकरणीय उर्जा की क्षमता 3,965 मेगावाट है। जबकि प्रदेश के विभिन्न अंचलो में 5 हजार मेगावाट की सोलर पावर प्लांट निर्माणाधीन है। प्रदेश में मांग से 50 फीसदी बिजली ज्यादा उपलब्ध है। वर्ष 2019- 20 में कुल 28,293.97 मिलियन यूनिट यानि 2, 82, 93, 97, 726 यूनिट बिजली सरेंडर की गई थी।
सिन्हां ने बताया कि मध्यप्रदेश पावर मेनेजमेन्ट कम्पनी ने पिछले पांच साल में बिना बिजली खरीदे विद्युत कम्पनियों को 12,834 करोड़ रुपए का भुगतान बतौर फिक्स चार्ज कर के रूप में दिया है। यही नहीं एनटीपीसी को ही वित्तीय वर्ष 2023-24 में पावर मेनेजमेन्ट कम्पनी को बिना बिजली लिए तीन हजार करोङ रुपए चुकाने होंगे।
उनका कहना है कि यदि विद्युत कंपनियां चुटका परमाणु संयंत्र से महंगी बिजली खरीदी अनुबंध करती हैं तो प्रदेश की 1.30 करोड़ बिजली उपभोक्ताओं को ही आर्थिक बोझ उठाना होगा। जबकि उपभोक्ता महंगी बिजली के कारण पहले से परेशान हैं। अतः स्वच्छ और सस्ती उर्जा के विकल्प की दिशा में आगे बढ़ना ही प्रदेश के हित में होगा।
दिल्ली स्थित रिसर्च फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार परमाणु बिजली की लागत 9 से 12 रुपए प्रति यूनिट आएगी। लगभग चालीस वर्ष तक चलने वाले परमाणु उर्जा संयत्र का डी-कमिशनिंग (संयंत्र को बंद करना)आवश्यक होगा, जिसका खर्च स्थापना खर्च के बराबर होगा।
अगर इस खर्च को भी जोड़ा जाएगा तो बिजली उत्पादन की लागत 20 रुपए प्रति यूनिट आएगी। जबकि मध्य प्रदेश के ही रीवा जिले में स्थापित सोलर प्लांट से मिलने वाली बिजली की अधिकतम दर 2.97 रुपए है, यह दिल्ली मेट्रो को बेची जा रही है।
मिली जानकारी के अनुसार संयुक्त उद्यम कंपनी दो प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (दाबित भारी जल रिएक्टर) परियोजनाओं का विकास करेगी। पहली चुटका परमाणु परियोजना मंडला मध्यप्रदेश (2×700 मेगावाट) और दूसरी माही बांसवाडा राजस्थान परमाणु परियोजना(4×700 मेगावाट) बनाया जाएगा।
चुटका परमाणु संयंत्र की अनुमानित लागत 25 हजार करोड़ रुपए और माही परमाणु संयंत्र की 50 हजार करोड़ रुपए आंकी गई है। भारत के सबसे बड़े बिजली उत्पादक एनटीपीसी ने 2032 तक 2,000, 2035 तक 4,200 और 2050 तक 20 हजार मेगावाट परमाणु उर्जा उत्पादन शुरू करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
अभी तक एनटीपीसी गैस, ताप और सौर उर्जा से ही बिजली उत्पादन का काम कर रहा था। परमाणु उर्जा क्षेत्र में यह उसका पहला प्रयास है। देश के कुल बिजली आपूर्ति में 1964 से गठित परमाणु उर्जा कार्यक्रम की हिस्सेदारी अब तक मात्र 6,780 मेगावाट है जो कुल बिजली उत्पादन का 2 प्रतिशत है। जबकि पिछले एक दशक में नवीकरणीय उर्जा की हिस्सेदारी 87 हजार 699 मेगावाट अर्थात कुल विद्युत उत्पादन का 23.60 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
ध्यान रहे कि केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जितेंद्र सिंह ने गत पांच अप्रैल को संसद में बताया था कि सरकार ने देश की बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए 10 परमाणु रिएक्टर स्थापित करने की मंजूरी दी है। ये रिएक्टर वर्ष 2031 तक स्थापित किए जाएंगे।
इन रिएक्टरों से कुल 7,000 मेगावाट बिजली उत्पादन की उम्मीद है। 10 रिएक्टर चार स्थानों पर स्थापित किए जाएंगे। ये रिएक्टर कैगा (कर्नाटक), गोरखपुर (उत्तर प्रदेश), चुटका (मध्य प्रदेश) और माही बांसवाड़ा (राजस्थान) में स्थापित किए जाएंगे। इनमें से चुटका और माही बांसवाड़ा परमाणु परियोजनाओं को एनटीपीसी लिमिटेड और एनपीसीआईएल के बीच एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से कार्यान्वित किया जाएगा।
सिन्हा कहते हैं कि परमाणु उर्जा संयत्रों के इतिहास की तीन भीषण दुर्घटनाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। इन भीषण दुर्घटनाओं (थ्री माइल आइस लैंड (अमेरिका), चेर्नोबिल (युक्रेन) और फुकुशिमा (जापान) ने बार) ने बार-बार हमें यह चेताया है कि इन परमाणु घरों के दुर्घटना होने पर इस पर इंसानी नियंत्रण नहीं रह जाता।
ध्यान रहे कि फुकुशिमा में आसपास के 20 किलोमीटर दायरे में 3 करोड़ टन रेडियोएक्टिव कचरा जमा है। इस कचरा को हटाने में जापान सरकार ने 94 हजार करोड़ खर्च कर चुकी है। विकिरण को पूरी तरह साफ करने में 30 साल लगेगें। परमाणु संयंत्र से निकलने वाली रेडियोधर्मी कचरे का निस्तारण करने की सुरक्षित विधी विज्ञान के पास भी नहीं है।
ऐसी दशा में 2.4 लाख वर्ष तक रेडियोधर्मी कचड़ा जैवविविधता को नुकसान पहुंचाता रहेगा। इसलिए अमेरिका और ज्यादातर पश्चिम यूरोप के देशों में पिछले 35 वर्षो में रिएक्टर नहीं लगाए गए हैं। जर्मनी ने तो अपने यहां अंतिम परमाणु उर्जा संयत्र को भी बंद कर दिया है।
सिन्हा ने कहा कि दरअसल परमाणु बिजली उद्योग में जबरदस्त मंदी का दौर है। इसलिए अमेरीका, फ्रांस और रूस आदि की कंपनियां भारत में इसके ठेके और आर्डर पाने के लिए बेचैन हैं। प्रश्न यह है कि अधिकतर समुद्र किनारे लगने वाली परमाणु परियोजना को नदी किनारे लगाने की जल्दबाजी प्रदेश को गहरे संकट में तो नहीं डालेगी? कहीं भविष्य में प्रदेश में दूसरा भोपाल गैस कांड की पुनरावृत्ति तो नहीं होगी?