सरकार ने 1 अप्रैल, 2021 को थर्मल पावर प्लांट के लिए उत्सर्जन मानकों को पूरा करने की समय सीमा को बढ़ा दिया था, जिसकी सीएसई ने की निंदा है और कहा है यह ऐसा ही है जैसे उन्हें प्रदूषण फैलाने का लाइसेंस दे दिया जाए।
सीएसई द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि समय सीमा में की गई यह वृद्धि ज्यादातर ताप बिजली संयंत्रों पर लागू होगी, जिससे उन्हें मानकों को पूरा करने के लिए तीन से चार साल तक की अनुमति मिल जाएगी। अब तक इस दिशा में पर्याप्त प्रगति न करने वाले संयंत्रों को इस तरह की छूट देना सरासर गलत है, जो स्वीकार्य नहीं है।
उसके अनुसार यह संशोधित अधिसूचना उन पुराने और अकुशल कोयला बिजली संयंत्रों को चलाए जाने के पक्ष में है, जो जुर्माना देने पर जारी रह सकते हैं। ऐसा करने से भारत के जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी लक्ष्यों पर भी असर पड़ सकता है।
इन संयंत्रों को पहले भी समय दिया गया था, लेकिन सिर्फ जुर्माना लगा कर उत्सर्जन मानदंडों की समय सीमा में छूट मिलना ऐसा ही है, जैसे उन्हें प्रदूषण फैलाने का लाइसेंस दे दिया गया है।
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण के अनुसार, “इन नियमों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की जगह, मंत्रालय ने समय सीमा को आगे बढ़ा दिया है, जिससे अधिकांश प्लांटस को और तीन से चार साल तक प्रदूषण करने की अनुमति मिल जाएगी। हालांकि समय सीमा को बढ़ाया जाना ही केवल चिंता का विषय नहीं है। यह एक त्रुटिपूर्ण अधिसूचना है, जो नियमों को पूरा न करने वालों को प्रदूषण करने का लाइसेंस दे देती है।”
क्या है पूरा मामला
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने साल 2015 में थर्मल पावर प्लांट्स से होने वाले उत्सर्जन को लेकर मानदंड बनाए थे जिसे 2017 तक पूरा करना था। जिसे पूरा न कर पाने की स्थिति में उनकी समय सीमा को 2022 तक के लिए बढ़ा दिया गया था। अब एक बार फिर जबकि उसकी समय सीमा पूरी होने वाली है। उससे पहले ही सरकार ने संशोधित अधिसूचना के जरिए उसे तीन से चार साल के लिए बढ़ा दिया है।
इस संशोधन में थर्मल पावर प्लांट्स को तीन वर्गों में बांट दिया गया है। जिसमें पहले वर्ग में वो प्लांट हैं जो एनसीआर और उन शहरों के 10 किलोमीटर के दायरे में हैं जिनकी आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार दस लाख से अधिक है। इन संयंत्रों को 2022 के अंत तक नए उत्सर्जन मानकों का पालन करना होगा। श्रेणी बी में उन संयंत्रों को रखा गया है जो गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों और गैर-प्राप्ति श्रेणी वाले शहरों (नॉन-अटैनमेंट सिटीज) के 10 किलोमीटर के दायरे में हैं, इनके लिए 31 दिसम्बर, 2023 तक उत्सर्जन मानदंडो को पूरा करना आवश्यक है। जबकि बाकी को तीसरे वर्ग में रखा गया है। जिन्हें 31 दिसंबर, 2024 तक का वक्त दिया गया है।
इससे पहले भी सीएसई द्वारा किए एक अध्ययन 'कोल-बेस्ड पावर नॉर्म: ह्वेयर डू वी स्टैंड टूडे' में इस बात का खुलासा कर चुकी है कि देश में करीब 70 फीसदी प्लांट उत्सर्जन के मानक को 2022 तक पूरा नहीं कर पाएंगे। सीएसई के मुताबिक, कुल बिजली उत्पादन का 56 हिस्सा कोयले पर आश्रित होता है लिहाजा भारत के पावर सेक्टर के लिए कोयला काफी अहम है। सल्फर डाई-ऑक्साईड समेत अन्य प्रदूषक तत्वों के उत्सर्जन के लिए तो ये सेक्टर जिम्मेवार है ही, इसमें पानी की भी बहुत जरूरत पड़ती है। भारत की पूरी इंडस्ट्री जितने ताजा पानी का इस्तेमाल करती है, उसमें 70 प्रतिशत हिस्सेदारी पावर सेक्टर की है।
सीएसई ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि, 2015 में लाए गए नियम वैश्विक नियमन पर आधारित हैं। एक अनुमान के मुताबिक, इन नियमों का पालन किया जाए, तो पीएम के उत्सर्जन में 35 फीसदी, सल्फर डाई-ऑक्साईड के उत्सर्जन में 80 फीसदी और नाइट्रोजन के उत्सर्जन में 42 फीसदी तक की कटौती हो सकती है। साथ ही इंडस्ट्री ताजा पानी के इस्तेमाल में भी कमी ला सकती है। लेकिन, ये सेक्टर नियमों को स्वीकार करने से बच रहा है। इसने पहले 2015 के नियमों में रुकावट डालने की कोशिश की थी। वर्ष 2015 के नियमों को लागू करने का समय 2017 से बढ़ाकर 2022 कर दिया गया था। अब एक बार फिर इसकी समय सीमा को बढ़ा दिया है।