केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उद्योगों से निकले अपशिष्ट जल और उसके निपटान के लिए निर्मित ट्रीटमेंट प्लांट से जुडी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की है| जिसमें उद्योगों का विवरण दिया है जो इनसे जुड़े नियमों का पालन कर रहे हैं| और उन्होंने अपने अपशिष्ट जल के निपटान के लिए ट्रीटमेंट प्लांट (एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाए हैं या नहीं इस बारे में भी विवरण दिया गया है| जोकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) द्वारा साझा जानकारी पर आधारित है| जिसे मई 2020 में जारी किया गया है|
इसके साथ ही इस रिपोर्ट में नदी बेसिन के आधार पर भी उद्योगों को वर्गीकृत किया गया है| जहां अपशिष्ट जल के निपटान के लिए ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) लगाए या नहीं लगाए गए हैं| रिपोर्ट के अनुसार कुल 65,135 उद्योगों में ईटीपी लगाना जरुरी है| और उनमें से 63,108 उद्योग कार्यरत ईटीपी के साथ चल रहे हैं| जबकि 2,027 उद्योगों को बिना ईटीपी के चलाया जा रहा है|
बिना एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट के चलाये जा रहे इन उद्योगों में से 968 को कारण बताओ नोटिस और 881 बंद करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं| जबकि 7 उद्योगों के खिलाफ मुक़दमे दायर किये गए हैं| वही 269 के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है| दिलचस्प है कि जिन 63,108 उद्योगों में फंक्शनल ईटीपी है, उनमें से भी 1616 उद्योग पर्यावरण से जुड़े मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं| जबकि बाकि बचे 61,346 उद्योगों को सही पाया गया है|
इसके साथ ही सीपीसीबी ने एनजीटी को यह भी सूचित किया है कि नदी बेसिन के आधार पर ईटीपी और सीईटीपी से जुड़े जानकारी एकत्रित करने के लिए प्रारूप को अंतिम रूप दिया जा रहा है| जिससे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) और प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) की मदद से उनके बारे में बारीक जानकारियां भी इकट्ठी की जा सकें|
हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने डेयरियां और गौशालाओं को चलाने और उसके पर्यावरण सम्बन्धी दिशानिर्देशों से जुडी एक रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष पेश की है| जिसे 18 मई, 2020 को ऑनलाइन जारी किया गया है| इसमें सभी स्थानीय निकायों/ राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) / प्रदूषण नियंत्रण समितियों/ ग्राम पंचायतों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है कि डेयरियां और गौशालाएं पर्यावरण प्रबंधन सम्बन्धी दिशानिर्देशों का पालन करें।
रिपोर्ट में कहा गया है कि डेयरी फार्मों और गौशालाओं में जहां पशुओं की आबादी 10 या उससे अधिक है, वहां पशुपालकों को संबंधित एसपीसीबी / पीसीसी से जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के तहत उसे स्थापित करने और चलाने के लिए सहमति प्राप्त करनी होगी।
साथ ही रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि सभी स्थानीय प्राधिकरणों और निगमों को अपने क्षेत्र में मौजूद सभी डेयरी फार्मों और गौशालाओं को एक निर्धारित प्रारूप में विवरण तैयार करना होगा| इस जानकारी को उन्हें साल में एक बार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) या प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) के साथ साझा करनी होगी।
सामान्य तौर पर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मवेशियों के गोबर के निपटान खेतों में खाद, वर्मी-कम्पोस्टिंग, बायोगैस, मछली के चारे और दाह संस्कार के लिए ईंधन आदि रूप में किया जाता है। एसपीसीबी और पीसीसी ने अपशिष्ट जल के निपटान और उपयोग के बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। हालांकि छत्तीसगढ़, केरल और मिजोरम ने बताया है कि वो इस अपशिष्ट जल का उपयोग पशुओं का चारा उगाने के लिए कर रहे हैं|