प्रदूषण

दिल्लीवासियों, बारिश का मतलब यह नहीं कि इस बार प्रदूषण मुक्त होगी दिवाली, जानिए क्यों

विशेषज्ञों का कहना है कि पटाखे, उद्योग, वाहन, त्योहार की तारीख और मानसून की देरी से वापसी, यह सभी पिछली दिवाली की पुनरावृत्ति का कारण बन सकते हैं

Zumbish

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) के साथ शेष उत्तर-पश्चिमी भारत में सितंबर के अंतिम सप्ताह में हुई भारी बारिश आदि कारणों से वर्ष के इस समय में पराली जलाने की घटनाएं अपने चरम पर नहीं पहुंची हैं। लेकिन विशेषज्ञों द्वारा डाउन टू अर्थ को 14 अक्टूबर, 2022 को दी जानकारी से पता चला है कि इस बार भी दिल्ली में दीवाली प्रदूषण मुक्त नहीं होगी।

पता चला है कि पटाखे, उद्योग, वाहन, इस साल त्योहार का समय और मॉनसून की देर से वापसी, जैसे कारण सभी पिछली दिवाली की पुनरावृत्ति का कारण बन सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार इसमें मुख्य कारणों में से एक यह है कि इस वर्ष त्योहार कब मनाया जाएगा। इस बार दीवाली पिछले साल से तीन सप्ताह पहले है। गौरतलब है कि पिछले साल दीवाली 4 नवंबर को मनाई गई थी।

इस बारे में वायु गुणवत्ता और उत्सर्जन विशेषज्ञ गुफरान बेग ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस साल दिवाली ऐसे समय में मनाई जाएगी जब तापमान अभी भी गर्म है। ऐसे में “इस बार भी भले ही पिछली दिवाली जितने पटाखे चलाए जाएं, लेकिन प्रदूषण का फैलाव ज्यादा हो सकता है। हालांकि पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष कृषि गतिविधियां बेहद कम हैं।“

उनका कहना है कि “यदि हवा की दिशा अनुकूल रहती है, जो कि होने की संभावना है और साथ ही पराली जलाने की घटनाएं भी कई गुना बढ़ जाती है, तो हवा की गुणवत्ता अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में लंबे समय तक के लिए खराब हो सकती है, भले ही पटाखों से कम उत्सर्जन हो।”

गौरतलब है कि दिल्ली में 22 और 23 सितंबर की सुबह के बीच 46.2 मिलीमीटर (मिमी) बारिश हुई थी, जोकि भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के मुताबिक, सामान्य (4.1 मिमी) से 10 गुना ज्यादा है।

राष्ट्रीय राजधानी ने भारी बारिश के बाद अगस्त 2020 के बाद से वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का अपना सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड दर्ज किया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में 24 घंटे का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक 10 अक्टूबर को 44 दर्ज किया गया  था। वहीं 07 अक्टूबर को यह 55, 08 अक्टूबर को 56 और 9 अक्टूबर को 48 रिकॉर्ड किया गया।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 0-50 के बीच एक्यूआई को 'बेहतर', 51-100 को 'संतोषजनक', 101-200 को 'मध्यम', 201-300 को 'खराब', 301-400 को 'बेहद खराब' और 401 से 500 को 'गंभीर' माना जाता है। वहीं 500 से ऊपर एक्यूआई 'आपातकालीन' स्थिति को दर्शाता है।

इंस्टीट्यूट ऑफ क्लाइमेट चेंज स्टडीज, तिरुवनंतपुरम के निदेशक डीएस पाई ने डीटीई को बताया कि, “हालांकि यह सच था कि कुछ दिनों से लगातार बारिश हो रही थी, दक्षिण-पश्चिम मानसून ने वापस लौटना शुरू कर दिया है।“उनका कहना है कि “उत्तर पश्चिमी भारत में आने वाले दिनों में बारिश की घटनाएं कम होंगी।“

इसी तरह दक्षिण-पश्चिम मानसून “उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और गुजरात के शेष हिस्सों से भी पीछे लौट गया है। 14 अक्टूबर को आईएमडी द्वारा साझा की गई जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश के अधिकांश हिस्से, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में भी यह लौटना शुरू हो गया है।

वहीं पराली जलाने के मामले भी सामने आने लगे हैं। नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन के आंकड़ों के अनुसार, 1 से 12 अक्टूबर के बीच पंजाब और हरियाणा में आग की कुल 826 घटनाएं दर्ज की गई हैं। पंजाब में अमृतसर और तरन तारण, दोनों इस साल क्षेत्र में अब तक के सबसे ज्यादा पराली जलाने वाले हॉटस्पॉट रहे हैं।

इस बारे में दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) में वायु प्रदूषण के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी का कहना है कि, “खेतों में बड़े पैमाने पर पराली जलाना अभी शुरू नहीं हुआ है क्योंकि बारिश ने समय को पीछे धकेल दिया है। ऐसे में इस बात की संभावना है कि जब वास्तव में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जाएगी तो उसके कारण कहीं ज्यादा प्रदूषण हो सकता है।

उन्होंने इस बारे में आगे जानकारी दी है कि हालांकि, इस बात की गणना करने का कोई तरीका नहीं है कि वास्तव में पराली जलाने से कितना धुआं होगा।

“पिछली बार, राजधानी में दिवाली के आसपास एक्यूआई खतरनाक स्तर पर पहुंच गया था, लेकिन उस समय के आसपास खेतों में कोई पराली जलाने की घटनाएं विशेष तौर पर दर्ज नहीं की गई थी। उस समय, त्योहार के बाद, भी स्मॉग नौ से 10 दिनों तक रहा था।”

सीएसई विशेषज्ञों के अनुसार, इस बार एक्यूआई के खतरनाक स्तर पर नहीं पहुंचने, लेकिन पटाखों, उद्योगों और वाहनों सहित प्रदूषण के अन्य स्रोतों से जहरीली गैसों के अधिक उत्सर्जन के चलते यह दिवाली में स्थिति गंभीर हो सकती है। उनका कहना है कि हालांकि क्या स्थिति पिछले सालों से बदतर होगी, यह देखा जाना बाकी है।

उन्होंने कहा कि पर्यावरण के दृष्टिकोण से यह एक स्वच्छ दिवाली हो सकती है, जैसा कि एक्यूआई के स्तर को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है, लेकिन हमें अभी भी बहुत सी सावधानियां बरतने की जरूरत है।

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को इस बारे में तैयार रहना चाहिए क्योंकि पराली और पटाखे जैसे कई कारकों से स्थिति बिगड़ सकती है। दिल्ली सरकार ने सितंबर में राष्ट्रीय राजधानी में 1 जनवरी तक सभी प्रकार के पटाखों के उत्पादन, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी थी।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 10 अक्टूबर को प्रतिबंध हटाने से इनकार कर दिया था। शीर्ष अदालत का कहना था कि, “दिवाली की छुट्टियों से पहले मामले पर फिर से सुनवाई की जाएगी।“