प्रदूषण

पर्यावरण मुकदमों की डायरी: तेल के कुओं में विस्फोट से हुआ गंभीर नुकसान

Susan Chacko, Dayanidhi

27 मई, 2020 को तेल के कुएं से गंभीर रूप से तेल और गैस बाहर निकली। उसके बाद 9 जून को ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) के बगजान, जिला तिनसुकिया, असम में कुएं में विस्फोट हुआ था। यह न्यायमूर्ति ब्रजेन्द्र प्रसाद कटैकी की अध्यक्षता में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा गठित विशेषज्ञों की समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट में कहा गया था।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक महत्वपूर्ण कार्रवाई की गंभीरता को समझने में कोताही बरती गई। किसी सुरक्षा परीक्षण के बिना ब्लोआउट प्रजेंटर (बीओपी) को हटाया गया। इस नाजुक प्रक्रिया को पूरा करने से पहले उचित योजना नहीं बनाई गई। प्रक्रिया को पूरा करने में योजना और क्रियान्वयन का अभाव देखा गया।

27 मई को बगजान-5 और बाद में 9 जून जिस दिन कुएं में विस्फोट हुआ था, उस दिन ओआईएल को संचालित करने के लिए अनिवार्य सहमति नहीं थी। इसे जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम की धारा 25 और वायु (रोकथाम और प्रदूषण पर नियंत्रण) अधिनियम की धारा 21 के तहत खतरनाक अपशिष्ट (प्रबंधन, हैंडलिंग और ट्रांसबाउन्डरी मूवमेंट) नियम, 2016 के नियम 6 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया।

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि बगजान के तेल के कुएं से तेल के रिसाव ने 6 किलोमीटर के दायरे को बुरी तरह प्रभावित किया है। 2 किमी के दायरे में सभी जीव और वनस्पति सीधे प्रभावित हुए हैं।

विस्फोट और उसके बाद लगी आग ने छोटे-छोटे चाय बागानों के अलावा स्थानीय आबादी और उनके घरों को भी काफी नुकसान पहुंचाया। रिपोर्टों से पता चलता है कि दक्षिण-पश्चिमी ओर और पश्चिमी तरफ के घास के मैदान आग से प्रभावित हुए। विशेषज्ञों द्वारा किए गए क्षेत्र सर्वेक्षण के दौरान यह देखा गया कि 1 किमी के दायरे में पक्षियों की संख्या और विविधता काफी हद तक कम हो गई है। विस्फोट के बाद से जो आवाज कुएं से निकल रही थी, उसे विस्फोट स्थल से 12 किलोमीटर की दूरी से भी सुना जा सकता था।

इस रिपोर्ट में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की रिपोर्ट भी शामिल है, जिसमें बगजान के तेल क्षेत्र के कुओं में विस्फोट के बाद आसपास हुए तेल रिसाव का परिदृश्य भी शामिल किया गया है।

डब्ल्यूआईआई द्वारा किए गए परीक्षणों और मूल्यांकन ने निष्कर्ष निकाला है कि उच्च स्तर के कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) प्रदूषक पारिस्थितिक तंत्र में पहुंच गए हैं और लंबे समय तक बने रहेंगे। घटनास्थल के आसपास के पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले पीएएच प्रदूषक अंततः जमीन में फैल जाएंगे जो भूजल को भी दूषित कर सकते हैं।

मेघालय में कोयला खनन : एनजीटी ने पर्यावरण की बहाली की योजनाओं को आगे बढ़ाने को कहा

एनजीटी ने 27 जुलाई को निर्देश दिया कि मेघालय में अवैध कोयला खनन के लिए उचित योजना को एक समिति द्वारा कार्यान्वित किया जाना चाहिए। अवैज्ञानिक रूप से खनन किए गए कोयले की मात्रा 23,25,663.54 मीट्रिक टन बताई गई है।

रिपोर्ट में सिफारिश की गई थी कि अवैध रूप से खनन किए गए कोयले की ढुलाई कोयला मालिकों द्वारा की जानी चाहिए, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया था। आदेश में कहा गया है कि राज्य के द्वारा कोयला ढुलाई करवाई जानी चाहिए और इसे कहां रखा जाए, उसके लिए स्थान के बारे में बताया जाना चाहिए।

एनजीटी ने पर्यावरण की बहाली की योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए कहा। इसमें मानचित्र तैयार करने के लिए एक विस्तृत लागत का अनुमान प्रस्तुत करना शामिल था, जो कोयला क्षेत्रों के साथ-साथ प्रत्येक कोयला खदान, कोयला शाफ्ट और कोयला डंप की पहचान और सीमा तय करेगा।

बाराबंकी में फ्रोजन मीट यूनिट कर रही है सभी पर्यावरणीय मानदंडों का पालन

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा कि मेसर्स अम्रोन फूड्स प्राइवेट लिमिटेड जो अगासन रोड, कुर्सी, बाराबंकी में स्थित है, इकाई सभी पर्यावरण मानदंडों का पालन कर रही है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इकाई फ्रोजन मीट के उत्पादन में लगी हुई है और पानी की आवश्यकता को पूरी करने के लिए दो बोरवेलों के माध्यम से भूजल का पानी निकाल रही है।

बोरवेल पर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फ्लो मीटर लगया गया है और पानी की खपत को लॉग बुक में दर्ज किया जा रहा है। उपलब्ध लॉग बुक के अनुसार, नवंबर 2019 से प्रति माह पानी की खपत 464.2 केएलडी थी। इकाई ने केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) से 800 एम 3/ दिन भूजल निकास के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) प्राप्त किया था, जो 30 अगस्त, 2019 तक मान्य था।

इकाई ने सीजीडब्ल्यूए से एनओसी के नवीनीकरण के लिए आवेदन किया था जो प्रक्रिया के अधीन है। इकाई के पास जल अधिनियम, 1974 और वायु अधिनियम, 1981 के तहत वैध सहमति है।

निरीक्षण के समय, अपशिष्ट उपचार संयंत्र की सभी इकाइयां संतोषजनक रूप से चलती पाई गईं। ईटीपी के निकास पर लगा ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम (ओसईएमएस) भी चालू पाया गया।

उपचारित अपशिष्ट का उपयोग परिसर में सिंचाई के लिए किया जाता है और इसे आसपास के किसानों द्वारा भी उपयोग किया जा रहा है। शेष उपचारित अपशिष्ट को बंद ह्यूम पाइप के माध्यम से रीठ नदी में छोड़ा जा रहा है। गैसीय उत्सर्जन के नमूने में प्रदूषक की मात्रा निर्धारित मानकों के अनुसार पाई गई।