एक बार फिर इस साल इलेक्ट्रिक कारों की मांग रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ने की ओर अग्रसर है। इस बारे में इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी द्वारा जारी “ग्लोबल इलेक्ट्रिक व्हीकल आउटलुक 2023” के मुताबिक 2022 में रिकॉर्ड एक करोड़ से ज्यादा इलेक्ट्रिक कारें बेची-खरीदी गई थी। वहीं अनुमान है कि 2023 में बिक्री का यह आंकड़ा 35 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 1.4 करोड़ पर पहुंच जाएगा।
देखा जाए तो इस बम्पर मांग का मतलब है कि कुल कार बाजार में इलेक्ट्रिक कारों की जो हिस्सेदारी 2020 में चार फीसदी थी, वो 2022 में बढ़कर 14 फीसदी पर पहुंच गई थी। वहीं अनुमान है कि यह आंकड़ा 2023 में बढ़कर 18 फीसदी पर पहुंच जाएगा।
यदि ऑटो उद्योग को देखें तो इस समय वो एक बड़े बदलाव से गुजर रहा है, जिसका प्रभाव ऊर्जा क्षेत्र पर भी पड़ रहा है। आंकड़ों की मानें तो इलेक्ट्रिक वाहनों की इस बिक्री का प्रभाव सीधे तौर पर तेल की मांग पर पड़ेगा, जिसमें गिरावट आने की सम्भावना है। इससे न केवल जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटेगी। साथ ही पर्यावरण को भी फायदा होगा। इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ने से उत्सर्जन में गिरावट आएगी और वायु प्रदूषण को भी कम करने में मदद मिलेगी।
इस बारे में आईईए के कार्यकारी निदेशक फतह बिरोल का कहना है कि तेजी से उभर रही नई वैश्विक ऊर्जा अर्थव्यवस्था में इलेक्ट्रिक वाहनों की बड़ी भूमिका है। जो दुनिया भर में कार निर्माण उद्योग में ऐतिहासिक परिवर्तन ला रहे हैं।"
उनके अनुसार जो रुझान हम देख रहे हैं उनका वैश्विक स्तर पर तेल की मांग पर भारी असर पड़ेगा, जिस तरह से इलेक्ट्रिक वाहन बढ़ रहे हैं उसके चलते अनुमान है कि 2030 तक इनकी वजह से हर दिन तेल की मांग में 50 लाख बैरल की गिरावट आ जाएगी। फतह बिरोल का कहना है कि कारें सिर्फ पहली लहर हैं, जल्द ही इलेक्ट्रिक बसें और ट्रक भी चलेंगे।
रिपोर्ट की मानें तो इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री का बड़ा भाग मुख्य रूप से तीन बाजारों - चीन, यूरोप और अमेरिका में केंद्रित है। इस मामले में चीन सबसे ऊपर है। जहां 2022 में दुनिया की 60 फीसदी इलेक्ट्रिक कारण बेची गई। आंकड़ों के अनुसार आज दुनिया की सड़कों पर चलने वाली आधे से ज्यादा इलेक्ट्रिक कारें चीन में हैं। वहीं अमेरिका दूसरा और यूरोप तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। जहां अमेरिका में इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में 15 फीसदी वहीं यूरोप में 55 फीसदी की मजबूत वृद्धि देखी गई थी।
इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ने से प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी मिलेगी मदद
दुनिया भर में बढ़ते वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की समस्या से कौन अवगत नहीं है। यही वजह है बढ़ते प्रदूषण और उत्सर्जन से निपटने के लिए दुनिया भर की सरकारें तेजी से अपनी परिवहन व्यवस्था को जीवाश्म ईंधन के स्थान पर इलेक्ट्रिक में बदलने पर जोर दे रहीं हैं।
इसके लिए वो लोगों के साथ-साथ कार कंपनियों को भी तरह-तरह के प्रलोभन दे रहीं हैं और जो जरूरी भी हैं। इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ वर्षों में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग और बिक्री में तेजी से इजाफा हुआ है।
अमेरिका और यूरोप ने ऐसी नीतियां बनाई हैं जिनके चलते अनुमान है कि इस दशक और उसके बाद भी इन देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों के बाजार में हिस्सेदारी और बढ़ जाएगी। अनुमान है कि 2030 तक चीन, यूरोप, और अमेरिका में होने वाली कुल कारों की बिक्री में इलेक्ट्रिक कारों की औसत हिस्सेदारी 60 फीसदी तक बढ़ जाएगी।
हालांकि देखा जाए तो इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री और निर्माण केवल कुछ बड़े बाजारों में ही केंद्रित है लेकिन इसके बावजूद अन्य क्षेत्रों से भी आशाजनक संकेत सामने आए हैं। पिछले वर्ष जहां इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री भारत और इंडोनेशिया में तीन गुणा अधिक हो गई है। वहीं थाईलैंड में भी दोगुनी से अधिक हो गई है।
पता चला है कि थाईलैंड में कुल कारों में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की हिस्सेदारी बढ़कर तीन फीसदी पर पहुंच गई है। इसी तरह भारत और इंडोनेशिया में भी यह हिस्सेदारी बढ़कर डेढ़ फीसदी पर पहुंच गई है।
वहीं प्रभावी नीतियों और निजी क्षेत्र में निवेश के संयोजन से भविष्य में इस हिस्सेदारी में और वृद्धि होने की संभावना है। भारत सरकार ने इसको बढ़ावा देने के लिए 320 करोड़ डॉलर का प्रोत्साहन कार्यक्रम शुरू किया है, जिसने 830 करोड़ डॉलर के निवेश को आकर्षित किया है। इससे आने वाले वर्षों में बैटरी निर्माण और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी।
हाल ही में दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने अपने एक अध्ययन में कहा था कि दिल्ली में मौजूद 1.32 करोड़ वाहन सर्दियों के दौरान होने वाले प्रदूषण का प्रमुख स्रोत हैं। ऐसे में यदि इन वाहनों को इलेक्ट्रिक में बदल दिया जाए तो इस समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दिल्ली दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में से एक है। जहां प्रदूषण का आलम यह है कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट का कहना पड़ा था कि प्रदूषण के चलते दिल्ली गैस चैम्बर बन गई है।
वहीं हाल ही में द इंटरनेशनल कॉउंसिल ऑन क्लीन ट्रांसपोर्टेशन (आईसीसीटी) और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी), कानपुर द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने से भारत में हर साल 70,380 लोगों की जान बचाई जा सकती है। हालांकि अनुमान है कि वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य के मामले में सबसे ज्यादा फायदा तभी होगा जब ई-वाहनों के साथ-साथ उसको चार्ज करने के लिए उपयोग की जा रही ऊर्जा के स्रोतों पर भी ध्यान दिया जाएगा।
ऐसे में यदि भारत में भी डीजल, पेट्रोल की जगह इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाया जाए तो देश में भी न केवल डीजल, पेट्रोल पर निर्भरता घटेगी साथ ही उत्सर्जन में भी गिरावट आएगी जो वायु प्रदूषण में रोकथाम के साथ साथ जलवायु में आते बदलावों से निपटने में भी मददगार होगा।