प्रदूषण

2020 की चुनौतियां: क्या जहरीली हवा पर लग पाएगा अंकुश?

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में, सरकार द्वारा वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने वाले प्रयासों पर सवाल उठ रहे हैं

Shagun

2019 में प्रदूषण का स्तर बढ़ता रहा। वही, पराली का जलना, घुटन भरी हवा, कम दृश्यता, सांस की तकलीफ से जूझते लोगों से भरे अस्पताल। पिछले सालों के मुकाबले 2019 में भी यह सब बढ़ा ही है, कम नहीं हुआ।

दरअसल, जहरीली हवा अब दक्षिण एशिया के लिए सामान्य सी बात होती जा रही है। अलग-अलग अध्ययन बताते हैं कि दुनिया के शीर्ष 20 प्रदूषित शहरों की सूची में अधिकतम शहर दक्षिण एशिया के हैं।

क्या यह सिलसिला नए साल यानी 2020 में भी जारी रहने वाला है। क्या हमें 2020 की सर्दियों में भी ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ेगा। आइए, नए साल में होने वाले महत्वपूर्ण बदलावों को देखें।

नया साल, नए मानक

अप्रैल 2020 में दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बीएस (भारत स्टेज)-6 लागू होगा। इसका मतलब है कि 1 अप्रैल, 2020 से बेचे जाने वाले किसी भी वाहन मॉडल को बीएस-6 मानकों को पूरा करना होगा, जिसमें सल्फर की मात्रा 10 मिलियन प्रति मिलियन (पीपीएम) से कम होगी। साथ ही,बीएस-5 की तुलना में सल्फर की मात्रा पांच गुना कम होगी।

यह भारत के लिए महत्वपूर्ण क्षण होगा, क्योंकि बीएस के पांचवे चरण से छठे चरण में जाने वाला भारत दुनिया का सबसे बड़ा वाहन बनाने वाला देश होगा।

इसके साथ ही देश में वाहनों के लिए ऑन-रोड उत्सर्जन परीक्षण की भी व्यवस्था शुरू हो जाएगी।  इसे फॉक्सवैगन के 'डीजलगेट' घोटाले के बाद जरूरी किया गया गया है। इस घोटाले में फॉक्सवैगन की डीजल इंजन कारों में ऐसे फर्जी उपकरण पकड़े गए थे, जो प्रदूषण को रोकने के नाम पर लगाए गए थे।

ऑन-रोड परीक्षण के तहत चलती गाड़ियों में रियल टाइम उत्सर्जन की निगरानी की जाएगी। ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन ऑफ इंडिया इस पर काम कर रही है। इस घोटाले के पकड़ में आने बाद यूरोप ने भी सख्ती दिखाई है।

2019 को दुनिया भर में बिजली से चलने वाले वाहनों के लोकप्रिय होने के लिए भी याद किया जाएगा।  ईवी (इलेक्ट्रिक व्हीकल) वोल्यूम नाम की कंसलटेंसी फर्म की रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 के पहले 10 महीने में वाहन बाजार में बिजली से चलने वाले वाहनों की हिस्सेदारी 2.2 प्रतिशत तक पहुंच गई थी।

अगले पांच सालों में दुनिया के कई बड़े शहरों ने वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को शून्य करने का लक्ष्य रखा है, जो इलेक्ट्रिक वाहन से ही पूरा हो सकता है।

23 दिसंबर, 2019 को दिल्ली सरकार ने इलेक्ट्रिक व्हीकल पॉलिसी को मंजूरी दी है, जिसके मुताबिक भारत की राजधानी दिल्ली में 2024 तक बिजली से चलने वाली वाहनों की संख्या कुल वाहनों के मुकाबले कम से कम 25 फीसदी हो जाएगी।

वाहनों से हटकर

लेकिन दिल्ली में जहरीली हवा के लिए केवल वाहन ही जिम्मेवार नहीं है। काफी समय से साथ लगते राज्यों हरियाणा और पंजाब में जलने वाली पराली को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है।

हालांकि इन प्रयासों के चलते कुछ सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। बावजूद इसके, अभी भी काफी काम करना बाकी है। हैप्पी सीडर्स और सुपर एसएमएस जैसे इनोवेटिव प्रयास हुए हैं, लेकिन राज्य सरकारों को प्रयास करना होगा कि ये मशीनें किसानों तक पहुंचें।

2019 की शुरुआत में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम  की घोषणा की गई। जिसका लक्ष्य है कि 2024 तक पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 और पीएम 10 एकाग्रता में 20-30 प्रतिशत की कमी की जाएगी। लेकिन इस कार्यक्रम को लेकर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है, ऐसे में अगले चार साल तक राज्य सरकारों को इस दिशा में गंभीर प्रयास करने होंगे।

विकासशील दुनिया के कई शहर में चौबीसों घंटे निर्माण कार्य होते रहते हैं। यही हाल नए दशक में भी जारी रहेगा और निर्माण की वजह से उठने वाली धूल पर भी अंकुश लगाना होगा।

दुनिया भर में, वायु प्रदूषण को स्वास्थ्य से जोड़कर देखा जा रहा है। जैसे कि, दिसंबर 2019 में ऑस्ट्रेलिया में जंगलों में लगी आग के बाद जहरीली हवा को देखते हुए 'सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल' घोषित किया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका के विशेषज्ञों ने भी कैलिफोर्निया जंगल की आग के कारण फैले धुएं के बाद लोगों के स्वास्थ्य की जांच की।

लेकिन भारत में, केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने हाल ही में संसद में कहा कि वायु प्रदूषण की वजह से हो रही मौतों का कोई अध्ययन नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि इस तरह प्रदूषण और स्वास्थ्य को जोड़ने से लोगों में डर पैदा हो रहा है। यह कहकर, उन्होंने 2018 में जारी सरकार के अपने ही अध्ययन का खंडन कर दिया।

भारत दुष्प्रभावों को नकार कर वायु प्रदूषण पर अंकुश नहीं लगा सकता, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के अनिवार्य सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए स्वास्थ्य विभागों को पर्यावरण मंत्रालय के साथ मिलकर काम करना होगा।

इसके अलावा, भारत में वायु प्रदूषण के बारे में गंभीरता ज्यादातर तब देखी जाती है, जब सर्दी बढ़ जाती है और स्थिति हाथ से निकल जाती है। चर्चा तब शुरू होती है, जब आस-पास की हवा की गुणवत्ता (एक्यूआई) बहुत खराब हो जाती है।

अगर भारत वाकई वायु प्रदूषण का मुकाबला करना चाहता है, तो इसे साल भर चलने वाली मुहिम में बदलना हागा। कुछ छिटपुट और तात्कालिक प्रयासों जैसे पानी का छिड़काव, स्मॉग टॉवर आदि से न तो भारत और न विश्व वायु प्रदूषण से निपट सकता है।