पेट्रोल पंप के कारण प्रदूषित होने वाली मिट्टी और भू-जल की रोकथाम के लिए नई गाइडलाइन तैयार की गई है। इस गाइ्डलाइन के प्रारूप के मुताबिक ऐसे सभी पेट्रोल पंप जहां भू-जल का स्तर 4 मीटर तक कम है वहां पेट्रोल पंप को प्रदूषण की रोकथाम के लिए दोहरी सुरक्षा करनी होगी। पेट्रोल पंप को दोहरा टैंक या फिर ठोस कंक्रीट की दीवार वाला टैंक बनाना होगा ताकि भू-जल और मिट्टी का प्रदूषण कम किया जा सके। वहीं, सभी नए पेट्रोल पंपों को स्कूल और अस्पताल से कम से कम दस बेड या 30 मीटर की दूरी रखनी होगी।
गाइडलाइन प्रारूप के मुताबिक सभी नए रिटेल आउटलेट को अंडरग्राउंड टैंक बनाना होगा साथ ही इससे जुड़े पाइप, कनेक्टर्स, पंप, फिटिंग आदि को आईएस स्टैंडर्ड का रखने के साथ ही लीकेज मुक्त रखने के भी उपाय करने होगें नई गाइडलाइन के मुताबिक फ्यूलिंग स्टेशन पर यदि पेट्रोल, डीजल, ल्यूब ऑयल का एक बैरल यानी 165 लीटर से ज्यादा किसी भी कारण से लीकेज हो जाता है तो संबंधित ऑयल मार्केटिंग कंपनी को राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पीईएसओ और जिला प्रशासन व सीपीसीबी को भी 24 घंटे के अंदर इसकी सूचना देनी होगी। साथ ही तत्काल रीटेल आउटलेट को बंद भी करना होगा। इस लीकेज के लिए तेल कंपनी को पर्यावरणीय जुर्माना भी भरना होगा। यह जुर्माना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या प्रदूषण नियंत्रण समिति के जरिए लगाया जाएगा। वहीं, जुर्माने का आकलन लीकेज के कारण मिट्टी और भू-जल के प्रदूषण व संबंधित साइट में सुधार के आधार पर होगा। यह आकलन संबंधित कंपनी की ही नियुक्त की हुई एक्सपर्ट कमेटी करेगी। इस कमेटी को संबंधित काम में 7 वर्ष का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अनुभव होना चाहिए।
यदि एक बार भी ऐसा लीकेज होता है तो संबंधित जगह की सफाई जब तक पूरी तरह सुनिश्चित नहीं हो जाती और पीईएसओ और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से इस आशय वाला प्रमाणपत्र नहीं लिया जाता तब तक पेट्रोल पंप को संचालित नहीं किया जा सकता। सभी अंडरग्राउंड टैंक और पाइपलाइन हर पांच वर्ष पर जांचे जाएंगे। अंडरग्राउंड टैंक से कचरा (स्लज) को भी न सिर्फ निकालना होगा बल्कि उसका निस्तारण भी खतरनाक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के अनुरूप करना होगा। संबंधित पेट्रोल पंप को इसका रिकॉर्ड रखना होगा।
एक लाख की आबादी वाले शहर में 300 किलोलीटर एमएस प्रति माह क्षमता और 10 लाख की आबादी में 100 किलोलीटर एमएस प्रति माह क्षमता वाले पेट्रोल पंप को वैपर रिकवरी सिस्टम (वीआरएस) दिया जाएगा। यदि वे इसे सही से इसे संचालित नहीं करते हैं तो इस वीआरएस की कीमत के बराबर ही जुर्माना संबंधित पेट्रोल पंप से वसूला जाएगा। इस वीआरएस के सही से संचालन की जिम्मेदारी संबंधित तेल कंपनी की होगी। यह वीआरएस सिस्टम संचालित हो रहा है या नहीं, इसकी ऑनलाइन निगरानी की जाएगी। वीआरएस के खराब होने की सूरत में इसे 24 से 72 घंटों के बीच ठीक भी करना होगा।
दस लाख की आबादी में 300 किलोलीटर एमएस प्रति माह या उससे अधिक की बिक्री करने वाले पेट्रोल पंप पर वर्ष में एक बार यह जांच की जाएगी कि वह नियमों का पालन करता है या नहीं, इसके बाद रिपोर्ट राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिया जाएगा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के वायु गुणवत्ता प्रबंधन अधिकारी वीके शुक्ला ने बताया कि यह विशेषज्ञ समिति की ओर से गाइडलाइन का निर्णायक प्रारूप तैयार हो चुका है। हालांकि, सुझाव और आपत्तियों के लिए दो सितंबर तक की मोहलत है। यह नए पेट्रोल पंपों के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तैयार किया गया है।